बर्फीले रेगिस्तान में छह माह के लिए जिंदगी कैद
शिमला. सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण और दुनिया के सबसे ऊंचे सड़क मार्गो में शुमार मनाली—लेह सड़क मार्ग को सीमा सड़क संगठन ने आधिकारिक तौर पर 6 माह के लिए बंद कर दिया है।
बर्फबारी के चलते 1 नवंबर से 15 अप्रैल तक 35 हजार की आबादी वाले जिले लाहौल—स्पीति के कई दर्रो से होकर गुजरने वाले 222 किलोमीटर लंबे मार्ग पर वाहनों की आवाजाही भी बंद रहेगी। वहीं, लाहौल—स्पीति जिला भी छह माह के लिए शेष विश्व से कट जाएगा। इस दौरान यहां आने—जाने का एकमात्र जरिया हेलीकॉप्टर ही होगा।
इस मार्ग से लेह स्थित सेना के बेस कैंप के लिए रसद पहुंचाई जाती है। इस सड़क के रख रखाव का जिम्मा सीमा सड़क संगठन के पास है। 15 नवंबर के बाद सरकार इस मार्ग वाहन ले जाने पर पाबंदी लगाती है। इस दौरान सेना की रसद पठानकोट—जम्मू मार्ग से भेजी जाएगी।
सीमा सड़क संगठन दीपक परियोजना के मुख्य अभियंता आईआर माथुर ने रविवार को इस मार्ग के बंद किए जाने की घोषणा की। लाहौल घाटी में लोगों की आमदनी का मुख्य जरिया आलू और मटर की खेती ही है। छह माह तक लोग खेती पर खूब मेहनत करते हैं। हालांकि लाहौल—स्पीति के कई लोगों ने यहां से बाहर भी घर बना रखे हैं, लेकिन 60 फीसदी लोग सर्दी में भी यहीं रहना पसंद करते हैं।
घाटी के लोगों के लिए आसान नहीं यह समय काटना
कबायली जिले के लोगों के लिए बर्फबारी के बीच दौर रहना किसी चुनौती से कम नहीं है। सर्दियां शुरू होते ही यहां के बाशिंदों की धुकधुकी बढ़ जाती है। समुद्रतल से करीब 13050 फुट की ऊंचाई वाले रोहतांग र्दे पर बर्फ गिरते ही जिले में जिंदगी छह माह के लिए बर्फीले रेगिस्तान में कैद हो जाती है। लोगों ने छह माह के लिए राशन और अन्य जरूरी सामान इकट्ठा कर लिया है।
राशन पर सरकार लोगों को सब्सिडी दी जाती है। लोगों के लिए सबसे बड़ी परेशानी तक होती है जब कोई बीमार हो जाता है। पिछली बार भी गंभीर रूप से बीमार लोग कई दिन जिले में ही फंसे रहे। क्षेत्र में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं न होने के कारण लोगों से हेलीकॉप्टर कुल्लू पहुंचाया गया था। 15 नवंबर सीमा सड़क संगठन कोकसर पुल को उखाड़ लेता है। इस बार इसे नहीं उखाड़ा जाएगा।
रोहतांग टनल पर टिकी आस
सर्दियों में भी लाहौल स्पीति देश दुनिया से जुडा़ रहे, इसकी आस रोहतांग टनल पर ही टिकी है। कारगिल युद्ध के बाद रोहतांग टनल बनाने की घोषणा हुई थी। मई 2001 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने टनल का शिलान्यास किया था। 8.8 किलोमीटर लंबी सुरंग बनने से मनाली—लेह के बीच 40 किलोमीटर की दूरी कम हो जाएगी। 2004 की कीमतों के अनुसार सुरंग के निर्माण पर 1355.82 करोड़ रुपए खर्च होने थे।
शिलान्यास को आठ साल बीत जाने के बाद भी सुरंग का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया है। लोगों में इस बात को लेकर रोष है कि सरकार इतने साल से इस समस्या का कोई हल नहीं निकाल पाई है। यदि यह टनल बन जाती है तो सेना को पहले की तुलना में जल्दी रसद मिल सकेगी। वहीं पर्यटन क्षेत्र में भी विकास की संभावनाएं और बढ़ेंगीं।
moolywaan vichaar
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