बुधवार, 28 जनवरी 2015

टाकाँ बडियां खादियाँ, सैह ताँ छत्ता था धर्मोड़ा दा.


दस्सा लाज क्या करिए असां पेटे दिया मरोड़ा दा 
 डूगगा जख्म भ्रोई  गेया , बस दाग रेहा परचोडा दा
धुखाई गोटुआँ  खारिया  च,भन्ढोरे दूनया चल्लयो थे,
टाकाँ बडियां खादियाँ, सैह ताँ छत्ता था धरमोडा दा..
...........विनोद  भावुक 

शनिवार, 24 जनवरी 2015

पिटदे  रेह जेडा मैहीं जो दरडे पिहाँदे  रेह.
पाणीए मिलाई केई लोक दुधां बधांदे रेह..

शुक्रवार, 23 जनवरी 2015



कुरकुरे तो खाईए पर मुरमुरे भी बचाईए

उनके लिए शायद इस बात से कोई फर्क न पड़े, क्योंकि वो  अपने स्मार्ट फोन में  नेट पैक, मेसेज पैक डलवा कर चलते हैं। मेल, ट्वीटर, फेसबुक, मैसेंजर पर हल पल ऑनलाइन मिलते हैं। कुरकुरे से तीखे स्वाद के साथ जवान हुई इस पीढ़ी का क्या कसूर कि उनके सरोकार में मंडी नगर का यह कोई ख़ास मुद्दा नहीं। लेकिन यह उन लोगों की पीढ़ा है, जो पीढ़ी  गुड के मिश्रण से बने मुरमुरे खा कर जवान हुई है। इंटरनेट के यूज की बात हो तो मंडी हिमाचल प्रदेश में टॉप पर पहुँच गया है। सोशल मीडिया पर मंडी का खासा दखल है। एतिहासिक नगर में  उस पीढ़ी के लोग भी कम नहीं है, जिनके लिए सन्देश का सबसे खास माध्यम आज भी  चिट्ठी ही है। 
मुरमुरे खा कर जवान हुई पीढ़ी को सादर। 


 ब्रिटिश पत्रिका सागा के एक सवर्ेक्षण में यह दिलचस्प बात सामने आई कि 50 साल से अधिक उम्र के 45 फीसदी लोगों का कहना है कि हाथ से लिखकर खत भेजने और हाथ से लिखा किसी अपने का खत डाक से मिलने पर जो भावनात्मक संतुष्टि प्राप्त होती है वह ई.मेल से भेजे खत से नहीं मिलती। बेशकीमती होती हैं क्योंकि उनमें अपनेपन का अहसास होता है, किसी अपने की खुशबू और किसी अपने का चेहरा झलकता है। यह परंपरा धीरे.धीरे समाप्त हो रही है। 

डाक से अपनों तक अपना सन्देश पहुँचाने में मंडी में कितने झंझट हैं? इसकी पड़ताल और सवाल 


कल रात 8 बजे :  लैटर बॉक्स पर नहीं फॉक्स ( लाइव )