मंडी से कांग्रेस के सांसद बने राजा वीरभद्र सिंह केंद्र सरकार में मंत्री नहीं बन पाए , इस बात को लेकर हिमाचल में कांग्रेस से ग्रासरूट से जुड़े कार्यकर्ता बुरी तरह से हतोत्साहित हैं। हालाँकि हिमाचल के कोटे से केबिनेट में झंडी पाने वाले आनंद शर्मा पिछली मनमोहन सरकार में मिनिस्टर फॉर स्टेट थे और नेशनल लीडर के रूप में उनकी पहचान होती है लेकिन उनका नाता प्रदेश के वोटरों से ज्यादा दस जनपथ के साथ है। दूसरी और वीरभद्र प्रदेश में कांग्रेस के सबसे बड़े मॉस लीडर माने जाते है। मंडी की लडाई अपने बलबूते जीतने वाले वीरभद्र सिंह के बारे में पार्टी आलाकमान के कान भरने का सिलसिला लंबे अरसे से चल रहा है। अपनी ही पार्टी में उनके विरोधी दिल्ली दरबार में अपना काम करने में कामयाब रहे हैं । राज्यसभा सांसद आनंद शर्मा के मुकाबले कुर्सी की दौड़ में लोकसभा सांसद की स्टेट का सबसे सीनियर लीडर होने की योग्यता नजरअंदाज हो गई है । प्रदेश में पार्टी संगठन के साथ के बावजूद उनके दावे का खारिज होना यहाँ उनके वफादारों को अखरने लगा है। ऐसे में जहाँ वीरभद्र ने दिल्ली में चुपी साध रखी है वहीँ अपने समर्थकों को भी अभी तक जुबान बंद रखने की हिदायत दी है । दरअसल मंगलवार को होने वाले केबिनेट विस्तार से पहले वीरभद्र सिंह कोई विवाद खडा नहीं करना चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि केबिनेट विस्तार में उनके दावे पर आलाकमान विचार कर सकता है दावे को मजबूत करने के लिए वीरभद्र सिंह हर सोर्स को लोबिंग कर के लिए प्रयोग कर रहे हैं ।
सरवाइवल कि लडाई लड़ रहे वीरभद्र को अगर विस्तार में उनके कद के मुताबिक पोस्ट नहीं मिलती है तो प्रदेश कांग्रेस में आर पार कि लडाई तय है । अगर एसा होता है तो हिमाचल में नुकसान कांग्रेस का ही होगा।
सरवाइवल कि लडाई लड़ रहे वीरभद्र को अगर विस्तार में उनके कद के मुताबिक पोस्ट नहीं मिलती है तो प्रदेश कांग्रेस में आर पार कि लडाई तय है । अगर एसा होता है तो हिमाचल में नुकसान कांग्रेस का ही होगा।
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