सोमवार, 28 मार्च 2011

रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं


मंडी सदर के 43 लोगों ने मुख्यमंत्री से मांगी घर बनाने के लिए एक- दो बिस्वा जमीन
रहने को घर नहीं, सोने को बिस्तर नहीं
सरकार की घोषणा के बाद भी लंबा खिचता जा रहा है भूमिहीनों को जमीन मिलना

उनके पास इतनी भी जमीं नहीं है कि सिर ढकने के लिए खुद का आशियाना बना सकें। सरकार से उनकी फरियाद है कि अगर सरकार उनको बिस्वा, दो बिस्वा जमीन उपलब्ध करवा दें तो वे अपने लिए घर का निर्माण करवा सकते हैं। हालांकि भूमिहीन लोगों को घर निर्माण के लिए प्रदेश सरकार ने एक/ दो बिस्वा जमीन उपलब्ध करवाने की घोषणा की है , लेकिन आवेदन के बावजूद मंडी के भूमिहीनों को सरकार से भवन निर्माण के लिए मुफ्त मिलने वाली जमीन की प्रक्रिया इतनी लंबी खिंचती जा रही है कि सरकार से लोगों का विश्वास उठता जा रहा है। उधर सरकारी खानापूर्ति है कि खत्म होने का ही नाम नहीं ले रही है। इस बारे में अभी तक हासिल हुए आवेदनों की ही छानबीन की प्रक्रिया जारी है।
इनको चाहिए सिर पर छत
पंडोह के तेज सिंह, लुनापाणी की स्वीत्रि, भियुली के मेवा राम, बिजनी के अजय कुमार और भीम सिंह, रत्ति के बीरी सिंह,शिबाबदार की प्रकाशो, पनारसा के राम सिंह, छनबाड़ी के किशन, हत्यातर के नेक राम, पंडोह के गुरदेव, टांडा की रूकमणी, पड्डल के नंदू राम, लाल चंद गिरजा राम, मक्खन सिंह,बबलू कुमार, राजेश, राजू, औंकार, शेरू, नानकू, रमेश, बीरू, चंदों देवी, सोनू राम, ओम प्रकाश, राम लाल, खन्ना राम व राज कुमार, खलियार की हाडी देवी, पनारसा के जगदीश, जोगेंद्र सिंह, हत्यातर नेक राम, डडोह के दीप राज भगवाहन मुहल्ला की रोशनी देवी, रीना देवी, पिंकी देवी व हिमाचली देवी ने प्रदेश सरकार से घर की मांग की है।
छानबीन कर एसडीएम सौंपेंगे रिपोर्ट
मुख्यमंत्री के संयुक्त सचिव के माध्यम से प्राप्त हुए आवेदनों पर डीसी मंडी ने एसडीएम सुदर को 28 अप्रैल 2006 के प्रदेश के वित्त सचिव(राजस्व) के पत्र के अनुसार जमीन के लिए आए सभी आवेदनों के बारे में जांच कर 15 दिन में इस बारे में रिपोर्ट देने के ताजा आदेश दिए हैं। डीसी मंडी ने अपने आदेश में एसडीएम सदर को कहा है कि आवेदनों से संबंधित रिपोर्ट के बारे में आवेदकों को भी सूचित किया जाए। ऐसे में एसडीएम सदर की रिपोर्ट के आने के बाद भी भूमिहीन परिवारों को भमि आंबटन की व्रक्रिया शुरू होगी।
उपमंडल अधिकारी वित्तायुक्त एवं सचिव(राजस्व ) के 28अप्रैल 2006 के पत्र के आधार पर इस आवेदनों पर जांच कर रिपोर्ट 15 दिन के अंदर सौंपेंगे। इस कार्यवाही के बारे में आवेदकों को भी सूचित किया जाएगा।
अमनदीप गर्ग, डीसी मंडी ।

हर दिन पैदा हो रहा चालीस हजार लीटर दूध


दूध गंगा योजना के चलते दूध उत्पादन में मंडी जिला ने किया टॉप
हर दिन पैदा हो रहा चालीस हजार लीटर दूध
जिला में दूध उत्पादन से जुड़े हैं 12 हजार परिवार, महलाओं के हाथ कमान
सरकार की दूध गंगा योजना की कामयाबी की कहानी मंडी जिला के देहात में बखूबी पढ़ी जा सकती है। इय योजना के शुरू होने के बाद मंडी जिला में दूध उत्पादन पिछले साल के मुकाबले तीन गुणा ज्यादा हो गया है। पिछले साल जहां प्रतिदिन औसत 12 हजार लीटर दूध मंडी यूनिट में प्रक्योर किया जा रहा था। इस साल प्रतिदिन मंडी यूनिट में 40 हजार लीटर दूध का उत्पादन रोजाना हो रहा है। मंडी जिला में दूध उत्पादन मुनाफे का कारोबार बन गया है और अब तक इस कारोबार में जिला के 12 हजार परिवार प्रत्यक्ष रूप से जुड़ चुके हैं। जिला में पांच हजार महिलाएं दूध उत्पादन की जिम्मेवारी संभाल रही हैं। जिला में दूध उत्पादन में वर्तमान में 210 सहकारी संभाएं जुटी हुई हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा समितियों की सरदारी महिलाओं के हाथ है। हिमाचल मिल्क फैडरेशन के अध्यक्ष मोहन जोशी कहते हैं कि दूध गंगा योजना के बाद मंडी में दूध उत्पादन को लेकर लोगों में खासा उत्साह है और लोग दूध उत्पादन के लिए आगे आ रहे हैं। उनका कहना है कि अब दूध उत्पादक सोसायटियों को समय पर उनके उत्पाद का भुगतान हो, इसलिए फैडरेशन ने ऑन लाइन पेमेंट की व्यवस्था की है। हिमाचल प्रदेश मिल्क फैढडरेशन कर्मचारी संघ के प्रदेशाध्यक्ष चंद्रशेखर वैद्य का कहना है कि मिल्क फैडरेशन प्रबंधन के प्रयासों से दूध उत्पादन शिखर पर है।
उत्पादन बढ़ा तो कर्मियों की भी बल्ले- बल्ले
यह भी पहला मौका है कि मिल्क फैडरेशन के कर्मचारियों को जनवरी माह के वेतन के साथ ही महंगाई भत्ते की किस्त भी मिल गई है। महंगाई भत्ते के 10 प्रतिशत की अदायगी से मिलक फैडरेशन के कर्मचारी गदगद हैं। प्रदेश में बढ़ते दूध उतपादन के चलते ही यह संभव हो पाया है। मिल्क फैडरेशन के महासचिव उदेवेंद्र कोटवी, जिला मंडी इकाई के प्रधान मित्र देव, कांगड़ा इकाई के प्रधान वीएम कटोच, शिमला इकाई के प्रधान अमर सिंह मिल्क फैडरेशन के घाटे से उभरने और दूध उत्पादन के बढऩे का सेहरा मिल्क फैडरेशन के अध्यक्ष मोहन जोशी के सिर बांधते हैं।
किसानों और दूध उत्पादकों के लिए प्रदेश सरकार की ओर से शुरू की गई दूध गंगा योजना के सुखद प्रणाम सामने आ रहे हैं। यही कारण है कि मंडी में रिकार्उ दूध उत्पादन हो रहा है।
मोहन जोशी, अध्यक्ष मिल्क फैडरेशन
जनवरी माह के वेतन के साथ मिल्क फैडरेशन के कर्मचारियों को महंगाई भत्ते की किस्त मिल गई है, जबकि प्रदेश के कई ऐसे विभाग हैं, जिनके कर्मचारियों को अभी महंगाई भत्ता नहीं मिला है।
चंद्रशेखर वैद्य, अध्यक्ष मिल्क फैड कर्मचारी संघ।

