बुधवार, 20 अप्रैल 2016

नां बेशक अज्जें चमकें धर्मशाला दा, खास केंह सिद्धबाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?


दिलां रा रोग रंगाड़ी कुस्जो क्या दसणा?
अपणा टिढ कुहाड़ी कुस्जो क्या दसणा?
अप्पु नें ग्लांदे न, सीसे गल्लां लांदे न,
लेया क्या नुआड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
नां बेशक अज्जें चमकें धर्मशाला दा,
खास केंह सिद्धबाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
भला क्यो कोई प्यारु जोतां लंघदा है?
क्या राखा, छतराड़ी,कुस्जो क्या दसणा?
खपरा टिटकदा रेहंदा इक्की घुटे जो,
छोरु बड़े गराड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
हुण नुस्खे नां दे रेह, बेतेयां वैधां दे,
दिखें कुण जे नाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
फिरदे केई स्कन्दर दुनिया जितणे जो,
वक्त दें परछाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
है टोहर तिन्ह दी, वाह ठुक तिन्हा दी
मुंडू असां पहाड़ी, कुस्जो क्या दसणा ।।

नां बेशक अज्जें चमकें धर्मशाला दा, खास केंह सिद्धबाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?


दिलां रा रोग रंगाड़ी कुस्जो क्या दसणा?
अपणा टिढ कुहाड़ी कुस्जो क्या दसणा?
अप्पु नें ग्लांदे न, सीसे गल्लां लांदे न,
लेया क्या नुआड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
नां बेशक अज्जें चमकें धर्मशाला दा,
खास केंह सिद्धबाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
भला क्यो कोई प्यारु जोतां लंघदा है?
क्या राखा, छतराड़ी,कुस्जो क्या दसणा?
खपरा टिटकदा रेहंदा इक्की घुटे जो,
छोरु बड़े गराड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
हुण नुस्खे नां दे रेह, बेतेयां वैधां दे,
दिखें कुण जे नाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
फिरदे केई स्कन्दर दुनिया जितणे जो,
वक्त दें परछाड़ी, कुस्जो क्या दसणा?
है टोहर तिन्ह दी, वाह ठुक तिन्हा दी
मुंडू असां पहाड़ी, कुस्जो क्या दसणा ।।

अम्बर ही खांदा रेहा खेतिया.

बेला होई संजली,
औट फसी मंझली,
मिस होई कनिका,
औणी काहलू अंजली
( कुल्लू- मंडी रूट पर गुजरते हुए)

अज्ज असमाने ते बरेया है रूं. 
रसलियां धारां पेई गेया हियूं.

कदी गेतिया, कदी पछेतिया.
अम्बर ही खांदा रेहा खेतिया.

चारण कुर्सी पायेगा.

धर्मराज के खाते उपहास लिखा है
हमने ही राम को बनवास लिखा है.
रामराज में इल्जाम सिया के सर,
हमने कान्हा को कारावास लिखा है

जो वजह तक नहीं जाओगे. 
समाधान कहां से लाओगे.
खुद बिगडैल न सुधरे जो,
तो किसको क्या समझोगे

गूंगा मौज उडाएगा.
चारण कुर्सी पायेगा.
जो विरोध में आएगा.
गोली-लाठी खायेगा.

खुद के विचारों में आजादी रखो
हौसले हर हाल में फौलादी रखो
फिर क्या फर्क पड़ता है तन पर,
जीन पहनो या फिर खादी रखो

उनकी शहादत को सलाम आते हैं
वीर जो अपने देश के काम आते है.

मीद मनां जो, इन्द कुसी दी.
दिल नंदराला, चिन्द कुसी दी.
खरी निहालप, कच्चिया उम्रा,
झूरदी रेह्न्दी जिन्द कुसी दी
(शब्दार्थ: मीद - उम्मीद, इन्द - किसी के आने की आस, नंदराला- नींद में जागा हुआ, चिन्द - चिंता, निहालप- इंतज़ार)
..........विनोद भावुक................

