सौ करोड़ भारतीयों की भावनाएं आख़िरकार अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में तार तार होने से बच गई। लिकर किंग के नाम से मशहूर बिज़नेसमैन विजय माल्या ने राष्ट्रपिता की पीतल की प्लेट-कटोरी, चप्पल, घड़ी और ऐनक दूसरे देश जाने से बचा ली। बापू की इस अमानत की नीलामी जब सरकार नहीं रोक पाई, तो माल्या ने इनकी सबसे बड़ी बोली लगाकर इन्हें खरीद लिया।
बापू पूरा जीवन सीना तान के चले। तब भी जब अंग्रेजों ने दक्षिण अफ्रीका में उन्हें रेल के डिब्बे से बाहर फेंक दिया। तब भी जब बिहार में नील के खेती करने वालों को उन्होंने उनका हक़ दिलाया। और, तब भी जब नाथूराम गोडसे की पिस्तौल उनके सीने के सामने तन चुकी थी।
बस बापू का सिर झुक जाता था तो गरीब देशवासियों की लाचरगी देखकर, उनकी गरीबी देखकर और उनकी आंखों में पलने वाले सपनों को चकनाचूर होते देखकर। मोहनदास करमचंद गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने बापू कहा। देशवासियों से खून मांगने वाले एक सेनानी का अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार बताने वाले दूसरे सेनानी को दिया गया ऐसा सम्मान कि पूरे देश ने साबरमती के इस संत को अपना बापू मान लिया।
बापू का पूरा जीवन विरोधाभासों से घिरा रहा। वो पूरे देश के बापू थे, लेकिन उनका अपना बेटा उनके सिद्धांतों का बाग़ी हो गया। बापू की प्रतिमा से चंद कदमों की दूरी पर संसद में बहस के नाम पर करोड़ों फूंक देने वाले तमाम नेताओं ने बापू से शायद ही कुछ सीखा हो। लेकिन सौ करोड़ भारतीयों की उम्मीदों पर पानी फिरने से बचाने का काम एक ऐसे शख्स ने किया, जिससे शायद बापू जिंदा होते तो कन्नी काटकर निकल जाते। जी हां, एक शराब का सबसे बड़ा विरोधी और दूसरा देश का लिकर किंग।
चांद पर तिरंगा लहराने वाले सौ करोड़ भारतीयों के पास अपने बापू की घड़ी, उनकी ऐनक, उनकी पीतल की कटोरी प्लेट और उनकी चप्पलें जल्द वापस आएंगी। सरकार जहां चूक गई, वहां कारोबार जगत के एक नुमाइंदे ने देशवासियों की उम्मीदें सांसत में फंसने से बचाईं। माल्या पहले भी टीपू की तलवार हिंदुस्तान ला चुके हैं। शुक्रिया, लिकर किंग। आपकी तिजोरी से कम हुए 18 लाख डॉलर, सौ करोड़ हिंदुस्तानी फिर भी चुका सकते हैं, लेकिन, बापू की विरासत बचाने की जो कीमत है, उसे अशर्फियों से भी नहीं तौला जा सकता।
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