रविवार, 27 मार्च 2011

बेटी की जिद ने किया पिता का सपना पूरा


बेटी की जिद ने किया पिता का सपना पूरा
दीपशिखा बनी जिले की पहली महिला आईएफएस


जिले का सांबल गांव अब किसी परिचय का मोहताज नहीं रह गया है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष कौलसिंह ठाकुर के बाद यहां की दीपशिखा ने आईएफएस परीक्षा पास कर जिले की पहली महिला आईएफएस होने का गौरव प्राप्त किया है। हालांकि उसके पिता बेटी के सपने को पूरा होते दिखने से पहले ही दुनियां से चले गए लेकिन बेटी की जिद ने पिता के सपने को पूरा कर दिखाया। तीन साल पहले उसके पिता की मौत भी उसे लक्ष्य से नहीं डिगा पाई। अपने तीसरे प्रयास में इस परीक्षा को पास करने वाली इस लडक़ी ने बचपन से ही आईएफएस बनने की हसरत पाल रखी थी।
ग्रामीण परिवेश में पली- बढ़ी दीपशिखा उन लड़कियों के लिए मिसाल है जो अपने करियर को लेकर संजीदा है। जिला मंडी के सांबल गांव की निवासी २४ वर्षीय दीपशिखा ने डीएफओ बन कर अपने स्व. पिता के सपने को साकार कर दिया। अपने मां-बाप, चचेरे भाई आरओ पद पर तैनात योगिंद्र शर्मा, गाईड एनके गुप्ता और कैंपस में अपने मित्रगणों को अपनी सफलता का श्रेय देती है। बचपन से ही पढऩे में अव्वल रही दीपशिखा ने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ी मेहनत की, और आगे भी इस पद पर तैनात होने के बाद कड़े परिश्रम और ईमानदारी तथा समर्पित भाव से जनता की सेवा करना चाहती है। पिता की इच्छा थी बेटी को आईएफएस बनाना अपनी बेटी को ऑफिसर बनते देख तो नहीं सके पर उनकी आत्मा को सुकून जरूर मिला होगा। 2007 में उनके पिता की मौत हो गई लेकिन वह इससे भी निराश कभी नहीं हुई। कभी हार न मानने वाली दीपशिखा ने पहले एसीएफ की परीक्षा भी पास की थी मगर सपना आईएफएस बनने का था। योजनाबद्घ तरीके से ६ से ८ घंटे पढ़ाई करना, समाचार पत्रों में द हिंदू समाचार पत्र, मैग्जीनस क्रोनिक्रल और योजना, टीवी चैनल एनडीटीवी, डीडी न्यूज चैनल आदि पर गहरी नजर रखी। आईएफएस बनने की खास वजह सबसे पहले लोगों को जंगल से जोडऩा और जंगल को लोगों से जोडऩा तथा इसकी पॉलसी के बारे में और कानून के बारे में बताना जानना चाहती है। अगर जंगल लोगों के लिए हंै तो लोगों की भी उतनी ही भागीदारी उनको सुरक्षित रखने में है ये सब जनता को बताने की जरूरत है। पंचायत प्रधान रणवीर सिंह ने बताया कि उन्हें अपनी लाडली पर नाज है। पंचायत उन्हें सम्मानित करेगी।

हाथों से चलने वाली के आगे हुआ सिस्टम सिर के बल


शत प्रतिशत विकलांग बेटी की जिद से मिला गरीब मां को हक
हाथों से चलने वाली के आगे हुआ सिस्टम सिर के बल
अप्रैल के पहले सप्ताह में तुंगाधार की द्रोपती को मिलेगा सरकारी मकान

वह शत—प्रतिशत विकलांग है और पैरों की जगह उसे हाथों से चलना पड़ता है। जंजैहली के दूर- दराज तुंगाधार गांव की 23 वर्षीय पवना ने अपनी विकलांगता के बावजूद भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसी जंग लड़ी कि सिस्टम को सिर के बल उसके कदमों में झुकने को मजबूर होना पड़ा। ऊंची पहुंच और सियासी रसूख के चलते उसकी मां द्रोपती देवी के नाम मंजूर हुए अटल आवास योजना के मकान को किसी दूसरे ने दबा लिया तो मां के हक के लिए पवना देवी ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी । विपरीत परिस्थितियों के बावजूद अपनी हिम्मत और हौंसले के बलबूते पवना देवी ने न केवल सरकारी योजनाओं के तहत मिलने वाले मकानों की बंदरबांट का पर्दाफाश किया, बल्कि अपनी मां को उसका जायज हक भी दिलवाया। अप्रैल माह में उसकी मां को अटल आवास योजना के तहत मकान के आबंटन के आदेश उपायुक्त मंडी ने बीडीओ सिराज को दे दिए हैं।
पवना देवी ने बताया कि उसकी मां द्रोपती देवी अटल आवास योजना के तहत मिलने वाले सरकारी मकान के लिए पात्र थी लेकिन मिलीभगत से मकान किसी दूसरे को आबंटित कर दिया गया। इस पर उसने आरटीआई कानून के तहत सूचनाएं जुटाकर भ्रष्टाचार के इस मामले का पर्दाफाश किया। सियासत और प्रशासन का गठजोड़ इतना मजबूत था कि सूचनाएं प्राप्त करने के लिए शिमला स्थित मुख्य सूचना आयुक्त का दरवाजा तक खटखटाना पड़ा। घोटाले से संबंधित सूचनाएं जुटाने के बाद पवना देवी ने बंदरबांट में शामिल अफसरों और पंचायत प्रतिनिधियों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई।
मकानों का मजाक
पवना देवी की शिकायत पर डीसी मंडी डॉक्टर अमनदीप गर्ग ने बीडीओ सिराज को जांच अधिकारी नियुक्त इस बारे मेंं जांच रिपोर्ट सोंपने के आदेश दिए हैं। डीसी मंडी ने अपने आदेश में कहा है कि सरकारी मकानों की बंदरबांट में संलिप्त पंचायती राज संस्था के पदाधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। इस जांच में कई पदाधिकारियों और कर्मचारियों पर गाज गिरना तय माना जा रहा है।

