बच्चे पूछ रहे हैं क्या बना है खाने मे
माना कि कद्रदान कम ही हैं जमाने में।
पर क्या बुराई है खुद को आजमाने में।।
इतनी रहमत तू जरूर मुझे बख्श मौला।
कि उम्र गुजरे मेरी कोई बस्ती बसाने में।।
बडे चाव से बांटता रहूं मैं अपनी दौलत।
कई गजलें नज्में नगमे हैं मेरे खजाने में।।
जिससे कोई रिस्ता न हो लहू का कभी।
गुरेज न करूं उसको अपना बनाने में।।
कुछ तो कद्र कर तू मेरी मुहब्बत की।
ता उम्र गुजार दी मुझको आजमाने में।
उसको मुकम्मल नहीं समझा कभी मैंने
जिक्र तेरा न आया मेरे जिस तराने में।।
कहने भर को जिंदा जो मुझसे है रखा।
खत्म कर ताल्लुक मजा गर न निभाने में।।
दिल आया आखिर उसी दिल जले पर ।
करार जिसको आए है दिल दुखाने में।।
कम नहीं इस शहर में दुश्मनों की कमी।
पर कुछ वाहवाही दे जाते हैं अनजाने में।।
एक लम्हे में सारी एक जिंदगी जी ली।
एक उम्र भी बिताईहै तुझको पाने में।।
ठंडा चूल्हा है बर्तन भी खाली खाली।
बच्चे पूछ रहे हैं क्या बना है खाने मेें।।
(इस गजल को मुकम्मल करने में श्रदेय कीर्ति राणा, मनु मिश्रा,दिनेश कुमार, राकेश पथरिया व डॉ. अजय पाठक का हार्दिक आभार)
माना कि कद्रदान कम ही हैं जमाने में।
पर क्या बुराई है खुद को आजमाने में।।
इतनी रहमत तू जरूर मुझे बख्श मौला।
कि उम्र गुजरे मेरी कोई बस्ती बसाने में।।
बडे चाव से बांटता रहूं मैं अपनी दौलत।
कई गजलें नज्में नगमे हैं मेरे खजाने में।।
जिससे कोई रिस्ता न हो लहू का कभी।
गुरेज न करूं उसको अपना बनाने में।।
कुछ तो कद्र कर तू मेरी मुहब्बत की।
ता उम्र गुजार दी मुझको आजमाने में।
उसको मुकम्मल नहीं समझा कभी मैंने
जिक्र तेरा न आया मेरे जिस तराने में।।
कहने भर को जिंदा जो मुझसे है रखा।
खत्म कर ताल्लुक मजा गर न निभाने में।।
दिल आया आखिर उसी दिल जले पर ।
करार जिसको आए है दिल दुखाने में।।
कम नहीं इस शहर में दुश्मनों की कमी।
पर कुछ वाहवाही दे जाते हैं अनजाने में।।
एक लम्हे में सारी एक जिंदगी जी ली।
एक उम्र भी बिताईहै तुझको पाने में।।
ठंडा चूल्हा है बर्तन भी खाली खाली।
बच्चे पूछ रहे हैं क्या बना है खाने मेें।।
(इस गजल को मुकम्मल करने में श्रदेय कीर्ति राणा, मनु मिश्रा,दिनेश कुमार, राकेश पथरिया व डॉ. अजय पाठक का हार्दिक आभार)
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