शनिवार, 29 जून 2013

आस्था के पुरातन रास्ते लहूलुहान सारे हो गए

आस्था के पुरातन रास्ते लहूलुहान सारे हो गए 
भगवान के घर मैं वो भगवान को प्यारे हो गए 

( कुदरत के कहर का शिकार हुए तीर्थ यात्रियों को श्र द्रान्जली )

आज जम कर बरसेगी बरसात मेरे हिस्से की 
सालों बाद जो आई है बरसात मेरे हिस्से की 
दिन भर आपके हुस्न का जो सजदा किया है 
कितनी सुहानी आई है यह रात मेरे हिस्से की

दुश्मन भी हार गए मेरे इसी अंदाज पर 
मुझ से बड़ा मेरा उनको दुश्मन न मिला

कल वो मोमबतियां लेकर शहरों-कस्बों में निकलेंगे

प्रकृति से जब भी खिलवाड़ होगा 
घर चाहे खुदा का हो उजाड़ होगा 
शिकार सुनामी का हरगिज होगा 
कभी समंदर तो कभी पहाड़ होगा

लाशों के बीच में भी कोई बचने की आस में जिन्दा है 
यहाँ तो मौत भी खुद मौत से देखो कितनी शर्मिंदा है

कल वो मोमबतियां लेकर शहरों-कस्बों में निकलेंगे 
हादसे के वक्त जो शातिर लाशों की जेबें तलाशते रहे

बेशक अब आसमान को छुने लगे हैं

बेशक अब आसमान को छुने लगे हैं 
पर हम अपनी जड़ों से कटने लगे हैं 
तभी सावन में घुमड़ने वाले बादल 
अब बरसने की जगह फटने लगे हैं


सावन में बादलों की मेहरबानी से डर लगता है 
अब तो पहाड़ पर बरसते पानी से डर लगता है


थी जिन्हा ने गल सुनाणी
सुते रेह सैह खिंदा ताणी

आपदा में फंसे अपने नागरिकों को बेशक नहीं बचा पा रहा है 
पर लीडर तो कह रहे हैं कि भारत महाशक्ति बनने जा रहा है


कुदरत के हाथ में इस से पहले ऐसा खंजर नहीं देखा 
जो गुजरी केदारनाथ में मैंने ऐसा मंजर नहीं देखा 
कितने बचपन जवानी और बुढापे बह गए बेगुनाह 
कोई तीर्थ जो पानी से बना हो ऐसा बंजर नहीं देखा

उत्तराखंड की त्रासदी से उपजी पीड़ा

उत्तराखंड की त्रासदी से उपजी पीड़ा 

जब भी इस दौर का इतिहास लिखा जायेगा 
सूरमा हर इलाके का बदमाश लिखा जायेगा 

लूटपाट के नाम जब विकास लिखा जायेगा 
आस्था के हर तीर्थ में विनाश लिखा जायेगा 

हैं पाखंड सारे खुल गए तू देख ले उत्तराखंड में 
हर नागरिक कब देश का उदास लिखा जायेगा 

जब लाशों पे ही रोटियां वो सेंकने को आयेंगे
सियासी हर ढोंग भी बकवास लिखा जायेगा

कहर की घडी में उनको बस लूट की पड़ी हुई
फिर मंदिरों में डाकूओं का वास लिखा जायेगा

वो आंसूओं वो तेवरों के लोग तो कोई और थे
वो अब कहाँ बटालवी या पाश लिखा जायेगा

मौत की सौगात लेकर आती हर बरसात

मौत की सौगात लेकर आती हर बरसात 
खून से रंगने लगे अब सावन के भी हाथ

लोग कुदरत की आपदा से त्रस्त हैं 
वो चुनावी समीकरणों मैं व्यस्त हैं

बरखा केंह बरसाती दी है करणा लगी खजल 
मुक्के ब्याह गिदडा दे हुण फटणा लगे बदल

उत्तराखंड की त्रासदी से उपजी पीड़ा

उत्तराखंड की त्रासदी से उपजी पीड़ा 

क्या सुनाएं मौत से उस साक्षात्कार के 
नफरत में बह गए सब शब्द प्यार के 
आफत की उस घडी में तो चोर ले उड़े 
हर लाश की अंगुली से अंगुठी उतर के 
गर्दिश के मौसम में तो हैवान बन गए 
अजी छोडिये किस्से उनके ऐतवार के 
चार दिन तो मीडिया भी खूब चिल्लाया 
दस्तूर निभाए सबने ग्लोबल बजार के 
दामन हर बार बचा के तुम निकल गए
सौ बार हमने परखा है तुमको पुकार के
मातम हर बार लिख दिया बरसात ने
रुत सावन की क्या सुर छेडें सितार के
विनोद भावुक
विज्ञान कहता है कि बेहतर हो गया इंसान 
ईमान कहता है कि शातिर हो गया इंसान


लड़ी दरानी जठाणी लेई डुबा होल 
लग लग लगे तपरू बने केई टोल


हमनें तो निभाया जो इस जमाने का दस्तूर था 
कभी अपने दिल से पूछना हमारा क्या कसूर था


गर तू न मेरी जिन्दगी में आई होती
बुलंदी सोहरत की न हमने पाई होती 
राह जो तूने न मुझ को दिखाई होती 
हर इक कदम पे ही ठोकर खाई होती


डॉक्टर कहता है कि तनाव मार डालेगा 
जनाब आंसूओं का सैलाब मार डालेगा 
उसने जो कर दी ख़त लिखने की खता 
हमको तो जवाब का दबाव मार डालेगा


अपने हिस्से में मुश्किल निवाले हो गए
पर रातों रात लोग कुछ पैसे वाले हो गए 
कई बस्तियां तो आज भी रोशनी से दूर हैं 
कुछ कोठियों में बेशक हैं उजाले हो गए