अटल आवास योजना के तहत मेरी मां को मिलने वाले मकान को किसी दूसरे को आबंटित कर दिया गया था। आरटीआई के तहत सूचनाएं जुटा कर इस बंदरबांट का पर्दाफाश किया है।
पवना देवी, शत प्रतिशत विकलांग, जिन्होंने अपनी मां के हक की लड़ाई लड़ी है।


तुंगाधार की द्रोपदी देवी को अटल आवास योजना के तहत अप्रैल के प्रथम सप्ताह में मकान आबंटित करवाने के आदेश बीडीओ सिराज को दिए गए हैं।
डॉ. अमनदीप गर्ग, डीसी मंडी ।

मनु तेरी मनाली मैली हो गई....


टूरिस्ट डेस्टिनेशन मनाली में लेह से पांच गुणा ज्यादा प्रदूषण
यहां के वायुमंडल में एरोसोल ऑप्टिकल डैप्थ, अल्फा और बीटा की मात्रा ज्यादा
पोलैंड की शोध पत्रिका एक्टा जियोफिजिक्स के शोध का सनसनीखेज खुलासा किया

दिलकश नजारों, खूबसूरत वादियों और बर्फ से लदे पहाड़ों के लिए विख्यात कुल्लू-मनाली की सुरम्य घाटियां मैली हो गई हैं। दिन को सकून देने वाली यहां की शीलत बयार जहरीली होने लगी है। इस हिल स्टेशन पर बढ़ता लोगों का दबाव इस खूबसूरत वादी के वातावरण में जहर घोलता जा रहा है। पर्यटकों की संख्या में इजाफे से प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। वाहनों का बढ़ता दबाव और उनसे निकलने वाला धुंआ पर्यटन नगरी की आबोहवा को जहरीला बना रहा है। लेह के मुकाबले यहां प्रदूषण की मात्रा पांच गुना से भी अधिक आंकी गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि वायुमंडल में यहां एरोसोल ऑप्टिकल डैप्थ, अल्फा और बीटा की मात्रा भी अधिक पाई गई है। गर्मियों में वायु सबसे अधिक प्रदूषित हो रही है। इसी तरह का क्रम चलता रहा तो आने वाले समय में हम कानपुर से भी आगे निकल जाएंगे। पोलैंड की अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिका एक्टा जियोफिजिक्स द्वारा करीब डेढ़ साल तक अत्याधुनिक उपकरण (वेबलेंथ रेडियो मीटर) की मदद से किए गए शोध के बाद यह खुलासा किया है। विदेशी वैज्ञानिकों ने राज्य के विशेषज्ञों के साथ मिलकर मनाली की आबोहवा पर शोध किया। उन्होंने भौतिकी के नियमों का अनुसरण कर एक साल तक सूर्य की विभिन्न तरंगों का वातावरण द्वारा अवशोषण पर विस्तृत अध्ययन किया। शोध से यह निष्कर्ष निकाला गया कि यहां का वातावरण इसके समकक्ष अन्य पर्यटक स्थलों से ज्यादा प्रदूषित है। लेह और नैनीताल की अपेक्षा यहां कई गुना ज्यादा ऑप्टिकल डेप्थ की मात्रा पाई गई।
दशहरे के दौरान बढ जाता है प्रदूषण
सूक्ष्म कणों की उपस्थिति पतझड़ में अंतरराष्ट्रीय दशहरा उत्सव के दौरान सर्वाधिक पाई गई है। लेह में 0.05 व नैनीताल में हवा में प्रदूषण की मात्रा 0.07 के आसपास है, जबकि कुल्लू— मनाली में इसकी मात्रा 0.24 है। जबकि अल्फा फाइन पाट्र्स (सूक्ष्म कण) 1.06 व बीटा (मोटे कण) .14 तक पहुंचे हैं। शोध के नतीजे से नासा के मौडिस सेटेलाइट द्वारा कुल्लू-मनाली क्षेत्र के वातावरण का अंतरिक्ष से किया गया सर्वेक्षण भी मेल खाता है। शोध कार्य में प्रमुख भूमिका निभाने वाले नंद लाल शर्मा का वाहनों से निकलने वाले सूक्ष्म कणों पर शोध प्रतिष्ठित राष्ट्रीय पत्रिका रेडियो एवं स्पेस फिजिक्स में छप चुका है। वह कहते हैं कि मोटे कण खनन, सडक़ निर्माण, क्रशर आदि से निकलते हैं, जबकि सूक्ष्म कण (अल्फा) वाहनों के धूएं से निकल रहे हैं। उनका कहना हैं कि टूरिस्ट डेस्टिनेशन को कंवर्ट करने से आबोहवा माकूल हो सकती है, लेकिन इसके लिए कई तथ्यों पर गहरी दृष्टि रखने की दरकार है। नहीं तो मनाली प्रदूषण के मामले में काफी आगे निकल सकती है।

सोमवार, 21 मार्च 2011

अभियान के नाम पर स्कूल की पढा़ई कुर्बान


सात सालों से एसएसए की जिम्मेवारी निभा रहा खुहण स्कूल का टीजीटी मेडीकल टीचर
टीचर को प्रति नियुक्ति पर भेजने के बाद स्कूल को टीचर उपलब्ध करवाना भूली सरकार
सर्व शिक्षा अभियान के दावों की पोल खोलता मंंडी जिला का सीसे स्कूल खुहण


