शनिवार, 30 जनवरी 2016

हम ठहरे फेसबुक की तरह और वो रहे ट्वीटर की तरह



जिस रेस्टोरेंट में आते हो आप कस्टमर की तरह.
रोटी के लिए काम करते हैं वहां हम वेटर की तरह.

बचपन के चंद दोस्त मिले अरसे बाद कुछ यूँ कर,
गुलाबी सर्दी में पंसदीदा पुराने किसी स्वेटर की तरह

जब तेरी याद आती है तो में फिर से लौट जाता हूँ,
कालेज के दिनों के उस पहले लव लैटर की तरह.

जलता है तन्हाई की रात में कोई आशिक पगला,
कडाके की ठण्ड में लगातार किसी हीटर की तरह.

कुछ कबीर को पढ़ लिया, कुछ फ़कीर मिल गए,
तब से अपना घर भी लगने लगा क्वार्टर की तरह.

मुकद्दर की पैमाईशों में भी साजिशें खूब हुई होंगी,
हम फुट की तरह और वो कद्दावर मीटर की तरह.

स्लेट की छतों से निजात पाई,आप भी देख लीजिये,
विकास उग आया है खूब पहाड़ पर लेंटर की तरह.

हमारे तो सब अधिकार बस आपके ही मोहताज़ रहे,
हम रहे स्टेट की तरह और आप हमेशा सेंटर की तरह.

जिन्हें परिभाषित किया है मीडिया ने लीडर की तरह,
लूटते रहे मिलकर मेरे देश को वही बड़े चीटर की तरह

सोशल मीडिया में भी उनके नाम का ख़ास रूतबा रहा,
हम ठहरे फेसबुक की तरह और वो रहे ट्वीटर की तरह.

ओरडीनरी से लेकर वॉल्वो तक के सफ़र में साथ रहे पर,
उस्ताद आप ही रहे, हम तो रहे बस कंडक्टर की तरह.

सुना है कंगना ब्रांड एम्बेसडर बन गयी अपने प्रदेश की,
पर कई कमलाह अब भी खड़े हें किसी खंडहर की तरह.

...........विनोद भावुक.................










मंगलवार, 26 जनवरी 2016

करदा कोई डाइटिंगा खांदा उब्बली के.

घोलां जे लगे तां हंडणा भी लगी पोंणा, 
इक दिन खिटां भी लगाणीयां छोरुआं

एथू तां फाकेयां हन हड्ड भी गाली ते, 
करदा कोई डाइटिंगा खांदा उब्बली के.

प्यांदे न पाणी जिथू तां छाबिलां लगाई के 
बिकणा लग्गा पाणी ओथू बोतल च पाई के

मेले में मिठास जलेबियों ने की है

तालों से शरारत चाबियों ने की है।
दरवाजों से गुफ्तगू खिड़कियों ने की है।।
कहते हुए ये बात बागवां को सुना कि।
गुलों से साजिश तितलियों ने की है।।
मधुमास कोई जब वनवास हुआ है ।
मेहंदी से शिकायत हथेलियों ने की है।।
किलकारियां तो बस्तियों तक रही हैं।
वारिसों से नफरतें हवेलियों ने की है।।
ससुराल से मायके में आना हुआ है ।
नवेली से चुहल सहेलियों ने की है।।
कुत्तों का काम तो भौंकना ही रहा है।
रात को मेहनत बिल्लियों ने की है।।
दिन तो रंगीन होलियों ने किये हैं ।
और रात रोशन दीवालियों ने की है।।
सरकारी नजर में रईस जो हो गए।
भूख से बगावत थालियों ने की है।।
जिस्म के रेशम से घर बना लिए हैं ।
जालों से चाहत मकड़ियों ने की है।।
गरीब के घर फिर चूल्हा नहीं जला ।
साजिश जब भी लकड़ियों ने की है।।
टमक बजा कर शुरू हुआ है दंगल ।
मेले में मिठास जलेबियों ने की है।।
बेशक दरगाह पर खूब सजदे हुए हैं ।
पाक इबादत तो कव्वालियों ने की है।।

पहलें लाणा पोने गितलू

दिलां दा रोग रंगाडी कुसजो क्या दसणा?
अपणा टिड्ड कुआड़ी कुसजो क्या दसणा ?

