रविवार, 25 अगस्त 2013

सुतेया तूं उठ, बैठेया तू चल

सुतेया तूं उठ, बैठेया तू चल
तेरी बणी जाणी गल, तेरी बणी जाणी गल
मना दे मसले दा मिली जाना हल 
तेरी बणी जाणी गल, तेरी बणी जाणी गल

सुरक्षा और प्राथमिकता


वो लोग भूख से इतने डरे हैं 
खा जाना चाहते हैं 
हर गरीब के हिस्से की रोटी
उनके पास कहां है दम 
जो दे सकें 
जिंदगी को चुनौती 
हर रोज 
वो लूट लेना चाहते हैं 
अपनी अगली नस्लों के लिए
दुनिया भर के खजाने
वो सुरक्षित करना चाहते हैं
अपने कुनबे का भविष्य
वो मेरी तरह कभी
कविता लिखने का
जोखिम नहीं लेते
क्योंकि , उनको
गीत संगीत जिंदगी
सबसे जरूरी है आर्थिक मजबूती
अपनी प्राथमिकता उन्हें
हर दम याद रहती है
हालांकि,
जीवन उनके लिये
उत्सव से ज्यादा स्टॉक एक्सचेंज है

नी सैह सोगां नी सैह कुआल रेह।।

कुड्डी च जां तक जलदे म्याल रेह।
धारां हन गददी कडदे स्याल रेह।।

कदी गत होई नी घरे देयां गुरुआं।
अपु जो छिलदे खुन्ने क्दाल रेह।।

चेले दा कारोबार चमकदा खूब रेहा।
कुथी तां चढ़ेलां कुथी तां बताल रेह।।

घर तां गवाह रेह जीणे कने मरने दे।
चडियां बाराती कदी पोंदे न्काल रेह।।

मितर सुदामा रख चनेयां दी आस ।
राजे दें घरें कुथु मोतियां दे काल रेह।।

जेहडा अमीर था पैसे दा ही पीर था।
दौलता तां वाले दिलां दे कंगाल रेह।।

तिन्हा सोंगी हंडे थे पैरां पतराणेयां।
नी सैह सोगां नी सैह कुआल रेह।।

वही आंख में वही सांस में बसा देखा।।

एक बच्चे के आगे जो झुक कर देखा।
पहली मर्तबा बड़े करीब से खुदा देखा।।

इक फ़कीर मैं उसकी झलक दिखाई दी।
डूब कर मस्ती में बन्दगी में रमा देखा।।

उसकी नेक जुबां में भी बसता रहा वर्षों। 
कहीं किसी माँ की दुआ में मिला देखा।।

उसी का तेज़ लगी कभी पाश की नज्में।
शिव की हसीन गजलों में भी घुला देखा।।

कभी अन्द्रेटा में जिसका था सृंगार हुआ।
दारजी की उस गद्दण के रंग रंगा देखा।।

देखा जिसने भी दिल की नजर से उसे।
वही आंख में वही सांस में बसा देखा।।

खुद के विरुद्ध युद्ध


ऐसे में जबकि 
सच का हर रास्ता
अवरुद्ध है। 
अपनी शर्तों पर 
जीने के लिए 
खुद के विरुद्ध 
लड़ना एक युद्ध है।
मेरे जैसे कितने 
उसी युद्ध में रत हैं
यह कैसा जनमत है।
जिन्हें उड़ना है वो उडें उंचे आसमानों में।
हमें तो सकूं मिलता है पहाड़ी ढलानों में।।


अपने कमरे में नितांत अकेला हूं 
ऑनलाइन बेशक दोस्त हजार हैं


हम को अपनी औकात मालूम है यार मगर 
यह आपकी हैसियत है हमारा भी मोल पड़ा


गम को यह सोच के मेहमान किया।
हुस्न वालों ने है उसे परेशान किया।।


जो शामिल नहीं होगा चोरों की बारात में।
वो तो अखरने लगेगा अपनी जमात में।।


महंगाई नें भ्रष्टाचार को राखी पहनाई।
देश को रक्षा बंधन की बहुत बधाई।।

तैयारी पूरी हो तो मरने का भी मज़ा आयेगा।
सुना है लेने हमको मौत का फ़रिश्ता आयेगा।।