लागियो तांदी रख चुक बोबो

हन बड़े सणखे अणमुक बोबो
तिस चन्द्रे बिच है फुक बोबो
इक गल दसणी रुक रुक बोबो
करदा है दिल धुक धुक बोबो
ठुक हुस्ने दी इश्क भी समझें
दिल कने सीसा नाजुक बोबो
तोंद भी आई है ओंद तिन्हा दी
लागियो तांदी रख चुक बोबो

बाबे बड़े परचंडी दिक्ख।।

छड सड़का,पगडंडी दिक्ख।
कदी तां जोता हंडी दिक्ख।।
धारां, रुखां, पाणिये सोगी,
कुछतां गल्लां बंडी दिक्ख।।
दोहडू पट्टू कम्मे औणे,
झुल्दी होआ ठंडी दिक्ख।।
है रोज दराटे पलदा पर,
कदीतां बलुआं चंडी दिक्ख।।
चिड़ियां औणा चोगा चुगणा,
रोणे चौलां छंदी दिक्ख।।
रिहलू, रैत, भणाला हंडे,
कदकी सल्ली, कंडी दिक्ख।।
जां दिखणे- ध्यो देवलू
आई कुल्लू- मंडी दिक्ख।।
अंग- संग रणचंडी दिक्ख,
जाई कदी बनखंडी दिक्ख।।
भेडां चारी शंभू होये,
बाबे बड़े परचंडी दिक्ख।।
तांही झूलने तेरे झंडे,
लम्बी~पक्की डंडी दिक्ख।।

फिर तोहफे में चंबा रूमाल हो जाये...........


जब कोई यू हीं हमख्याल हो जाये।
सारी दुनिया में तो बवाल हो जाये।।
फिर तो जीना मुहाल हो जाये,अगर।
हर जुबां पे इक ही सवाल हो जाये।।
उससे अब भी जो बचपना है बाकि।
जो भी मिले उससे निहाल हो पाये।।
है मौत के बाद भी जिंदगी का सफर।
जिंदगी हो मौत हो मिसाल हो जाये।।
बरसात की झड़ी में बैल भी भूखे हैं।
उनको भी थोड़ा पानी पराल हो जाये।।
मेहमान करीब है दिल के अगर कोई।
फिर तोहफे में चंबा रूमाल हो जाये।।

दुनिया च बखरा चंबा रुमाल.

'दो रूखे टाँके दा नौखा कमाल.
दुनिया च बखरा चंबा रुमाल.
रागां दी माला, सैह बाहरामासा
कृष्णे दी मुरली, राधा दे हाल.
दुनिया च बखरा चंबा रुमाल..................
कदी रासलीला, कुथी नाच पोंदे.
मोही लें गोपियां, मस्त गोपाल.
दुनिया च बखरा चंबा रुमाल..................
चितरी के गुंदे शंभू- गणेश
है तानपूरा, कुथी वीणा दी ताल
दुनिया च बखरा चंबा रुमाल..................
राजे लडे कदी ,खेले शिकार
कुथकी बछाई चोपड़ दी चाल
दुनिया च बखरा चंबा रुमाल..................
मोर- तोते बोले, बड़े फुल खिले
कुथी बांदर- हिरन भरदे छाल
दुनिया च बखरा चंबा रुमाल..................
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बताओ कब तक?

( कविता जैसा कुछ)
बताओ कब तक?
टुकड़ों पर पलने वाले,
घुटनों के बल आयेंगे.
जब जब आका गुर्रायेंगे
प्यादे चीखेंगे- चिल्लायेंगे
सियासत की आड़ में,
वोटों के जुगाड़ में
पलते जो लफंगे रहेंगे
इस देश में दंगे रहेंगे
...विनोद भावुक......

गोकुल से पूछिए मथुरा न जाने, क्यों माखन चोर मुरारी रहे हैं.