सर्व शिक्षा अभियान के सब पढ़ो और आगे बढ़ो के सरकारी दावे की पोल खुल गई है।सरकार ने सर्व शिक्षा अभियान को चलाने के लिए मंडी जिला के सिराज 2 शिक्षा खंड के सीनीयर सकेंडरी स्कूल खुहण के टीजीटी मेडीकल अध्यापक को वर्ष 2004 में ब्लॉक रिर्सोस कॉर्डीनेटर के तौर पर प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया, लेकिन सरकार स्कूल में टीजीटी मेडीकल टीचर उपलब्ध करवाना भूल गई। एक तरह पिछले सात सालों से स्कूल में तैनात टीजीटी मेडीकल टीचर सर्व शिक्षा अभियान में अपनी सेवाएं दे रहा है तो दूसरी तरफ सात सालों से स्कूल बिना टीजीटी मेडीकल टीचर के ही हांका जा रहा है। हालांकि सर्व शिक्षा अभियान निदेशालय का दावा है कि जिन स्कूलों में तैनात अध्यापकों को सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है, उन स्कूलों में उन पदों पर शिक्षा विभाग ने अन्य कर्मचारियों व अधिकारियों की नियुक्ति की है और प्रदेश में कोई भी पद ऐसा खाली नहीं है जिस पद के कर्मचारी को सर्व शिक्षा अभियान में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है। उधर मंडी स्थित एलिमेंटरी शिक्षा उप निदेशक कार्यालय सर्व शिक्षा अभियान निदेशालय के दावों की पोल खोल रहा है। उप निदेशक एलिमेंटरी शिक्षा मंडी के अनुसार खुहण स्कूल के टीजीटी मेडीकल टीचर दिले राम को 5 अप्रैल 2004 को बतौर बीआरसी सर्वशिक्षा अभियान बालीचौकी ब्लॉक में प्रतिनियुक्ति पर भेजा गया है। उपनिदेशालय के अनुसार स्कूल में तब से लेकर आज तक टीजीटी मेडीकल टीचर के पद पर कोई नियुकित नहीं हुई है। उप निदेशक एलिमेंटरी शिक्षा मंडी के अनुसार खुहण स्कूल में टीजीटी मेडीकल टीचर के न होने से पिछले सात सालों में करीब 15 सौ बच्चों को बिना टीचर के ही पढऩे को मजबूर होना पड़ा। वर्ष 2004—05 में 218, 2005—06 में 226, 2006—07 में 201, 2007—08 में 182, 2008—09 में 200, 2009—10 में 205 और 20 10—11 में 185 बच्चों को टीजीटी मेडीकल टीचर न होने के चलते बुरी तरह से प्रभावित होना पड़ा। सूचना अधिकार कानून के तहत सर्व शिक्षा अभियान निदेशालय शिमला और उप निदेशक एलिमेंटरी शिक्षा मंडी से सूचना हासिल कर इस मामले का पटाक्षेप करने वाले कामगार मजदूर संगठन के अध्यक्ष एवं आरटीआई ब्ूयरो मंडी के सदस्य संत राम का कहना है कि इस मामले को लेकर वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं।

शनिवार, 19 मार्च 2011

पहाड़ की बेटी सबसे छोटी उम्र में बनी बालीवुड की संगीतकार


पहाड़ की बेटी सबसे छोटी उम्र में बनी बालीवुड की संगीतकार
केतन मेहता की दीपा मेहता निर्देशित तेरे मेरे फेर से होगी शिवांगी के कैरियर की शुरूआत
कामेडी आधारित फिल्म के गीतों में भी सुनाई देगी मंडी की बेटी की मधुर आवाज

पहाड़ की एक बेटी ने अपनी प्रतिभा के बलबूते बालीवुड की सबसे छोटी उम्र की संगीतकार होने का बड़ा मुकाम हासिल किया है। निर्माता केतन मेहता और अनूप जलोटा की दीपा मेहता निर्देशित फिल्म तेरे मेरे फेरे से मंडी की 23 वर्षीय शिवांगी फिल्मी दुनिया में अपने संगीत के कैरियर की शुरूआत कर रही है। संगीतकार एसडी कश्यप और लोक गायिका रविकांता कश्यप की बेटी को गीत संगीत की शिक्षा बचपन से ही घुटी के रूप में मिली है और वह अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद पिछले दो सालों से मुबंई में संघर्षरत है। पंजाबी पृष्ठभमि पर शादी के रिश्तों को हास्य के तौर पर पेश करने की दीपा मेहता की इस गंभीर मूवी में शिवांगी कश्यप ने न केवल संगीत दिया है, बल्कि फिल्म के टाइटल सोंग सहित फिल्म के गीतों को भी आवाज दी है। प्रदेश से ही संबंध रखने वाले चर्चित गायकमोहित चौहान ने भी इस फिल्म में शिवांगी के संगीत निर्देशन में फिल्म के टाईटल सोंग को स्वरबद्व किया है। फिल्म का संगीत धूम मचा रहा है और संगीत के बहाने प्रदेश की दो बड़ी प्रतिभाएं फिल्मी ुदनिया के फलक पर छाने को बेताव हैं। शिवांगी के पिता एसडी कश्यप ने बताया कि उनकी बेटी ने पनारसा सिथत उनके स्टूडियों में ही सगीत साधना की शुरूआत की थी और पिछले दो सालों से वह मुंबई में अपने संगीत कैरियर को लेकर संघर्ष कर रही है। शिवांगी कश्यप ने मुंबई से बताया कि तेरे मेरे फेर के सगीत में पहाड़ की हवा सी ताजगी है और उम्मीद है कि सेगीत की यह ताजगी सुनने वालों को पबेहद पसंद आएगी।
पिता का सपना साकार करेगी बेटी
शिवांगी के पिता एसडी कश्यप प्रदेश के नामी संगीतकार हैं। प्रदेश के अधिकतर चर्चित लोकगायक उन्हीं के संगीत—निर्देशन में लोकगीत गा कर चर्चित हुए हैं। एसडी कश्यप लंबे समय तक मुंबई में संगीत निर्देशन करते रहे, लेकिन बउलीवुड में रम न पाने के कारण वापस मंडी लौट आए और पनारसा कस्बे में रिकार्डिंग सटूडियों बना कर लोक संगीत के प्रचार—प्रसार में जुटे हुए हैं। मुंबई में रह कर जो काम एसडी कश्यप नहीं कर पाए, उम्मीद की जा रही है कि उस उधूरे सपने को शिवांगी पूरा करेगी।