जिंदगी की ढलान पर उम्मीदें कितनी परवान रखीं।
गर्दिशों में भी अपने बुजुर्गों ने जीने में शान राखी।।


हार जाने का कोई भी जोखिम उठाया नहीं उसने।
इस वजह से कभी खुद को अपनाया नहीं उसने।।


खुद के आगे वही शख्स हर दिन बेनकाब होता है 
चेहरे पर जिसके नित नया दिन नकाब होता है।।


उसने मेरी हर जरूरत का ध्यान रखा।
मैंने भी उसको अपना भगवान रखा।।

साहित्याकार



खेमों में लिखते हैं 
खेमों में पढ़ते हैं
खेमो में बनते हैं 
खेमों में लड़ते हैं 
खेमो में आते हैं
खेमों में जाते हैं 
खेमों में रहते है
इन लोगों को ही 
साहित्याकार कहते हैं

चलो साजिश रचें

चलो साजिश रचें 
सूरज से मिल कर 
अंधेरों के खिलाफ।
चलो बगावत करें 
नदियों से मिल कर 
समंदर के खिलाफ।।
चलो संघर्ष करें 
भूखों से मिल कर 
रोटी के खिलाफ।।

अगर आप दलों की दलदल में शामिल नहीं हैं।

नदियां निचोड़ लेंगे,दरख्त उखाड़ देंगे। 
लूट यूं रही तो वो सब कुछ उजाड़ देंगे।।
बांटते रहे नौजवान को ऐसी तालीम तो।
चंद रहबर वतन का नक्शा बिगाड़ देंगे।।

वैसे तो उन्होंने अपने दुश्मन से जीती हर लड़ाई है।
हर बार दूसरे के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाई है।।

वो तो बुलंदियां ढूंढते रहे आसमान में।
हम इंतज़ार करते रहे उनका चौगान में।


दौलत से खरीद सकता है जो दुनिया भर की खुशियां।
मिलने से कतराता है कि हम आंसूओं का कारोबार करते हैं।


रिश्वत में वो सोने के जेवर देना चाहता है।
बदले में मुझसे मेरे तेवर लेना चाहता है।।


आँखों का सब खारा जल।
सूख चुका है दोस्त कल।।
होंठों ने भी किया है छल।
लूट लिए हैं हंसी के पल।।

तन्हाईयों के घर में उदासी से घिरा हूं।
बेघर हूं बेशक पर किसी का आसरा हूँ।।
वो इक नदी जो बोतल में समा गई थी।
हां मैं उस नदी का ही आखिरी सिरा हूँ।।


अगर आप दलों की दलदल में शामिल नहीं हैं।
फिर तो आप सरकारी काम के काबिल नहीं हैं।।


कभी पतझड़ की तरह,कभी सावन की तरह।.
जिंदगी भी रंग बदलती रही मौसम की तरह।।
तस्वीरों में सिमट आए,कई अपने कई पराये।
मिला जब कोई कॉलेज की अलबम की तरह।।

राजा से मालदार तो उसके वजीर हो गए

पिंजर बेशक उनके अब शरीर हो गए 
दरिद्र सरकारी नजर में अमीर हो गए

आंकड़ों की कसरत में गरीबी हुई गायब 
देख कर शर्मसार कितने फ़कीर हो गए 

चम्मचों की तो खूब चांदी हुई चारों तरफ 
राजा से मालदार तो उसके वजीर हो गए 

न विरोध आया न बगावत ही सीख पाए
व्यवस्था में हम लकीर के फ़कीर हो गए

सच कहने की जिद की रात को सपने में
इसी बात पर हमसे खफा कबीर हो गए

अप्पू भी नी सोंदा,सांझो भी जगाई गेया।

अप्पू भी नी सोंदा,सांझो भी जगाई गेया। 
खुद भी ठगोएया,सांझो भी ठगाई गेया।।


मारी लै तू जकड़ा पुतरा तां दसगा।
फ़सेया कोई भखड़ा पुतरा तां दसगा।।
अज मिंजो कल तिजो कम्म पोणा। 
मैं भी तिजो अकड़ा पुतरा तां दसगा।।


