मंगलवार, 23 जुलाई 2013

हालात का तोड़ा, वक्त का मारा निकला

हालात का तोड़ा, वक्त का मारा निकला 
वो शख्स भी मेरी तरह बेचारा निकला

दुनिया ने दोनों को ही गलत ठहराया 
खता तुम्हारी तो कसूर हमारा निकला 

मैं जिसकी आँख में खटकता रहा सदा 
वो ही क्यों मेरी आँख का तारा निकला 

मेले में कम पडे जिसे खरीदने को पैसे
उम्र भर न दिल से वो गुब्बारा निकला

दिल में दुनिया जीतने की हसरत लेक्रर
वक्त के आगे सिकंदर भी हारा निकला

अगर मैं निराश हूँ और तू भी बड़ा हताश है

अगर मैं निराश हूँ और तू भी बड़ा हताश है 
तो इस दौर की व्यवस्था सबसे बकवास है 

परों को काटने की साजिश भी क्या खूब है 
उड़ने को बेशक यहाँ खुला सारा आकाश है 

सरकारी नौकरी के लिए पिठू को आस है 
उसी का चयन होगा जो नेता का खास है 

गरीबी को तकनीक के दम पर छुपाया है
विज्ञापन में हर जगह दिखता विकास है

जुबान पर हैं उनकी बेरोजगारी के आंकड़े
मंत्री की वाणी में सुनो कितनी मिठास है

रविवार, 21 जुलाई 2013

आओ हमारे साथ भी एक चाय का प्याला हो जाये

फिर तो लाखों बेटियों के जीवन में उजाला हो जाये 
तालिबान की दहशत में जब कोई मलाला हो जाये 

जिस भी देश में जब शक्ति का जब सम्मान हुआ 
वहां फिर नारी कभी दुर्गा तो कभी ज्वाला हो जाए 

पैदावार जो थम जाये कभी दुनिया में बारूद की 
जाने कितनी बस्तिओं को नसीब निवाला हो जाये 

उनकी महफ़िलों में तो तुम जाम अक्सर टकराते हो
आओ हमारे साथ भी एक चाय का प्याला हो जाये

फिर किसी श्याम के लिए कोई मीरा दीवानी निकले

मैं किसी गैर से भी मिलूं तो पहचान पुरानी निकले 
मैं कोई भी ग़ज़ल लिखूं तो वह इक कहानी निकले 

सूखे फूल ही गुलाब के गवाह बनते रहे हर दौर मैं 
हर बार किताबों से ही मुहब्बत की निशानी निकले 

गूंगे बहरों के साथ दिन भर की कसरत के बाद जब 
जो तुझसे मिलना हो तो अपनी शाम सुहानी निकले 

हम तो हरगिज ही फिर खुद से भी तो गैर निकलेंगे
दिल जब अपना किसी की अमानत बेगानी निकले

फिर से कोई कबीर किसी महल से अड़ कर निकले
फिर किसी श्याम के लिए कोई मीरा दीवानी निकले

कभी साहब के आदेश तो कभी निर्देश मेरे बच्चो

क्या नसीहत, क्या दूं तुम्हें उपदेश मेरे बच्चो 
खतरे में है अपना देश और प्रदेश मेरे बच्चो 

आपके सामने भारत की सच्ची तस्वीर पेश है 
हरकतें गौरों की,गांधी का है सन्देश मेरे बच्चो 

दलितों के लिए वर्जित अभी मंदिरों के दरवाजे
हर जगह स्वर्णों को खुला है प्रवेश मेरे बच्चो 

कहने को तो आ गया कभी का जनता का राज
पर काबिज कहीं राजा तो कहीं नरेश मेरे बच्चो

जिन ऊंची हवेलियों पर उनको नाज़ था कभी
आज तो बचे हैं फ़्ख्त उनके अवशेष मेरे बच्चो

चपरासी के हिस्से मैं तो हर बार यही खास आया
कभी साहब के आदेश तो कभी निर्देश मेरे बच्चो

औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

डरी जांदा दिलडु, पोयें पेटैं मरोड़ 
औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़ 
हिली जांदा जिस्मे दा इक इक जोड़ 
औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

आई गेया सौण,मुक्की गया हाड़ 
खरना जे लग्गा लूणे डा पहाड़ 
रामे नै चलणा करणी नी छोड़ 
...............औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

हर साल करदे न कोई जुगाड़
पर अजें थमेया नि टुटदा पहाड़
सड़का बनाणे तांई खर्चे करोड़
...........औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

कम्मे नी आई एथू कोई स्कीम
गौरे ने बोलदी है उसदी मीम
अग्गे दी दौड़ पर पिछें तां चौड़
.............औखा बड़ा कटणा गुम्मे दा मोड़

जमे हुए , हिले हुए



कहीं रमे हुए लोग 
अब थमे हुए लोग 
वो जमे हुए लोग ..........
थोड़े खिले हुए लोग 
घुले मिले हुए लोग 
हम हिले हुए लोग 
हमनें तो निभाया जो इस जमाने का दस्तूर था 
कभी अपने दिल से पूछना हमारा क्या कसूर था

मेरे बहाने किसी और को कब्र में दफना दिया 
मैं जिन्दा था लोगों ने मेरा मातम मना दिया

लोग कहते थे कि वो इक पत्थर दिल इंसान है 
हमने जो छुआ उसे तो वो मोम सा पिघल गया

उसकी गलतियां माफ़ कर देना मौला 
वो नादां था शातिर जिसे समझा गया

बेशक खुशियों का मैं कारोबार करता हूं 
पर आंसूओं का भी बड़ा सत्कार करता हूं
मैं जिंदगी से हद से ज्यादा प्यार करता हूं 
पर मौत का भी दिल से इन्तजार करता हूँ