मानसून का जुआ खेलते पहाड़ के किसान



कैसे मिले प्साये खेतों को पानी, कैसे दूर हो किसान की परेशानी

मानसून का जुआ खेलते पहाड़ के किसान
कृषि योग्य आधी भूमि के लिए नहीं हुआ अभी तक सिंचाई सुविधा का प्रबंध
पंचायती चुनाव में सिंचाई सुविधा का अभाव भी है एक बड़ा चुनावी मुद्दा

प्रदेश सरकार के किसान मानसून का जुआ खेलने को मजबूर हैं। सिंचाई सुविधा के अभाव में प्रदेश के किसान अब खेत खलिहान से दूर होते जा रहे हैं। बिना सिंचाई सुविधा के अभाव में प्रदेश के कई हिस्सों में खेत बंजर बनते जा रहे हैं। बिजाई के बाद किसानों को सिंचाई के लिए इंद्रदेव की मेहरबानी का मोहताज होना पड़ रहा है। यहां की ज्यादातर सिंचाई व्यवस्था कूहलों के सहारे है लेकिन प्रदेश के नदी नालों में कम होती पानी की मात्रा के चलते अधिकतर कूहलों को वजूद मिट गया है। प्रदेश की अढ़ाई लाख हैक्टेयर से ज्यादा भूमि के लिए अभी तक सिंचाई का प्रबंध दूर की कौड़ी है। हिमाचल प्रदेश में कुल 55.67 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में से केवल 5.83 लाख हेक्टेयर क्षेत्र ही कृषि योग्य हैं। प्रदेश सरकार के दावों के अनुसार, प्रदेश की कुल सिंचाई क्षमता लगभग 3.35 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से 50 हजार हेक्टेयर क्षेत्र को बड़ी एवं मध्यम सिंचाई योजनाओं तथा 2.85 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को लघु सिंचाई येाजनाओं के बलबूते सिंचित किया जा रहा है। आंकड़े खुद गवाही देते है कि खेत और किसान की बातें बेशक नेताओं की जुबान पर रहती हों लेकिन जमीनी सच्चाई यह है कि खेत खलिहान तक सरकारों की नजर नहीं पहुंच पाई है। हालांकि सरकारी आंकड़े दावा करते हैं कि प्रदेश में सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध करवाने पर इस वित्त वर्ष के दौरान 216.38 करोड़ रुपए व्यय किए जा रहे हैंर्। लघु सिंचाई येाजनाओं के अंतर्गत 3600 हेक्टेयर क्षेत्र तथा बड़ी एवं मध्यम सिंचाई येाजनाओं के अंतर्गत 3000 हैक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई उपलब्ध होने की उम्मीद की जा रही है।
लंबी होती नहरें
कूहलों, नालों और नदियों वाले प्रदेश में नहरों के बलबूते सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाने की सरकारी कसरत लेट लतीफी का शिकार है। 310 करोड़ रुपए की लागत से बन रही शाहनहर सिंचाई परियोजना के लिए जो समय निर्धारित किया था, कब का पूरा हो चुका है। पंजाब व हिमाचल की इस संयुक्त परियोजना में पंजाब हमेशा अपना हिस्सा देने में देर करता रहा है। परियोजना के पूरा होने से क्षेत्र के 15,287 हेक्टेयर कृषि योग्य क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। अभी तक इस परियोजना के अन्तर्गत 272 करोड़ रुपए व्यय किए जा चुके हैं । उम्मीद की जा रही है कि इस परियोजना का निर्माण कार्य मार्च, 2012 तक पूरा हो जाएगा ।
चंगरों में कब पहुंचेगा पानी
बेशक प्रदेश में सिंचाई सुविधा प्रदान करने के लिए कई अहम योजनाओं पर काम चल रहा हो, लेकिन परियोजनाओं की गति को देखते हुए लग नहीं रहा है कि ये परियोजनाएं समय पर पूरा हो जाएंगी।
सिद्धाता मध्यम सिंचाई परियोजना का निर्माण कार्य जारी है। सरकार का दावा है कि 66.35 करोड़ की यह परियोजना मार्च 2011 में पूरी हो जाएगी और इससे 3150 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी।
मध्यम चंगर सिंचाई परियोजना एक अन्य महत्वकांक्षी परियोजना है। यह परियोजना बिलासपुर जि़ला में निर्माणाधीन है। 88.09 करोड़ की इस परियोजना पूरा होने पर 2350 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई सुविधा मिलने की उम्मीद विभागीय अधिकारी कर रहे हैं।
लेफ्ट बैंक में लेफ्ट राईट
मंडी जि़ला में बल्ह घाटी में लैफ्ट बैंक परियोजना का कार्य चल रहा है। लगभग 62.25 करोड़ की लागत से बनने वाली इस परियोजना से क्षेत्र के 2780 हेक्टयेर क्षेत्र को सिंचाई सुविधा उपलब्ध होगी। इस परियोजना का का काम जैन इरीगेशन को ‘टर्न-की’ आधार पर सौंपा गया है इसका निर्माण कार्य मार्च 2012 तक पूरा करने के सरकारी दावों की पोल खुलनी शुरू हो गई है। कंपनी के खिलाफ मजदूर श्रम कानूनों का उल्लंधन करने के आरोप में सडक़ों पर उतर रहे हैं। 147.15 करोड़ रु की फीनासिंह मध्यम सिंचाई परियोजना की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट स्वीकृति के लिए केंद्र सरकार को भेजी है।
दिल्ली में फंसी पहाड़ की परियोजनाएं
कांगड़ा जि़ले की झलाड़ी, भूम्पल तथा पुत्रैल मध्यम सिंचाई परियोजनाओं को भी स्वीकृति हेतु केंद्र सरकार को भेजा गया है। 51.58 करोड़ की इन परियोजनाओं को आगामी पांच वर्ष के भीतर पूरा किया जाना है।
त्वरित सिंचाई सुविधा कार्यक्रम के अन्तर्गत लघु सिंचाई परियोजनाओं की दो ‘शैल्फ’ को पूरा किया जा चुका है, जिसमें वर्ष 2003 से लेकर वर्ष 2005 तक 14.05 करोड़ रुपये की 45 लघु सिंचाई परियोजनाएं तथा दूसरी वर्ष 2005 से वर्ष 2009 तक 45.65 करोड़ रुपये की 95 परियोजाएं शामिल है। राज्य सरकार ने 116 लघु सिंचाई परियोजनाओं की स्वीकृति का मामला भी केन्द्र सरकार से उठाया है।,जिन पर 120.72 करोड़ व्यय होंगे । त्वरित सिंचाई सुविधा कार्यक्रम के अन्तर्गत 158.89 करोड़ की 189 लघु सिंचाई योजनाओं का मामला केंद्र में विचाराधीन है। नाबार्ड तथा आईआरडीएफ. के तहत 145 करोड़ लागत की 117 परियोजनाएं स्वीकृत की गई है। सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य मंत्री रविंद्र रवि कहते हैं कि वर्तमान प्रदेश सरकार के सत्ता में आने के बाद 9878 हेक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई के तहत लाया गया है, जिसमें से लघु सिंचाई के अन्तर्गत 4935 हेक्टेयर तथा बड़ी एवं मध्यम सिंचाई योजना के अन्तर्गत 4943 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है।