तां खुलने हास्से दे भितलू 
पहलें लाणा पोने गितलू

हस्सी लैया, खेली लेया, दिक्खी लेया जग,
मरी जाना जाहलू लोकां फूकी देणी अग्ग.

अनपढ़ पुहाल, शिवपुराण क्या करणा


छिणियां, थौहड़ू, बदाण क्या करणा।
जंगांह-बांही नी त्राण, क्या करणा।।
चाल़ेयां चेले देयां चाचू फसी मोआ।
संग्गैं आई फसे प्राण, क्या करणा।।
बैडरूमैं तिन्हां दें लग्गे डबल बैड्ड।
ऐथू पंदी पर है बछाण, क्या करणा।।
नदियां सुक्कियां रेह बरसातकड़ नाल़े।
चौंह घडिय़ां दा उफाण, क्या करणा।।

तां अर्जुने दा तीर कमाण क्या करणा।
मारे धरती हेठ जे बाण क्या करणा।।
शंभू बणी के सैह भेडां रेहया चारदा।
अनपढ़ पुहाल, शिवपुराण क्या करणा।।
तोंद जांभी तपी तां झरी गेया मोआ।
बरसाती सैह पाणी कडाण क्या करणा।।

नी समझाणी अपनी लाड़ी बडक़ा जी

असां अनाड़ी तुंसा खलाड़ी बडक़ा जी।
सबतों बखरी ठुक तुहाड़ी बडक़ा जी।।
तिस टब्बरे दी हालत माड़ी बडक़ा जी
जिसदा मेड़ी, बड़ा गराड़ी बडक़ा जी।।
सुखें सौणा, इसा गल्ला गठी बन्नी लैह।
नी समझाणी अपनी लाड़ी बडक़ा जी।।
बाड़ां देई जां बचाई गांई-सूअरां तें।।
दित्ती बांदरां फसल उजाड़ी बडक़ा जी।।
हर कुसी ने नी बगाडऩी बडक़ा जी।
सदा नी रखणी खड़ी कयाड़ी बडक़ा जी।।
रुकदी बेशक हड़सर गाड़ी बडक़ा जी।
अपणी तां फुक छतराड़ी बडक़ा जी।।
पल्लैं सबकिछ, किस्मत माड़ी बडक़ा जी।
सै डलहौजी, असां चुआड़ी बडक़ा जी।।
गास्से पर नित ही नी बदलां दी चल्लैं।
निकलैं सूरज बदलां फाड़ी बडक़ा जी।।
इंगलिश तां हुण दुनिया बोलणा लग्गी है।
लिखदा भावुक गीत पहाड़ी बडक़ा जी।।

बड़े गराड़ी लुढक़दे मिल्ले।


अणपढ पंडे भुडक़दे मिल्ले।
हन मशटंडे बुडक़दे मिल्ले।।
कुछ थे कालु हट्टिया बैठी।
चणेयां जो ही तुडक़दे मिल्ले।।
होए छग्गे तां लाग्गे लग्गे।
दुंदु थे तां दुडक़दे मिल्ले।।
दाणे निसरे तां पुज्जे तोत्तेे।
बरसाती मीनक उडक़दे मिल्ले।।
तारू दिक्खे, पतणां रूड़दे।
बड़े गराड़ी लुढक़दे मिल्ले।
नोट खुडक़दे जिन्हां जो रेहंदे।
लाले सैह कुडक़दे मिल्ले।।

भला कौन देखता है जा घर लुहारों के


दिल से कभी पूछ लिया पहरेदारों के।
बेपर्दा राज हो गए कई इज्जतदारों के।।
ब्रांड की डिमांड में तो मिडल क्लास भी।
हैं लोग आदी हो गए अब इश्तहारों के।।
बाज़ार का विकास भी दिखने लगता है।
आ जाते हैं जब भी मौसम त्यौहारों के।।
लोहा कूट कर जो यहां रोटी कमाते रहे।
भला कौन देखता है जा घर लुहारों के।।
धीरे बोलने की आदत डाल लो या फिर।
अजी कभी तो मरोडिये कान दीवारों के।।
अभिनय था बनावटी, अदाएं दिखावटी।
जब चरित्र में ही खोट थी किरदारों के।।
तेरी आरजू में तो बसे मेट्रो के मॉल हैं।
और मेरी हसरतों में है साए देवदारों के।।

