नदियां निचोड़ लेंगे,दरख्त उखाड़ देंगे।
लूट यूं रही तो वो सब कुछ उजाड़ देंगे।।
बांटते रहे नौजवान को ऐसी तालीम तो।
चंद रहबर वतन का नक्शा बिगाड़ देंगे।।
वैसे तो उन्होंने अपने दुश्मन से जीती हर लड़ाई है।
हर बार दूसरे के कंधे पर रख कर बन्दूक चलाई है।।
वो तो बुलंदियां ढूंढते रहे आसमान में।
हम इंतज़ार करते रहे उनका चौगान में।
दौलत से खरीद सकता है जो दुनिया भर की खुशियां।
मिलने से कतराता है कि हम आंसूओं का कारोबार करते हैं।
रिश्वत में वो सोने के जेवर देना चाहता है।
बदले में मुझसे मेरे तेवर लेना चाहता है।।
आँखों का सब खारा जल।
सूख चुका है दोस्त कल।।
होंठों ने भी किया है छल।
लूट लिए हैं हंसी के पल।।
तन्हाईयों के घर में उदासी से घिरा हूं।
बेघर हूं बेशक पर किसी का आसरा हूँ।।
वो इक नदी जो बोतल में समा गई थी।
हां मैं उस नदी का ही आखिरी सिरा हूँ।।
अगर आप दलों की दलदल में शामिल नहीं हैं।
फिर तो आप सरकारी काम के काबिल नहीं हैं।।
कभी पतझड़ की तरह,कभी सावन की तरह।.
जिंदगी भी रंग बदलती रही मौसम की तरह।।
तस्वीरों में सिमट आए,कई अपने कई पराये।
मिला जब कोई कॉलेज की अलबम की तरह।।