तिस्जो सुणाईए क्या अमार कहानियां।
सुणने ते पहलें जेह्ड़ा मारदा चमाणियां।।

गुरुवार, 8 अगस्त 2013

बिल्लियां सूण घराल़ां कदकी।

रिडक़ी खड्डां नाल़ां कदकी।
बदले ले बताल़ां कदकी।।

सडक़ा आई पखले होये।
सोगी चढ़े कुआल़ां कदकी।।

मन चंदरा गास्सैं उड़दा।
पुजदा है पताल़ां कदकी।।

मुटदा पैर लुआल़ा जांदा।
जे मारदा छाल़ां कदकी।।

कदकी बड़ा गराड़ी बणदा।
जपणा लगदा माल़ां कदकी।।

बसियां जे आली मछियां।
खूब फसाईयां जाल़ां कदकी।।

डंगरे हुदे बड़े दयालु
बिल्लियां सूण घराल़ां कदकी।

तां लगदियां सोने साई।
अंबरे छुंदियां दाल़ां कदकी।।

मन मैल्ला तन लशकाए।
करदे साफ जंगाल़ां कदकी।।

कणका बांदेयां बरेया अंबर।
फेरदा कोई दंदाल़ां कदकी।।

नी खणाई जैली लगदी
चंडदा जे कदाल़ां कदकी।।

जीभ सुआदण खाणे दिक्खी।
है टपकाएं लाल़ां कदकी।।

करदी चानण हुस्ने दा।
मिल्लैं जे तरकाल़ां कदकी।

करा दिल ते सलामां वे ................

करा दिल ते सलामां वे सरहद देयां उन वीरां जो।
जिन्हा रखेया सलामत जे देशे दियां जगीरां जो।।
करा दिल ते सलामां वे ...........

सैह गबरू चिल बड़े जेह्ड़ा लड़दे जंग सचाईया दी।
सुण कपटी बैरिया औ लालच है जड़ बुराईया दी।।
खोई लेणा लाहौर तेरा जे हाथ लाया कश्मीर जो।
करा दिल ते सलामां वे ................
सीने ते झेलेया जिन्हा दुश्मन दी हर गोली जो।
हस हस के खेलेया तिन्हा खूनां दी उस होली जो।
देशे जो कर चल्ले अर्पण जेहडा शरीरां जो।
करा दिल ते सलामां वे ................

शनिवार, 3 अगस्त 2013

मशीनों की साजिश रही भूमि कटाव में................

दबाव था कोई या फिर था वो तनाव में। 
सवाल ही पूछा उसने हर इक जवाब में।।

नदी की राह मोड़ कर खुद बुलाई आफत। 
मशीनों की साजिश रही भूमि कटाव में।।

मोल मेरी मन्नतों का लगाने की हसरत 
जिन्दगी गुजार दी उसने जमा घटाव में।।

मौत की ही फ़रियाद करता रहा रात भर।
झुलसा है जब कोई नफरत के तेजाब मै।।

तमाशाई भीड़ ने ओढ़ ली चुप्पी की चादर।
बेगुनाह था मैं पर कोई न आया बचाव में।।

जूते की औट में कई बरसों तक छुपे रहे।
पड़ चुके थे छेद कई उस ऊनी जुराब में।।

मनरेगा की मुरम्मत ने उसके सुखा दिया।
खिलते थे जलल कभी जिस तालाब में।।

पर मुहल्ले की पक्की खबर तो मेरा हजाम देता है............

बेरोजगार को काम तो बेघर को मकान देता है। 
हकीकत से बेखबार वो सियासी बयान देता है।। 

जर्द चेहरों को पढने का है वो माहिर इतना कि।
झूठ बोलता है तो गारंटी अपनी जुबान देता है।। 

धर्म की आंच पर जो भी सेंकता है सियासी रोटी।
किसी बस्ती में गीता तो किसी में कुरान देता है।। 

कुचल डाल मसल डाल मगर आकाश को छू ले।
यह कैसा ज्ञान देता है और कैसा विज्ञान देता है।।

हर गांव में जरूरी है अब तो इक शराब का ठेका।
दर्दमंदों को भी मस्ती को वो क्या सामान देता है।।

जिसे तू रौब से कहता है मॉडर्न विकास का मॉडल।
दिमाग तो तनाव देता है जिस्म को थकान देता है।।

ठगना हो जो बच्चों को तो चने भी काम आते हैं।
अब हर कोई कहाँ उनको रोज दूध-बादाम देता है।।