जेबकतरों से रहना ज़रा सावधान मेरे भाई

सरकारी लूट का है यहां प्रावधान मेरे भाई।
जेबकतरों से रहना ज़रा सावधान मेरे भाई।।
डाकुओं ने डेरे संसद में लगा लिए हैं बेख़ौफ़।
बेशक इस देश में है इक संविधान मेरे भाई।।
नरेगा की लूट में जो खुली छूट मिल गई है।
तर गए इसमें तो कितने ही प्रधान मेरे भाई।।
इस दौर में चलो थोक में मुखोटे भी खरीद लें।
फैशन के हिसाब से हो तेरा परिधान मेरे भाई।।
बहरी व्यवस्था खुद ही जब व्यवधान बनी हो।
गूंगे की समस्या का नहीं समाधान मेरे भाई।।
भ्रष्टाचार के संक्रमण से मेरा मुल्क ग्रसित है।
इस रोग पर भी हो कोई अनुसंधान मेरे भाई।।
शोषण की बुनियाद पर जो हुक्म्मरां खड़ा है।
फिर बदल दो वह विधि का विधान मेरे भाई।।
शहर में तो साजिशों की फसलें उग आई है।
चलो गांव चल बीजते है गेहूं-धान मेरे भाई।।

तूं फुल पेज विज्ञापन है.

मेरा छपना मजबूरी है,
तुझसे ही अपनापन है.
मैं सिंगल कॉलम ज्ञापन हूँ 
तूं फुल पेज विज्ञापन है.

दा लग्गा तां छिलणा मितरां.

झफी पाई ने मिलणा मितरां.
दा लग्गा तां छिलणा मितरां.
खरे ध्याड़े नी हिलणा मितरां
वक्त पेया तां किलणा मितरां

सीरेया तिन्ही घरूणा तां

जे भाड़े ने परसूणा तां।
कितणा की दुध दूणा तां।।
खास परोणा जाहलू ओणा।
न्यौड़े ने सलूणा तां।।
नुंऐं दिक्खिया झुंड कुआड़ी।
है केई किछ गलूणा तां।।
बड़ा जे बणना लुगड़मार।
बछाणे च मतरूणा तां।।
दो पखाने, चौर उल्टियां।
अंग-अंग सतरूणा तां।।
वक्त पेया पखलें मुलखें।
अपणा कुण पछणूणा तां।।
धरती पर रैहणा सिक्ख।
गास्से ने मलहूणा तां।।
गांदा- गांदा बाबा बोलें।
सीरेया तिन्ही घरूणा तां।।

जिंदड़ी बारदे रैहण स्रीक


फिण फणकारदे रैहण स्रीक।
बुडकां मारदे रैहण स्रीक।।
कदी हिलाणा बुत्ता नहीं।
बुत्ते सारदे रैहण स्रीक।।
पट्टी बंड जांदी होई।
बीड़ा खारदे रैहण स्रीक।।
सिर मत्था कितणा लाणा।
जितदे हारदे रैहण स्रीक।।
कारज होये, मरणी पोयें।
मुंडां फारदे रैहण स्रीक।।
बड्डेयो बसुआर नी लाणा।
लूणा छारदे रैहण स्रीक।।
खंड खपरे टब्बरां दिक्खे।
रागां पारदे रैहण स्रीक।।
नेड़ पड़ेस जां मैहरमचारी।
जिंदड़ी बारदे रैहण स्रीक।।

बतां कने सडक़ां

बतां कने सडक़ां
नोईयां सडक़ां ग्रांये पुजियां
बत्तां पुराणियां मुक्कियां
सैह गल्ला भी लुक्कियां
सोगी सोगी कुआलें चढ़देयां
हफदेंयां/ थकदेयां
इक दूजे ने करदे थे।
सैह टयाले बौंछें मल्ले
जित्थु बस्सों लेई
परणे ने पसीने पूंज्जी
सुख- दुख लगदे थे।
खरे पुल़ पाए
छाड़ां दे रवाज मुक्के
सैह तरंगडियां भी मुक्कियां
जिन्हां मिली- जुली पांदे थे।
नोईयां सडक़ां ग्रांये पुजियां
बत्तां पुराणियां मुक्कियां
सैह गल्ला भी लुक्कियां।।।