वो सिंहासन के आभारी रहे हैं
नौकर जो भी सरकारी रहे हैं
तभी हुनर को लाचारी रही है
जुगाड़ वाले सभी भारी रहे हैं
गूंगे राजाओं के किले सदा से
बहरे बजीरो की आभारी रहे हैं.
बाघों की बगावत गांव शहर
जगल में अब शिकारी रहे हैं
सरकारें तो आती जाती रही हैं
काबिज अक्सर दरबारी रहे हैं.
वो तो सब पर ही भारी रहे हैं
संगठन में जो प्रभारी रहे हैं
पुल बनाने वाले बानर कहे गए
राम बनवास के अधिकारी रहे हैं
गोकुल से पूछिए मथुरा न जाने
क्यों माखन चोर मुरारी रहे हैं.

विकास का भी यहाँ अपना ही अंदाज है

तुझे मिठास होना है मुझे नमकीन होना है
तुझे रब रौनकें बख्शे, मुझे ग़मगीन होना है
कद की उड़ान की भी अपनी ही फितरत है, 
तुझे आसमान छूना है मुझे जमीन होना है

आज फिर तेरा जिक्र हुआ,पहाड़ की बात चली
पता नहीं क्यों फ़िक्र हुआ पहाड़ की बात चली

भूख के डर से फक्त दौलत के बास्ते, 
बदल ही गए खास अपनों के रास्ते,.

उपदेश का भी तो वक्त मुकरर्र हो.दिन में कोई
हर समय ज्ञान की बातें भी अच्छी नहीं होती.

सरकारी इमारतों पर दीमक का राज है,
विकास का भी यहाँ अपना ही अंदाज है

तेरी हसरतों में मेट्रो के मॉल हैं,
और हम तलबगार हैं देवदारों के

ज़रा दिल से सोचना कितना बड़ा मजाक है,
मैं आज भी 'भोला' हूँ तू हो गया चालाक है

मर्द की चाह देखिये औरत चले घूंघट निकाल कर

रखो अपने पास अमीर होने की धौंस संभल कर.
सब्जी तो आपको भी खानी पड़ती है उबाल कर
या सन आता है या फिर भारत आता है कई बार
मैंने बचपन में देखा है अक्सर सिक्का उछाल कर
कितना गरीब रहा होगा वो चोर रात के अँधेरे में,
कोई बैंक ले उड़ा वो संदूक देखता रहा खंगाल कर
हकुमत से जवाबदेही हरगिज मांगियेगा हुजूर,
इस हाल पर कभी खुद से भी तो कोई सवाल कर
न राम गरीब न रहीम के घर में कोई मुफलिसी
भूखे को रोटी खिला दे, बस इतना सा कमाल कर
जिस दौर में दुनिया जीन के इश्क में पागल हुई है
मर्द की चाह देखिये औरत चले घूंघट निकाल कर

कानून जेब में रखने वाला सीधा कोर्ट में सरेंडर करेगा.....................


सरूर के ब्रांड के लिए जब भी वह कोई टेंडर करेगा
हसीनाओं के जिस्म की नुमाईश को कलेंडर करेगा
हम छोटे लोग हैं हर बार हम तो मिस्टेक ही करेंगे,
वो बड़ा कद्दावर है, वो जब भी करेगा बलंडर करेगा.
वो वायुयानों का शौक़ीन है देखना कई बैंक ले उड़ेगा
हम तो अप्लाई करेंगे, वो लोन के लिए आर्डर करेगा.
पुलिस कमजोर को ही हमेशा अरेस्ट करती आई यहाँ
कानून जेब में रखने वाला सीधा कोर्ट में सरेंडर करेगा.
बिजनस के नाम पर वह जब भी कोई स्केंडल करेगा
लूट में बड़े चैनलों- अखबारों को अपना वैंडर करेगा

चलणा वाया कुगती गद्दिया.......................


चलणा पोणा जुगती गद्दिया।
चलणा वाया कुगती गद्दिया।।
जिसदें हेस्सें जोत लखोये।
मिलणी नी मुकती गद्दिया।।
शंभू बणी ने भेडां चारदा।
संझ भ्यागा भकती गद्दिया।।
नोए गब्बू तांह- तांह बड़दे।
तुहणे- तुहणे हुजती गद्दिया।।
चेल चलंगी सिखणा पोंदी।
बणना पोंदा नुकती गद्दिया।।

नारे, ज्ञापन, धरणा पानी..............................