डॉक्टरों का अकाल, कैसे हो पशुओं की संभाल




डॉक्टरों का अकाल, कैसे हो पशुओं की संभाल

प्रदेश की आधे से ज्यादा गांवों को अब भी पशु औषधालयों की दरकार
पशु डॉक्टर व फार्मास्स्टि खोजने की जिम्मेवारी भी पंचायतों के सिर पर
औषधालय के लिए के भवन के लिए भसी पंचायत को करनी होगी व्यवस्था

बेशक प्रदेश में दूध गंगा योजना और भेड़ पालक समृद्धि योजना’जैसी महत्वाकांक्षी दुधारू पशु और भेड़ पालन योजनाओं को बड़े जोर शोर के साथ शुरू किया गया हो लेकिन पशु स्वास्थ्य को लेकर आलम यह है कि प्रदेश के आधे गांवों को अभी तक पशु औषधालयों का इंतजार है। सरकारी दावों पर यकीन करें तो भी अगले तीन सालों में भी प्रदेश के सभी गांवों में पशु औषधालय बनते नहीं दिख रहे हैं। प्रदेश में पशुपालन को लेकर प्रदेश में राज करने वाली सरकारें कितनी गंभीर रही हैं, उसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की 3243 पंचायतों में से केवल 1971 पंचायतों मेें ही पशु औषधालयों की स्थापना हो पाई है। बेशक इस बार प्रदेश प्रदेश सरकार ने बची सभी पंचायतों में पशु औषधालय खोलने की कवायद में जुटी हुई है लेकिन सरकार के इन प्रयासों की सारी जिम्मेवारी भी पंचायतों के सिर पर डाल दी गई है। जिन पंचायतों में अब पशु औषधालय खोले जा रहे हैं उन पंचायतों के नियंत्रण में यह पशु औषधालय खोले जाएंगे, जिसके लिए तकनीकी निरीक्षण एवं मार्गदर्शन संबंधित पशु चिकित्सा अधिकारी देंगे। मुख्यमंत्री आरोग्य पशुधन योजना के प्रथम चरण में पशु औषधालय उन पंचायतों में खोले जाएंगे, जहां ग्राम पंचायत द्वारा नि:शुल्क भवन की सुविधा और पंचायत पशु सहायक के रूप में किसी सेवानिवृत्त पशु सहायक की सेवाएं उपलब्घ करवाई जाएंगी, जिन्हें पांच हजार रूपए प्रतिमाह का निर्धारित पारिश्रमिक दिया जाएगा। प्रदेश की अधिकांश जनता गांवों में बसती है, जो अपनी आजीविका के लिए मुख्यत: पशुपालन गतिविधियों पर निर्भर है। अब जबकि प्रदेश में ग्राम संसद का चुनाव हो रहा है तो इस बात की पड़ताल करना लाजिमी है कि आखिर गांवों के किसानों को कब तक ठगा जाता रहेगा। हिमाचल किसान सभा के सहसचिव कुशाल भारद्वाज का कहना है कि दोनों सरकारों ने जम कर प्रदेश के किसानों को लूटा है। प्रदेश की घासनियां कांग्रेस घास की जद में हैं तो पशु चिकित्सकों का टोटा है, ऐसे मेे पशुपालकों की हालत पतली है।
सीएम ने लिखे सरपंचों को पत्र

कृषि विभाग के अनुसार मुख्यमंत्री ने व्यक्तिगत तौर पर पशु औषधालय की सुविधा से वंचित सभी पंचायतों के प्रधानों को पत्र लिखकर मुख्यमंत्री आरोज्य पशुधन योजना का लाभ उठाने को कहा है। अभी तक 79 ग्राम पंचायतें ‘मुख्यमंत्री आरोग्य पशुधन योजना’ के अंतर्गत नि:शुल्क भवन सुविधा और पशु सहायकों की सुविधा उपलब्ध करवाने के लिए आगे आईं हैं। प्रदेश सरकार ने इन सभी 79 ग्राम पंचायतों में पशु औषधालय खोलने को स्वीकृति प्रदान कर दी है जिनमें से 19 मंडी जि़ला, 15 कांगड़ा, सात-सात पशु औषधालय हमीरपुर और शिमला जि़लों, 9 बिलासपुर, 8 कुल्लू, 6 चम्बा, 4 ऊना, 2 किन्नौर तथा एक-एक पशु औषधालय सिरमौर एवं लाहौल-स्पिति जि़लों में खोला जाएगा। इनमें से 54 पशु औषधालयों ने पहले ही कार्य करना आरंभ कर दिया है। दूसरे चरण में, उन पंचायतों में पशु औषधालय खोले जाएंगे जहां संबंधित पंचायतों द्वारा नि:शुल्क भवन और प्रशिक्षणरत वेटरीनेरी फार्मासिस्ट अथवा सेवानिवृत्त पशु सहायक की सेवाएं उपलब्ध करवाई जाएंगी।
फार्मासिस्ट संभालेंगे पशुओं की सेहत
प्रदेश में कम से कम 103 पशु औषधालय शीघ्र ही खोले जाएंगे, जिन्हें प्रशिक्षु वेटरीनेरी फार्मासिस्ट संचालित करेंगे। इन सभी पंचायतों में पशु औषधालय खोलने और इनके संचालन के लिए सभी आवश्यक वस्तुएं एवं उपकरण पशु पालन विभाग मुहैया करवाएगा। दवाइयों के प्रावधान, तकनीकी उपकरणों, चारा बीज और रिकार्ड रजिस्टरों का प्रावधान विभाग ही करेगा। इसके अलावा, पशु सहायक को मासिक 5000 हज़ार रुपये के पारिश्रमिक का भुगतान भी पशुपालन विभाग करेगा।इस वर्ष 900 उम्मीदवारों को वेटरीनेरी फमासिस्ट का प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है, जिन्हें प्रशिक्षण पूरा करने के उपरांत पंचायत के नियंत्रण वाली प्रस्तावित नई डिस्पेंसरियों में नियुक्त किया जाएगा। प्रशिक्षण पूरा होने तक पशु औषधालयों के सुचारू संचालन के लिए सेवानिवृत्त पशु सहायकों की सेवाएं ली जाएंगी।