इंटरनेट के दौर में ख़त का जवाब आएगा।।

न रुबाब ही न दौलत का हिसाब आएगा।।
काम तो तेरे हर जगह तेरा बर्ताब आएगा।।
जब जनता गूंगी है और निजाम बहरा है।
भूख बस्ती में है, हवेली मैं कबाब आएगा।।
कलम की आबरू भी गरीब की बेटी जैसी।
कभी दबाव आएगा कभी तनाव आएगा।।
सियासत से मांगेंगे तब लगान का हिसाब।
अवाम की अदालत में जब नबाव आएगा।।
कहर आसमां से बरपे, जमीं दगा दे जाए।
वार कुदरत का, करना कहां बचाव आएगा।।
मुहाने पर घर बनाए उन्हें कौन समझाए।
उस सूखे दरिया में पानी बेहिसाब आएगा।।
बेताव दिल के हिस्से रुस्वाई का है मौसम।
नाकाम मुहब्बत का कोई खिताब आएगा।।
इक जुबान की खातिर कौन जान देता है।
है चेहरे की जरूरत, काम नकाब आएगा।।
इंटरनेट के दौर में ख़त का जवाब आएगा।।
दिल फिर भी कहता है इन्कलाब आएगा।।

वो फिर मिले, कुछ लोग जले ........

वो फिर मिले, कुछ लोग जले ........
वो फिर मिले
मुस्कराते हुए
कुछ छुपाते हुए
दूर हुए शिकवे गिले
खूब घुले मिले
पर होंठ सिले
कुछ लोग जले
नहीं उतरी बात गले
पर यह सच है
बहुत कुछ भूल जाने
नया कुछ रचाने
वो फिर मिले .

यह कैसा सवाल है

कविता जैसा कुछ )
यह कैसा सवाल है ...........
एक कपनी है/
एक सरकार है/
क्या सरकार कंपनी है?
या क्या कंपनी सरकार है ?
यह देश किसका माल है ?
और ..
चटटाक !
मेरा गाल लाल है/
पन्द्रह साल के किशोर का
यह कैसा सवाल है.

विचारधाराओं के बीच विचारहीन

(कविता जैसा कुछ)
विचारधाराओं के बीच विचारहीन
यही कोई नब्बे के दशक के शुरूआती साल/
गाँव में अभी नल नहीं लगे थे/
बाबड़ी पर नहाते हुए/
बाबड़ी की सफाई की/
साप्ताहिक कार्य योजना बनाते हुए/
एकमत होने वाले/
मेरे चार लंगोटिये/
बढती उम्र के साथ/
बौद्धिक चिंतन सीख गए हैं.
चिंतन के लिए जरूरी है/
आपके पास हो कोई विचारधारा/
विचारधाराओं से बंधे मेरे मित्र/
अब नहीं होते चिंतित/
अब नहीं होते एकमत/
उस बाबड़ी की चिंता में/
विचारधारा आ जाती है आड़े/
और मैं विचारहीन हो जाता हूँ.

सूरजे दुहणे दा कारोबार, होई भी सकदा


सूरजे दुहणे दा कारोबार, होई भी सकदा।
धुप्पा दा कोई साहूकार, होई भी सकदा।।
होणा लज्गे ग्लोबली करार, होई भी सकदा।
भ्यागा पर शांह दा अधिकार, हाई भी सकदा।।
पावर टिल्लरां दा एकाधिकार, होई भी सकदा।
मुश्कल ही बचें कोई लुहार, होई भी सकदा।।
डीएनए टेस्टे तिक्कर जां गल्ल जाई पुज्जी है।
किच्छ किच्छ बोलदी नुहार, होई भी सकदा।।
ऑनलाइन तां फॉरेन ते हुन ऑपरेट ड्रग रैकेट।
बदनाम झूठे मलाणा- चौहार होई भी सकदा।।

खाता पीता लाहे दा,

खाता पीता लाहे दा,
बाकी नादिरशाहे दा.
( जो खा पी लेंगे  वही अपना है, बाकि तो नादिरशाह जैसे लुटेरे लूट कर ले जायेंगे  )