संस्कारां दा भरणा पानी
जीणा पानी, मरणा पानी
दुधे दा जां दुध करणा
पानिये दातां करणा पानी
मांऊ जम्मी दुध पियाये
पुत्रां ते नी सरणा पानी
तेलसांदी दा कम्म चलणा
माम्मे तडकें भरणा पानी
भर बरसाती सीरां कुडियां
तपनी तोंदी झरणा पानी
जां दिलां दा चंगर सुकणा
तां आखी चें बरणा पानी
नलके इक्कनी खोई लेया
बोडू, जीरू, झरणा पानी
मिनरल वाटर स्टेट्स सिम्बल
नारे, ज्ञापन, धरणा पानी

बिट्टी नरदोष,तिस टब्बरे च खोट

हन रुडदे औट, जाई मिलदे बरोट
पुत्र न्कम्मे हुँदै हिक्का जो सलोट
नुआं जो ग्लांदे रेह जेहडा मंदरोट
बिट्टी नरदोष,तिस टब्बरे च खोट

तन्दा तोड़दा कोई होर रेहा

गठा खोडदा कोई होर रेहा
तन्दा तोड़दा कोई होर रेहा
डक्का तोड़दा कोई होर रेहां
हुक्क्मां मोड़दा कोई होर रेहा
चंडा मारदा कोई होर रेहा
हत्थां जोड़दा कोई होर रेहा
पैरां ,बंददा कोई होर रेहां
मुंडकी मरोड़दा कोई होर रेहा
बिल्लियां नोलुआं छेह दित्ते
कुक्कडा होडदा कोई होर रेहा

शाबाश! जोहरियो आप हडताल पर ही रहना.

जी आने की बात थी, जी हुजूरी तक गए.
उसके पीछे पीछे हम लम्बी दूरी तक गए
चार किस्से क्या हुए बदनाम हम हो गए
फुरसतों में कौन थे जो बात पूरी तक गए

जीभा देयां सुआदडूआं पोणा पेटे जो है फाह
ठोकी-ठोकी निन्गला दा, लगणा है गलदाह

इक अभिनेता भी तो उसके अन्दर रहता है
हर नेता खुद को जनता का नौकर कहता है.

एक राजकुमारी जब कोई महारानी हो जाती है
लड़कपन का प्यार भी झुठी कहानी हो जाती है

घरानों के जो भी आभारी हो गए
संगठनों में वो ही प्रभारी हो गए

बड़ा दर्द होता था जब बीबी मांगती थी गहना
शाबाश! जोहरियो आप हडताल पर ही रहना.

ओहन सकेता थोड़े बैहड़ू ।।

खिल्लेयां खबड़ां जोड़े बैहड़ू।
जुंगल़ेयां तोड़ी दौड़े बैहड़ू।।
अंदां- कच्छां, चुंगां प्रैणीं।
हर फसला ही तोड़े बैहड़ू ।।
गोहरां गलिय़ां,नाल़ां खोल़ां।
मिरगां बड़े मरोड़े बैहड़ू।।
दूंदू -चौगू, बोल़ू- गोरू।
छग्गे-पक्के कौड़े बैहड़ू।।
हालिय़े जाहलू गल्लां लाये।
होये स्याणे छोड़े बैहड़ू।।
सिन्ना सुक्का मुम्हे अग्गें।
मारन नी तरफोड़े बैहड़ू।।
खुंड गडोयें रस्मां ताईं।
ओहन सकेता थोड़े बैहड़ू ।।

मेरे जिस्म की परछाई होगी

हां, फिर से उल्टी-सीधी, तिरछी- आड़ी बढ़ गई 
जनता के जो नौकर थे उनकी ·दिहाड़ी बढ़ गयी.
बिरादरी की बात थी विपक्ष भी तब चुप ही रहा
काफिलों में उनके भी चमचमाती गाडी बढ़ गयी

वो तो सिर्फ खूबसूरत फूलों की तस्वीरें खींचता है.
कभी उससे भी मिलना जो डालियों को सींचता है

तेरे हिस्से में जो आई होगी
मेरे हिस्से की रुसवाई होगी
मेरा यह वहम कि तेरा वजूद
मेरे जिस्म की परछाई होगी

उसका पाला अपनों से पडा होगा.............................