आम आदमी की पहुंच से दूर सरकार की सूचना


सूचना के अधिकार की लौ अभी तक गांव- देहात तक नहीं पहुंची
आम आदमी की पहुंच से दूर सरकार की सूचना
जवाबदेह और पारदर्शी व्यवस्था की सरकारी घोषणाएं सिर्फ कागजी

बेशक देश में सूचना अधिकार कानून को लागू हुए पांच साल का लंबा अर्सा बीत चुका हो, लेकिन प्रदेश के अधिकतर गांवों में सूचना अधिकार का प्रयोग कैसे हो, ऐसी शिक्षा देने वालों का अभाव ही रहा है। ऐसे में गांव के लोग इस क्रांतिकारी कानून का प्रयोग करना नहीं सीख पाए हैं। हालांकि सारी दावों के अनुसार लोगों को इस कानून के प्रति जागरूक करने में लाखों खर्च किए गए हैं, लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी इस कानून के प्रति जहां अफसरों में जहां नकारात्मक रवैया है, वहीं लोगों को इस बात तक का इल्म नहीं है कि उनकी मांगी सूचना अगर गलत मिलती है अथवा आधी अधूरी मिलती है तो उस सूरत में वह क्या करे। हालांकि ऐसा नही है कि लोग सरकारी सूचना हासिल नहीं करना चाहते, लेकिन सूचना हासिल करने के रास्ते में इतने रोड़े हैं कि आम आदमी के लिए सही सूचना हासिल करने में खासा वक्त और पैसा बर्बाद हो रहा है। प्रदेश सूचना आयोग भी प्रदेश के अफसरों को समय पर सूचना देने के लिए बाध्य नहीं कर पा रहा है। ऐसे में गांव स्तर पर ऐसी सूचनांए भी उपलब्ध नहीं हैं, जो जन सूचना अधिकारी को मांगे बिना लोगों को खुद उपलब्ध करवानी है। इसकी मुख्य वजह भी है कि सूचना अधिकार कानून के प्रसार प्रचार में काम करने वाली संस्थाओं को सराकर ने अपने साथ जोडऩा मुनासिब नहीं समझा है। हालांकि यह सुखद है कि समाजिक संस्थाओं की अपने स्तर पर की गई पहल के चलते अरविंद केजरीवाज जैसे सूचना अधिकार कानून का प्रारूप तैयार करने वाले राष्ट्रीय स्तर के कार्यकर्ता ने प्रदेश में सूचना अधिकार कानून का पाठ पढ़ाया।
जुर्माना देने को तैयार, सूचना देने से इनकार
प्रदेश में सूचना अधिकार कानून की धार कुंद करने में अफसर पूरी तरह से जुटे हुए हैं। सूचनाएं लटकाना, देर से देना, आधी अधूरी देना जेसे मुद्दे हर रोज सुर्खी बन रहे हैं। अफसर जुर्माना देने को तो तैयार हैं लेकिन सूचना से इनकार है।
बीते वर्ष प्रदेश के 124 जन सूचना अधिकारियों को 17,869 आवेदन प्राप्त हुए, जिनमें से 259 रद किए गए। तीन सौ से अधिकत सूचना अधिकार कानून के आवेदनों को अधिकारियों ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया। ऐसे में अपील प्राधिकारियों के समक्ष 338 अपीलें दायर की गई। हैरानी तो इस बात कि है कि अपीलीय प्राधिकारी भी आवेदक की मांगी की सूचना उपलब्ध करवाने में नाकाम रहे और चार सौ के करीब मामलों में सूचना हासिल करने के लिए आम आदमी को शिमला स्थित सूचना आयोग के दरवाजे तक दस्तक देनी पड़ी। आयोग को 204 शिकायतें व 184 दूसरी अपीलें प्राप्त हुईं।
सूचना आयोग के फैसले अफसरों के ही पक्ष में
प्रदेश में सूचना अधिकार कानून के प्रचार प्रसार को लेकर काम करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं का आरोप है कि प्रदेश में सही समय पर सूचना न देने वाले अधिकारियों के प्रति प्रदेश सूचना आयोग का रवैया अफसरों के प्रति पक्षपाती रहा है। आयोग ने अधिकतर मामलों में अफसरों को सूचना न देने पर या तो चेतावनी देकर छोड़ दिया अथवा बहुत ही कम मामलों में थोड़ा सा जुर्माना किया। सूचना आयोग सूचना समय पर उपलब्ध करवाने के लिए अफसरों को बाध्य करने में नाकाम रहा । सूचना आयोग की ओर से सूचना अधिकार कानून को जन जन तक पहुचाने में भी प्रदेश सूचना आयोग ने कोई अहम पहल नहीं की।
वीडियो कांफ्रेंसिंग दूर की बात
केंद्रीय सूचना आयोग ने बेशक अपीलें सूचने के लिए वीडियो कांफ्रंसिंग की सूविधा सारे देश में उपलब्ध करवा दी हो, लेकिन आईटी के क्षेत्र में राष्ट्रीय आवार्ड से इतराने वाले प्रदेश में प्रदेश सूचना आयोग वीडियो कांफ्रेसिंग के माध्यम से अपीलों अथवा शिकायतों की सुनवाई करने की व्यवस्था नहीं कर पाया है। हालांकि प्रदेश सूचना आयोग ने प्रदेश में सर्किट बैंच लगाने की पहल की लेकिन ज्यादातर अपीलों की सुनवाई शिमला में ही हुई। ऐसे में सस्ती सरकारी सूचना उपलब्ध करवाने की सरकारी बातें हवा ही लगती हैं।
हिमाचल प्रदेश में सूचना अधिकार कानून को लेकर जागरूकता फैलाने में बेशक सामाजिक संस्थाएं पहल कर रही हों लेकिन प्रदेश सूचना आयोग और प्रदेश सरकार का रवैया सूचना अधिकार कानून को कमजोर करने वाला ही रहा है।
अरविंद केजरीवाल, नेशनल आरटीआई एक्टिविस्ट ।
सूचना अधिकार कानून के तहत हासिल सूचनाओं से जब सरकारी अफसरों का भंडाफोड़ शुरू हुआ तो अफसरों ने सूचनाएं लटकानी शुरू कर दीं। सूचना आयोग भी अफसरों के पक्ष में ज्यादा दिखता है।
भुवनेश्वर शर्मा, आरटीआई ब्यूरो चंबा
सूचना अधिकार कानून के प्रति लोगों, जन सूचना अधिकारियों और अपीलीय अधिकारियों को एकसाथ जागरूक करने के प्रयास न सरकार की तरफ से गंभीर हुए और न ही सूचना आयोग की तरफ से।
लवण ठाकुर आरटीआई ब्यूरो मंडी
भ्रामक, अधूरी और देरी से सूचनाएं देने पर कई जन सूचना अधिकारियों को जुर्माना हो चुका है , लेकिन इसके बावजूद सूचना आयोग और सरकार अफसरों को सही और समय पर सूचना देने के लिए बाध्य नहीं कर पाई है।
एडवोकेट रणजीत चौहान, आरटीआई एक्टिविस्ट जोगेंद्रनगर