मैं अगर चीड़ है और तू देवदार है 
फिर तो हमारा एक ही परिवार है
कुछ वोट धर्म के नाम पर हथियाये जायेंगे 
कुछ स्वर्ण दलित के नाम पर ठगाये जायेंगे
कुछ तो नशे में टल्ली करके बहकाए जायेंगे 
गाँव गाँव में कितने ही राष्ट्रवाद जगाए जायेंगे 
................... जीत के लिए जब समीकरण बनाये जायेंगे


मैं यह जानता भी हूँ और हूँ अनजान भी 
मेरे अंदर रहता है भगवन भी शैतान भी

नलके दै पानीये मारी खरी मत

नलके दै पानीये मारी खरी मत
भुली गे हन सारे बांई वाली बत

पाणिये पींदे जेठे जो तां गेई खरी सरुंड 
थुक सीम जे कठा होया पकड़ी लिया मुंड

ढाई दित्ते लैंटरां सब स्लेटा वाले मकान 
हुण कुथु तोपणे सैह बोहड़ी ते उआन

तिन्हा तांई औट थलौट 
सरकार दिया नजरा खोट 
नी कुसी दिया नजरा चडे 
क्या जंजैहली क्या बरोट

बुरी तां नेगीया पहाडां ने छेड़ 
रुड़ी तां जांदे हन सेउआं दे पेड़ 
बुरा तां नेगीया बरखा दा शोर
छम -छम रोंदा तेरा किन्नौर 
बुरी तां नेगीया पहाडां ने छेड़ ..

गरीब के चिराग हैं दुश्वारियां समझ लेते हैं

सुना सुना सा लगता है यह रोना भी मुस्काना भी 
तेरे इश्क का चर्चा भी, मेरे गम का अफसाना भी

झूठ की कचहरी में जब सच का पर्दाफाश हुआ है 
आरोपी बच निकले इन्साफ को कारावास हुआ है

मेरी जिस अदा पर आपको गुस्सा आया है 
हमको यह अंदाज भी तो आपने सिखाया है

हमारी तो रात अपनी है, जिन्हें उठाना है जल्दी तो 
हमारा मशविरा है उन दोस्तों को, वो अब जो जायें

गरीब के चिराग हैं दुश्वारियां समझ लेते हैं 
बिना बताये ही जिम्मेवारियां समझ लेते हैं

आप मोम हो पिघल जाओगे, मेरे इश्क मे जब ढल जाओगे

असी हसणा भुल बैठे, तुसी रोणा भुल बैठे 
असी रूसणा भुल बैठे, तुसी मनोणा भुल बैठे 

था वादा मिलणे दा, सावन दे महीने दा 
असी जाणा भुल बैठे, तुसी औंणा भुल बैठे 

जेहडा गीत मुहब्बतां दे लिखणे थे नाम तेरे 
असी लिखणा भुल बैठे, तुसी गौणा भुल बैठे


हम हालात के मारे थे, हल क्या सुनाते 
यही सोच कर हमने तो जुबां नहीं खोली

आप मोम हो पिघल जाओगे 
मेरे इश्क मे जब ढल जाओगे

धोखा तो बेशक दुनिया को दिया होगा 
उसने खुद का सामना केसे किया होगा

मंगलवार, 2 जुलाई 2013

बरणा अम्बरें तां टुटणा पहाड़



जे लोभ बधाई के लुटणा पहाड़ 
बरणा अम्बरें तां टुटणा पहाड़ 

इक दिन तां फिरी पोणे उजाड़ 
जां लाई मशीनां पुटणा पहाड़ 

बरसाती हरगिज बुकणा पहाड़ 
डैमां ने डोकी जे घुटणा पहाड़ 

घर घर पोणे कितणे बछाण
जां बरखा मारी सुटणा पहाड़

हर साल औणी जे बाढ़ एथु
लोकां ते है तां छुटणा पहाड़ 

हुस्न पर तो तेरे आया निखार था

अपने हिस्से में मुश्किल निवाले हो गए
पर रातों रात लोग कुछ पैसे वाले हो गए 
कई बस्तियां तो आज भी रोशनी से दूर हैं 
कुछ कोठियों में बेशक हैं उजाले हो गए


डॉक्टर कहता है कि तनाव मार डालेगा 
जनाब आंसूओं का सैलाब मार डालेगा 
उसने जो कर दी ख़त लिखने की खता 
हमको तो जवाब का दबाव मार डालेगा

गर तू न मेरी जिन्दगी में आई होती
बुलंदी सोहरत की न हमने पाई होती 
राह जो तूने न मुझ को दिखाई होती 
हर इक कदम पे ही ठोकर खाई होती

हमनें तो निभाया जो इस जमाने का दस्तूर था 
कभी अपने दिल से पूछना हमारा क्या कसूर था

विज्ञान कहता है कि बेहतर हो गया इंसान 
ईमान कहता है कि शातिर हो गया इंसान

कौन कब दिल के आईने में यूँ बस जाये कोई 
यह वो गुस्ताखी है जिस पर अपना जोर नहीं

दिल जे कुथी लगाणा तां मारणा पोंदा मन 
लोग सयाणे बोलदे होन कंदा जो भी कन

हुस्न पर तो तेरे आया निखार था 
बदन में क्यों मेरे छाया खुमार था