कम पढ़ा होगा, ज्यादा कढ़ा होगा
तभी तो हालात से खूब लड़ा होगा
वो हर बार झुक कर बात करता है
मुमकिन है उसका कद बड़ा होगा
भड़क उठता है आदाब कहने पर
वो स्वभाव से ही चिडचिड़ा होगा
ऊँची इमारतो के तेरे शाहर में भी
सूरज तो हर छत पर चढ़ा होगा
बुत को तराश कर खुदा बना दिया
हीरा कोयले की खान मैं पडा होगा
निकला फिर से राम वनवास पर
उसका पाला अपनों से पडा होगा
दरबार में सच कहने पर अडा रहा
उसने किसी कबीर को पढ़ा होगा
फिर यही सोच कर हुआ 'भावुक'
तन्हा राह में साथी कोई खडा होगा

थक चुके हैं वर्कर नारे लगाते हुए

सरकारी दफ्तर का कभी सच भी सुनाईये
कमिशन न देता हो ऐसा ठेकेदार बताईये.
ईमान का यह पाठ अजी हमको न पढ़ाईये
लूट का यह माल है, मिल बांट कर खाईये

झंडे लगाते हुए,दरियां बिछाते हुए
थक चुके हैं वर्कर नारे लगाते हुए

इस दौर में बस उन्ही के है जलवे
जो लोग चाटना जानते हैं तलवे

कितनों को खिलाया जाता है,कितनों को पिलाया जाता है
सियासत की विरासत का जब कोई वारिस बनाया जाता है
वो इतना काबिल भी नहीं है, जितना उसको बताया जाता है
क्या नोट बिछाकर ढेरों फिर उसका सिक्का चलाया जाता है

कोई इस दल में गए, कोई उस दल में गए

तेरे हसीं चेहरे पर मेरी सुल्तानी हो जाए
मेरा जो वजूद मिटटी मुल्तानी हो जाए
सोचो गर सच्ची यह झूठी कहानी हो जाए
छू कर तू मुझको परियों की रानी हो जाये

देश की इस सियासत को गहरे से खोलिए 
भारत मां की जय संग, जय भीम बोलिए

तू याद रख या भूल मुझे
तेरी हर अदा कबूल मुझे
तुझसे इक मुलाक़ात हुई
जग लगता है फिजूल मुझे.

इस तरह भी तो कई दोस्त दलदल में गए
कोई इस दल में गए, कोई उस दल में गए


पिता से हौसला, मां से दुआ मिले
इस तरह भी हर घर में खुदा मिले


बचपन चुरा के आती हो
बुढ़ापे से हार जाती हो
नादानी का नाम जवानी 
खुद पे क्यों इतराती हो


वो जो सियासत की आड़ में हैं।
सब के सब अपने जुगाड़ में हैं।।
चंबल मुफ्त में बदनाम,डाकू तो। 
कुछ संसद में कुछ तिहाड़ में हैं।।



हुस्न परवान चढ़ रहा है,गरूर होगा


बेटी की शादी में जो घर से दूर होगा
सोचो वो बाप कितना मजबूर होगा
दिल की बात जो जुबां पर चली आई
हरगिज वो नशे में जम कर चूर होगा
देवलू- बजंतरी को फरमान सुनाएगा
देव संसद में जो देवता का गूर होगा
मेरे हिस्से में मात आयेगी मालूम है
पर तेरे हिस्से में फैसला जरूर होगा
इसमें उसका भला क्या कसूर होगा
हुस्न परवान चढ़ रहा है,गरूर होगा
मनाली के हुस्न के जब भे चर्चे होंगे
साथ कोई मालाणा भी मशहूर होगा

मंगलवार, 2 फ़रवरी 2016

लोगों को ही लूटते लोकतंत्र देखे गए

धनवान जितने थे, पवित्र देखे गए.
और जो गरीब थे,  चरित्र देखे गए.