वो जो बचपन में अपने दादा की परी थी , खुद दादी बनी तो वो लावारिस मरी थी।।

आज चेताते हैं वो आ जा हरकतों से बाज
कल तक भाता था जिनको मेरा हर अंदाज

जख्मों पर नमक भी छिडकता है कभी कभी
हुस्न हर वक्त कहाँ इश्क पर जान छिडकता है

वो जो बचपन में अपने दादा की परी थी 
खुद दादी बनी तो वो लावारिस मरी थी

हमने यह दौलत बड़ी मेहनत से कमाई है
अपना खजाना पाश,जिब्रान और परसाई है

उपदेश की बात खोटी है।
भूखे का धर्म रोटी है ।।
अपनी- अपनी दुकानें है,
कहीं टोपी, कहीं चोटी है ।।

कुदरत ने यह हक़ सिर्फ मां को दिया है
कौन है जिसने मां का दूध नहीं पिया है

क्यों छुपायें हम, खामियां अपनी ।
खुद गवाही दें, नाकामियां अपनी ।।
फितरत ही नहीं आई, जीतते कैसे।
क्या दिखाएं हम, नादानियां अपनी ।।

इधर शहादत जारी है, उधर सियासत भारी है.
इधर जां हथेली पर, उधर जुबां पे मारामारी है.

फिक्स कमीशन अब तक है हर इक टेंडर में 
आओ मिल कर बदलें कुछ इस बार कलेंडर में 

एयर कंडीशनर ब्लोअर की, दासी हवा है आज- कल

दिन बेशक तरो- ताज़े, बासी हवा है आज कल.
छोड़ दी पतंग उड़ना, सियासी हवा है आज कल.
उस जोश का क्या हुआ, वो होश गुम कहां हुआ
है छींकना और थूकना, उबासी हवा है आज कल
गांव में अठखेलियां थीं,यह साजिशों का शहर है,
अजब सी खामोशियां है, उदासी हवा है आज कल
रावी सुरंगों में जा घुसी, है बोतल में बंद ब्यास हुई
अब हर नदी सुखी पड़ी, प्यासी हवा है आज कल
सुना है ओक्सिजन पर, अब कार्बन भारी होने लगी
एयर कंडीशनर ब्लोअर की, दासी हवा है आज- कल

औरत की बात छेडिये मर्द अपनी जात पर आ जाते है ।।

कोंई किसी को इस कद्र है चाहता ।
बदले में उससे कुछ नहीं है चाहता।

घर में पैदा बेटा हो, या हो मां का देहांत  
फेसबुक पर ही होती है सबकी भूख शांत।। 

अब नेताओं के गालों के नाम स्याही हो गई।
सियासी मुजरों में नंगी सरेआम स्याही हो गई।।
अब सुर्ख़ियों में रह गए बस राग दरबारों के, 
कलम गिरवी हो गई, बदनाम स्याही हो गई।।


मदद की जगह वे मशविरों की सौगात पर आ जाते है 
हैसियत वाले भी जल्द अपनी औकात पर आ जाते हैं।।
सरकारी कवायद है यह ' मेरी' लाडली का शोर बहुत
औरत की बात छेडिये मर्द अपनी जात पर आ जाते है 
।।

मां की गाली मिसाल जिनकी जुबान की है  
उन्ही के हवाले मशाल महिला उत्थान की है
 

सर्पां जो डंगणा, डंगु स्खाणा लज्गे।

सर्पां जो डंगणा, डंगु स्खाणा लज्गे। 
घोड़ेयां जो दौड़णा, गद्दे पढ़ाणा लज्गे।। 

अंदां कच्छां मारण छाली 
एबी बैतण,अणसिख हाली।। 

क्या गठणी-त्रुपणी,कितणी निहालप सीणी  
वाजपेञी दियां यादां बिच चिंदे बडी प्रीणी ।। 

घर घर सड़कां,कुअाल नी मिलणे 
चिड़ीयां तितर मोनाल नी मिलणे।। 

बेशक मिये मनाली मिलणा, पर कदी बंजार भी घुमणा 
 संझ कदी तां सेंज भी पाणी, सोगी कदी मलाणा चलणा