साजिश रच किया जिसने इस आवाम को बैहरा।
अब वो शख्स कौम को भला क्या पैगाम देता है।।

बेशक दुनिया भर की सूचना है उसके गूगल में।
पर मुहल्ले की पक्की खबर तो मेरा हजाम देता है।।

पिटटी के छतिया फनोणा कितणा की।

पिटटी के छतिया फनोणा कितणा की।
राती देयां मोयां जो रोणा कितणा की।।

दिता है घरोणे तां बछोणा इतणा की।
सुखें सोंगा राती पारोणा कितणा की।।

लिखणे न लिखणे दा तोल मोल है।
सच हुण कुसीते लखोणा कितणा की।।

गा होई तोकड़ हुण सैले दी भी तंगी।
इक डंग दूणी दुध होणा कितणा की।।

रंग ढंग दुनिया दे बखरे हन हर दिन।
दिखी के सरिकां भतोणा कितणा की।।

जबरा क्या करदा।


छोरु थे रड़काट जबरा क्या करदा।
पकड़ी लेई खाट जबरा क्या करदा।।

लगदा नी था हत्थ पियुले होणे न।
नठी गेई छकराट जबरा क्या करदा।। 

लब्बडां ही लश्कांदे रेह सैह दंदासे।
पुटणा पेई डाठ जबरा क्या करदा।।

पितरां दे परकोप छड़ियां छाडां भी।
बड़े रखाए पाठ जबरा क्या करदा।।

पैर भी तां सोठीया सहारें पुटदा था।
पेई गेई नाह्ठ जबरा क्या करदा।।

हुण बैडरूम तां होये नुआं पुत्रां दे।
तिसदें हेसें टाट जबरा क्या करदा।।

घट सुझदा घट सुणदा खंगदा रेह्न्दा
उम्र होई ठाहट जबरा क्या करदा।।

बणना लग्गी बिजली जे पानीये नै
जांदा रेहा घराट जबरा क्या करदा।।

जां पुज्जे सब ग्रांये नखरे शहरे दे।
मुक्के हाट फाट जबरा क्या करदा।।

ढलियां तां पाईयां कुछ अणसिख हालियां

कसीदे पढ़े गए झूठे ही शान में 
हीरे छुपे रहे कोयले की खान में 
जिन को घर बनाने का था हुनर 
वो लोग रहे किराये के मकान में


हिन्दू के लिए गीता, मुसलमां के लिए कुरान हुआ करता था।
उस जमाने में मजहब से बड़ा इन्सां का ईमान हुआ करता था।।
उस जन्म में जब तू चंचलो तो मैं कुंजू बन दुनिया में आये थे।
तब अपना डेरा रावी किनारे चंबा का चौगान हुआ करता था।।


बसने तांई माणुआं जे जंगलां लाणे डेरे 
शहरां घुमणा बांदरां, ग्रां मिरगां पाणे फेरे


ढलियां तां पाईयां कुछ अणसिख हालियां 
खुणनी खणाई किंजा खुनियां कादालियाँ

सारा दिन पसीना बहाया होगा।
पेट भर फिर भी न खाया होगा।।


नदियां निचोड़ लेंगे,दरख्त उखाड़ देंगे। 
लूट यूं रही तो वो सब कुछ उजाड़ देंगे।।
बांटते रहे नौजवान को ऐसी तालीम तो।
चंद रहबर वतन का नक्शा बिगाड़ देंगे।।


ख्वाब आँखों में सजाए जमाने गुजरे।
राहों में पलकें बिछाए जमाने गुजरे।।
जिस रोज़ से तुम से आंखें चार हुई ।
तब से नजरें झुकाए जमाने गुजरे।।


वैसे तो उन्होंने अपने दुश्मन से जीती हर लड़ाई है।
हर बार दूसरे के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाई है।।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013