व्यवहार एकाएक विचित्र देखे गए.
मुसीबत के वक्त जब मित्र देखे गए.

नजाकत के दौर में ऐसे पात्र देखे गए.
पसीने पर जो भारी पडे इत्र देखे गए .

जब भी उनकी जीत के सूत्र देखे गए
वश में करने के तंत्र- मंत्र देखे गए.

जवानी में लौटने को चित्र देखे गए.
औ रूमानी दौर के प्रेम पत्र देखे गए.

सियासी गठजोड़ के ही सत्र देखे गए.
लोगों को ही लूटते लोकतंत्र देखे गए.


  






   



शनिवार, 30 जनवरी 2016

हम ठहरे फेसबुक की तरह और वो रहे ट्वीटर की तरह



जिस रेस्टोरेंट में आते हो आप कस्टमर की तरह.
रोटी के लिए काम करते हैं वहां हम वेटर की तरह.

बचपन के चंद दोस्त मिले अरसे बाद कुछ यूँ कर,
गुलाबी सर्दी में पंसदीदा पुराने किसी स्वेटर की तरह

जब तेरी याद आती है तो में फिर से लौट जाता हूँ,
कालेज के दिनों के उस पहले लव लैटर की तरह.

जलता है तन्हाई की रात में कोई आशिक पगला,
कडाके की ठण्ड में लगातार किसी हीटर की तरह.

कुछ कबीर को पढ़ लिया, कुछ फ़कीर मिल गए,
तब से अपना घर भी लगने लगा क्वार्टर की तरह.

मुकद्दर की पैमाईशों में भी साजिशें खूब हुई होंगी,
हम फुट की तरह और वो कद्दावर मीटर की तरह.

स्लेट की छतों से निजात पाई,आप भी देख लीजिये,
विकास उग आया है खूब पहाड़ पर लेंटर की तरह.

हमारे तो सब अधिकार बस आपके ही मोहताज़ रहे,
हम रहे स्टेट की तरह और आप हमेशा सेंटर की तरह.

जिन्हें परिभाषित किया है मीडिया ने लीडर की तरह,
लूटते रहे मिलकर मेरे देश को वही बड़े चीटर की तरह

सोशल मीडिया में भी उनके नाम का ख़ास रूतबा रहा,
हम ठहरे फेसबुक की तरह और वो रहे ट्वीटर की तरह.

ओरडीनरी से लेकर वॉल्वो तक के सफ़र में साथ रहे पर,
उस्ताद आप ही रहे, हम तो रहे बस कंडक्टर की तरह.

सुना है कंगना ब्रांड एम्बेसडर बन गयी अपने प्रदेश की,
पर कई कमलाह अब भी खड़े हें किसी खंडहर की तरह.

...........विनोद भावुक.................










मंगलवार, 26 जनवरी 2016

करदा कोई डाइटिंगा खांदा उब्बली के.

घोलां जे लगे तां हंडणा भी लगी पोंणा, 
इक दिन खिटां भी लगाणीयां छोरुआं

एथू तां फाकेयां हन हड्ड भी गाली ते, 
करदा कोई डाइटिंगा खांदा उब्बली के.

