सोमवार, 10 मई 2010

छोटे भाई की कमाई पर काबिज बड़ा भाई

हिमाचल का जायज शेयर देने में पंजाब की हेकड़ी, सुप्रीम कोर्ट तक पंहुचा हिमाचल प्रदेश
छोटे भाई की कमाई पर काबिज बड़ा भाई
पुनर्गठन एक्ट के अनुूसार नहीं मिला हिमाचल प्रदेश को अपना हिस्सा
कोट्र्र के बाहर मिल कर मसला हल करने की कवायद भी गई बेकार
बतीस साल में लोकसभा चुनाव में कभी नहीं बन पाया चुनावी मुद्दा

बड़े भाई पंजाब ने छोटे भाई हिमाचल प्रदेश के हकों पर तगड़ा डाका डाला है। 1966 में हुए पुनर्गठन के तहत पड़ोसी पंजाब से मिलने वाला हिमाचल प्रदेश का हिस्सा 32 साल के संघर्ष के बावजूद नहीं मिल पाया है। 1966 के पनर्गठन एक्ट के जिस शेयर को देने की हामी पंजाब ने भरी थी, लेकिन हेकड़ी देखिये वार्ता की टेबल पर मसले का हल नहीं होने के बाद पंजाब को अब कोर्ट में अपने हकों की पैरवी करनी पड़ रही है। दोनों प्रंदेशों मेें कई बार एक ही पार्टी की सरकारे आई और आकर चली गईं, लेकिन कांग्रेस — भाजपा दोनों की पार्टियां इनसाफ करने में नाकाम रही। दोनों प्रदेशों के नेताओं के अलावा मुख्य सचिव तक ने इन फाईलों पर हरकत की लेकिन नतीजा ढाक के ही सौ पात रहा। मिल बैठ कर भी मसले हल करने की लंबी कवायद चली।
मुख्यमंत्री के रुप में अपनी पहली पारी खेलते हुए पिछली बार प्रेम कुमार धूमल ने पंजाब के तत्कालिन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ लंबी वार्ताओं का सिलसिला शुरु किया लेकिन मामला फिर बीच में ही अटका रह गया। वर्तैमान में भी जहां प्रदेश में भाजपा की सरकार है आर पंजाब में भाजपा समर्थित आकाली सरकार राज कर रही है लेकिन यह मसला इस बार भी गौण ही रहा है। यह मुद्दा प्रदेश की विधानसभा में कइ्र बार गूंजा, कई बार इस मुद्दे पर विपक्ष ने सत्तापक्ष का साथ देते हुए प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजेे लेकिन दिल्ली में भी यह मामला नक्कारखाने की तूती ही साबित हुआ। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आफिस तक भी इस मसले की फाईल गई लेकिन पीएमओ आफिस के हस्तक्षेप के बावजूद मसला जस का तस ही रहा। इस मामले पर जहां हिमाचल सरकारों की भूमिका दब्बू छुटके की रही तो पंजाब ने दबंग बडक़े का ही रोल अदा किया। शर्मनाक यह है कि प्रदेश की प्रतिष्ठा से जुड़े इस मुद़दे को लोकसभा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस—भाजपा ने हमेशा नजरअदाज ही किया।हिमालय नीति अभियान समिति के समन्वयक एवं समाजसेवी कुलभूषण उपमन्यु और इंडियन पिपलज थियेटर के प्रदेश संयोजक लवण ठाकुर का कहना है कि अपने हकों की लड़ाई म केंद्र के पास अपना पक्ष रखने में कांग्रेस व भाजलपा दोनों सरकारें नाकाम ही साबित हुई हैं। पडोसी राज्य की हेकड़ी के चलते प्रदेश को हर साल करोड़ों की रगड़ लग रही है। दोनों प्रदेशों में एसक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद इस मुद्दे का गौण रहना यह साबित करता है कि क्षेत्रीय हकों की पैरवी में बड़े प्रदेशों की खूब धौंस है।

इस मसले पर पंजाब के अडिय़ल रवैये को देखते हुए 1998 में प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोअ्र का दरवाजा खटखटाया था। मामला पिछले दस साल से में है। इस मसले को कोर्ट में ले जाने का श्रेय लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कहते हैं कि कांग्रेस इस माले को लेकर कोर्ट में गई। सुप्रीम कोट्र में मामला आखिरी चरण में है और इस केस में हिमाचल प्रदेश की जीत तय है। प्रदेश कांग्रेस की ओर से प्रदेश को यह सबसे बड़ा तोहफा होगा। उधर वर्तमान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का कहना है कि प्रदेश में अधिकतर कांग्रेस का ही राज रहा, लेकिन इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने कोट्र में जाने के अलावा मिल बेठ कर मसला हल करने तक की कोशिश नहीं की। कोर्ट के बाहर मसले सुलझाने की उनकी पहल पर कुछ इंटर स्टेट मुद्दे हल हुए है, अब भी प्रयास जारी हैं।
लड़ाई की जड़:

1966 पनर्गठन एक्ट के अनुसार भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड बीबीएनबी से प्रेदेश को 7.19 प्रतिशत का स्टेट मिलना है। इसके अलावा भाखड़ा— नंगल, पौग डैम व व्यास पावर प्राजेक्टों से प्रदेश को 12 प्रतिशत बिजली मुफ्त मिलनी है। इसी एक्ट के तहत रियासतकाल में मंडी के जोगेंद्रनगर में बने शानन पावर प्राजेक्ट को भी हिमाचल प्रदेश को सौंपा जाना है। पुनर्गठन एक्ट के तहत ही हिमाचल प्रदेश को चंडीगढ़ पर भी 7.19 हिस्सा बनता है, जिसकी भरपाई पंजाब व हरियाणा ने करनी है। सियासी मचंों व प्रशासनिक प्रपंचों की लंबी कवायद के बावजूद लड़ाई जारी है।

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