हालात का तोड़ा, वक्त का मारा निकला

हालात का तोड़ा, वक्त का मारा निकला 
वो शख्स भी मेरी तरह बेचारा निकला

दुनिया ने दोनों को ही गलत ठहराया 
खता तुम्हारी तो कसूर हमारा निकला 

मैं जिसकी आँख में खटकता रहा सदा 
वो ही क्यों मेरी आँख का तारा निकला 

मेले में कम पडे जिसे खरीदने को पैसे
उम्र भर न दिल से वो गुब्बारा निकला

दिल में दुनिया जीतने की हसरत लेक्रर
वक्त के आगे सिकंदर भी हारा निकला

अगर मैं निराश हूँ और तू भी बड़ा हताश है

अगर मैं निराश हूँ और तू भी बड़ा हताश है 
तो इस दौर की व्यवस्था सबसे बकवास है 

परों को काटने की साजिश भी क्या खूब है 
उड़ने को बेशक यहाँ खुला सारा आकाश है 

सरकारी नौकरी के लिए पिठू को आस है 
उसी का चयन होगा जो नेता का खास है 

गरीबी को तकनीक के दम पर छुपाया है
विज्ञापन में हर जगह दिखता विकास है

जुबान पर हैं उनकी बेरोजगारी के आंकड़े
मंत्री की वाणी में सुनो कितनी मिठास है

रविवार, 21 जुलाई 2013

आओ हमारे साथ भी एक चाय का प्याला हो जाये

फिर तो लाखों बेटियों के जीवन में उजाला हो जाये 
तालिबान की दहशत में जब कोई मलाला हो जाये 

जिस भी देश में जब शक्ति का जब सम्मान हुआ 
वहां फिर नारी कभी दुर्गा तो कभी ज्वाला हो जाए 

पैदावार जो थम जाये कभी दुनिया में बारूद की 
जाने कितनी बस्तिओं को नसीब निवाला हो जाये 

उनकी महफ़िलों में तो तुम जाम अक्सर टकराते हो
आओ हमारे साथ भी एक चाय का प्याला हो जाये

फिर किसी श्याम के लिए कोई मीरा दीवानी निकले

मैं किसी गैर से भी मिलूं तो पहचान पुरानी निकले 
मैं कोई भी ग़ज़ल लिखूं तो वह इक कहानी निकले 

सूखे फूल ही गुलाब के गवाह बनते रहे हर दौर मैं 
हर बार किताबों से ही मुहब्बत की निशानी निकले 

गूंगे बहरों के साथ दिन भर की कसरत के बाद जब 
जो तुझसे मिलना हो तो अपनी शाम सुहानी निकले 

हम तो हरगिज ही फिर खुद से भी तो गैर निकलेंगे
दिल जब अपना किसी की अमानत बेगानी निकले

फिर से कोई कबीर किसी महल से अड़ कर निकले
फिर किसी श्याम के लिए कोई मीरा दीवानी निकले

कभी साहब के आदेश तो कभी निर्देश मेरे बच्चो

क्या नसीहत, क्या दूं तुम्हें उपदेश मेरे बच्चो 
खतरे में है अपना देश और प्रदेश मेरे बच्चो 

आपके सामने भारत की सच्ची तस्वीर पेश है 
हरकतें गौरों की,गांधी का है सन्देश मेरे बच्चो 

दलितों के लिए वर्जित अभी मंदिरों के दरवाजे
हर जगह स्वर्णों को खुला है प्रवेश मेरे बच्चो 

कहने को तो आ गया कभी का जनता का राज
पर काबिज कहीं राजा तो कहीं नरेश मेरे बच्चो

जिन ऊंची हवेलियों पर उनको नाज़ था कभी
आज तो बचे हैं फ़्ख्त उनके अवशेष मेरे बच्चो

चपरासी के हिस्से मैं तो हर बार यही खास आया
कभी साहब के आदेश तो कभी निर्देश मेरे बच्चो

औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

डरी जांदा दिलडु, पोयें पेटैं मरोड़ 
औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़ 
हिली जांदा जिस्मे दा इक इक जोड़ 
औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

आई गेया सौण,मुक्की गया हाड़ 
खरना जे लग्गा लूणे डा पहाड़ 
रामे नै चलणा करणी नी छोड़ 
...............औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

हर साल करदे न कोई जुगाड़
पर अजें थमेया नि टुटदा पहाड़
सड़का बनाणे तांई खर्चे करोड़
...........औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

कम्मे नी आई एथू कोई स्कीम
गौरे ने बोलदी है उसदी मीम
अग्गे दी दौड़ पर पिछें तां चौड़
.............औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

जमे हुए , हिले हुए



कहीं रमे हुए लोग 
अब थमे हुए लोग 
वो जमे हुए लोग ..........
थोड़े खिले हुए लोग 
घुले मिले हुए लोग 
हम हिले हुए लोग