प्यांदे न पाणी जिथू तां छाबिलां लगाई के 
बिकणा लग्गा पाणी ओथू बोतल च पाई के

मेले में मिठास जलेबियों ने की है

तालों से शरारत चाबियों ने की है।
दरवाजों से गुफ्तगू खिड़कियों ने की है।।
कहते हुए ये बात बागवां को सुना कि।
गुलों से साजिश तितलियों ने की है।।
मधुमास कोई जब वनवास हुआ है ।
मेहंदी से शिकायत हथेलियों ने की है।।
किलकारियां तो बस्तियों तक रही हैं।
वारिसों से नफरतें हवेलियों ने की है।।
ससुराल से मायके में आना हुआ है ।
नवेली से चुहल सहेलियों ने की है।।
कुत्तों का काम तो भौंकना ही रहा है।
रात को मेहनत बिल्लियों ने की है।।
दिन तो रंगीन होलियों ने किये हैं ।
और रात रोशन दीवालियों ने की है।।
सरकारी नजर में रईस जो हो गए।
भूख से बगावत थालियों ने की है।।
जिस्म के रेशम से घर बना लिए हैं ।
जालों से चाहत मकड़ियों ने की है।।
गरीब के घर फिर चूल्हा नहीं जला ।
साजिश जब भी लकड़ियों ने की है।।
टमक बजा कर शुरू हुआ है दंगल ।
मेले में मिठास जलेबियों ने की है।।
बेशक दरगाह पर खूब सजदे हुए हैं ।
पाक इबादत तो कव्वालियों ने की है।।

पहलें लाणा पोने गितलू

दिलां दा रोग रंगाडी कुसजो क्या दसणा?
अपणा टिड्ड कुआड़ी कुसजो क्या दसणा ?

तां खुलने हास्से दे भितलू 
पहलें लाणा पोने गितलू

हस्सी लैया, खेली लेया, दिक्खी लेया जग,
मरी जाना जाहलू लोकां फूकी देणी अग्ग.

अनपढ़ पुहाल, शिवपुराण क्या करणा


छिणियां, थौहड़ू, बदाण क्या करणा।
जंगांह-बांही नी त्राण, क्या करणा।।
चाल़ेयां चेले देयां चाचू फसी मोआ।
संग्गैं आई फसे प्राण, क्या करणा।।
बैडरूमैं तिन्हां दें लग्गे डबल बैड्ड।
ऐथू पंदी पर है बछाण, क्या करणा।।
नदियां सुक्कियां रेह बरसातकड़ नाल़े।
चौंह घडिय़ां दा उफाण, क्या करणा।।

तां अर्जुने दा तीर कमाण क्या करणा।
मारे धरती हेठ जे बाण क्या करणा।।
शंभू बणी के सैह भेडां रेहया चारदा।
अनपढ़ पुहाल, शिवपुराण क्या करणा।।
तोंद जांभी तपी तां झरी गेया मोआ।
बरसाती सैह पाणी कडाण क्या करणा।।

नी समझाणी अपनी लाड़ी बडक़ा जी

असां अनाड़ी तुंसा खलाड़ी बडक़ा जी।
सबतों बखरी ठुक तुहाड़ी बडक़ा जी।।
तिस टब्बरे दी हालत माड़ी बडक़ा जी
जिसदा मेड़ी, बड़ा गराड़ी बडक़ा जी।।
सुखें सौणा, इसा गल्ला गठी बन्नी लैह।
नी समझाणी अपनी लाड़ी बडक़ा जी।।
बाड़ां देई जां बचाई गांई-सूअरां तें।।
दित्ती बांदरां फसल उजाड़ी बडक़ा जी।।
हर कुसी ने नी बगाडऩी बडक़ा जी।
सदा नी रखणी खड़ी कयाड़ी बडक़ा जी।।
रुकदी बेशक हड़सर गाड़ी बडक़ा जी।
अपणी तां फुक छतराड़ी बडक़ा जी।।
पल्लैं सबकिछ, किस्मत माड़ी बडक़ा जी।
सै डलहौजी, असां चुआड़ी बडक़ा जी।।
गास्से पर नित ही नी बदलां दी चल्लैं।
निकलैं सूरज बदलां फाड़ी बडक़ा जी।।
इंगलिश तां हुण दुनिया बोलणा लग्गी है।
लिखदा भावुक गीत पहाड़ी बडक़ा जी।।

बड़े गराड़ी लुढक़दे मिल्ले।


अणपढ पंडे भुडक़दे मिल्ले।
हन मशटंडे बुडक़दे मिल्ले।।
कुछ थे कालु हट्टिया बैठी।
चणेयां जो ही तुडक़दे मिल्ले।।
होए छग्गे तां लाग्गे लग्गे।
दुंदु थे तां दुडक़दे मिल्ले।।
दाणे निसरे तां पुज्जे तोत्तेे।
बरसाती मीनक उडक़दे मिल्ले।।
तारू दिक्खे, पतणां रूड़दे।
बड़े गराड़ी लुढक़दे मिल्ले।
नोट खुडक़दे जिन्हां जो रेहंदे।
लाले सैह कुडक़दे मिल्ले।।

भला कौन देखता है जा घर लुहारों के


दिल से कभी पूछ लिया पहरेदारों के।
बेपर्दा राज हो गए कई इज्जतदारों के।।
ब्रांड की डिमांड में तो मिडल क्लास भी।
हैं लोग आदी हो गए अब इश्तहारों के।।
बाज़ार का विकास भी दिखने लगता है।
आ जाते हैं जब भी मौसम त्यौहारों के।।
लोहा कूट कर जो यहां रोटी कमाते रहे।
भला कौन देखता है जा घर लुहारों के।।
धीरे बोलने की आदत डाल लो या फिर।
अजी कभी तो मरोडिये कान दीवारों के।।
अभिनय था बनावटी, अदाएं दिखावटी।
जब चरित्र में ही खोट थी किरदारों के।।
तेरी आरजू में तो बसे मेट्रो के मॉल हैं।
और मेरी हसरतों में है साए देवदारों के।।

जेबकतरों से रहना ज़रा सावधान मेरे भाई

सरकारी लूट का है यहां प्रावधान मेरे भाई।
जेबकतरों से रहना ज़रा सावधान मेरे भाई।।
डाकुओं ने डेरे संसद में लगा लिए हैं बेख़ौफ़।
बेशक इस देश में है इक संविधान मेरे भाई।।
नरेगा की लूट में जो खुली छूट मिल गई है।
तर गए इसमें तो कितने ही प्रधान मेरे भाई।।
इस दौर में चलो थोक में मुखोटे भी खरीद लें।
फैशन के हिसाब से हो तेरा परिधान मेरे भाई।।
बहरी व्यवस्था खुद ही जब व्यवधान बनी हो।
गूंगे की समस्या का नहीं समाधान मेरे भाई।।
भ्रष्टाचार के संक्रमण से मेरा मुल्क ग्रसित है।
इस रोग पर भी हो कोई अनुसंधान मेरे भाई।।
शोषण की बुनियाद पर जो हुक्म्मरां खड़ा है।
फिर बदल दो वह विधि का विधान मेरे भाई।।
शहर में तो साजिशों की फसलें उग आई है।
चलो गांव चल बीजते है गेहूं-धान मेरे भाई।।

तूं फुल पेज विज्ञापन है.

मेरा छपना मजबूरी है,
तुझसे ही अपनापन है.
मैं सिंगल कॉलम ज्ञापन हूँ 
तूं फुल पेज विज्ञापन है.

दा लग्गा तां छिलणा मितरां.

झफी पाई ने मिलणा मितरां.
दा लग्गा तां छिलणा मितरां.
खरे ध्याड़े नी हिलणा मितरां
वक्त पेया तां किलणा मितरां

सीरेया तिन्ही घरूणा तां

जे भाड़े ने परसूणा तां।
कितणा की दुध दूणा तां।।
खास परोणा जाहलू ओणा।
न्यौड़े ने सलूणा तां।।
नुंऐं दिक्खिया झुंड कुआड़ी।
है केई किछ गलूणा तां।।
बड़ा जे बणना लुगड़मार।
बछाणे च मतरूणा तां।।
दो पखाने, चौर उल्टियां।
अंग-अंग सतरूणा तां।।
वक्त पेया पखलें मुलखें।
अपणा कुण पछणूणा तां।।
धरती पर रैहणा सिक्ख।
गास्से ने मलहूणा तां।।
गांदा- गांदा बाबा बोलें।
सीरेया तिन्ही घरूणा तां।।