बुधवार, 16 मार्च 2011

क्या हन दर्द दयारां दे।।

अज भी रस्ता दिखते जेहड़ा बिछड़ेयां यारां दे।
कुसजों बेई करी दसिये क्या हन दर्द दयारां दे।।

खूब कुल्हाड़ी चली जंगलां ठेकेदारां दी ।
शहीद होई के सोभा बणेयो घरा द्वारां दे।

बिज बणी के गिरेया पाणी खड्डां नाला दां।
पहाड़ा कर्ज चुकाए गासे दियां डारां दे।।

कद्र कुनी नी किती कुदरती हार सिंगारां दी ।
हुण बणे कुआलु़ रस्ते सारे मोटर कारां दें।।

कदी गवाह बणेयो थे जेहड़ा सच्चेयां प्यारां दे।
हुण हवा सैह होये भावुक दिन बहारां दे।।

बुधवार, 2 मार्च 2011

किलो सेब बेचने को नहीं होना पड़ेगा मजबूर

ढलानों पर बसे गांवों के उत्पाद आसानी से मार्केट तक पहुंचा सकता है ग्रेविटी रोप वे
बंगलूर के विशेषज्ञ राजरत्नम ने मुख्यमंत्री से की इस तकनीक को अपनाने की वकालत

सेब की बंपर फसल होने के बावजूद इस बार भी कुल्लू और मंडी के ढलानों पर बसे दर्जनों गांवों के सेब उत्पादकों के हाथों मायूसी ही आई। खराब मौसम और सेब को सही समय पर बाजार में पहुंचाने की सही यातायात व्यवस्था न होने की वजह से कई सेब उत्पादकों को मात्र दस रूपए किलो के हिसाब से अपना उत्पाद बेचने को मजबूर होना पड़ा। ढलानों पर बसे प्रदेश के सैंकडों गांवों के हजारों सेब और सब्जी उत्पादकों को कम लागत पर बिना ऐसी परिवहन व्यवस्था प्रदान की जा सकती है कि सस्ती दरों पर उनका ग्रामीण उत्पाद आसानी के शहरी बाजार तक पहुंच सकता है। बंगलोर के एक विशेषज रात रतनम ने प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को पत्र लिख कर ग्रेविटी रोप वे तकनकी को अपनाने की वकालत की है। ग्रामीण उत्पाद को सस्ती ट्रांसपोटेशन के बलबूते बाजार तक पहुचाने की नेपाल और उतराकाशी के नौगांव विकासखंड में कामयाब रही इस तकनीक के विकसित होने से ट्रांसपोर्ट सबसिडी जैसी जिम्मेवारी से भी प्रदेश सरकार को राहत मिलेगी। हालांकि निजी स्तर पर प्रदेश के कई ढलानदार गावों में ऐसे ग्रेविटी रोप वे लगाए गए हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से ऐसी पहल की दरकार है।
कम लागत, सस्ती तकनीक
ग्रेविटी रोप वे पर अपनी स्टडी में नेपाल इंजीनियर एसोशिएशन के केसी लक्ष्मण इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रेविटिी रोप वे तकनीक सबसे सस्ती, सरल और सुविधाजनक तकनीक है । पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना कम लागत पर गांव के उत्पाद को सही समय पर बाजार तक पहुंचा कर ग्रामीण अािर्थकी को मजबूत किया जा सकता है। बिना ऊर्जा के चलने वाले ग्रेविटी रोप वे के संचालन का प्रबंधन भी सामुदायिक स्तर पर किया जा सकता है।
हर साल सड़ते करोड़ों के फल-सब्जियां
हर साल करोड़ों की पल सब्जियां खेतों में ही इसलिए सड़ जाती हैं क्योंकि सही वक्त पर उनको बाजार में पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हो पाती है। पहाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक भी कई क्षेत्रों में सडक़ों की ऊचित व्यवस्था नहीं है। अगर है भी तो खराब मौसम के कारण सडक़ों की हालत इतनी दयनीय हो जाती है कि ऐसे उपाद को पीठ अथवा खच्छर पर ढोना पड़ता है, जिससे ट्रांस्पोटेशन कोस्ट बढ़ जाती है।

ग्रेविटी रोप वे तकनकी नेपाल में बेहद कामयाब रही है। उत्तराकाशी के नौगांंव विकास खंड में भी ग्रेविटी रोंप वे तकनीक कारगर साबित हुई है। ऐसी तकनीक हिमाचल प्रदेश के पहाडी गांवों में क्रांतिकारी साबित हो सकती है।
केसी लक्षमण, रिसर्चर नेपाल इंजीनियर्ज एसोशिएशन नेपाल।

इस साल भी प्रदेश के कई सेब उत्पादकों को यातायात का सही प्रबंध नहीं होने की वजह से अपने उत्पादक कम कीमत पर बेचने को मजबूर होना पड़ा । ऐसे में ग्रेविटी तकनीक समसामायिक व प्रासंगिक है।
रात रत्नत, बंगलूर के विशेषज्ञ जिन्होंने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से इस तकनीक को अपनाने की वकालत की है।

अपनी पहचान तलाशती हिमाचली टोपी

अपनी पहचान तलाशती हिमाचली टोपी

दुनिया भर में किसी जगह के नाम पर प्रचलित टोपियों का ज़िक्र होता है तो उसमें कश्मीरी टोपी और अफगानी टोपी के बाद हिमाचल प्रदेश का नाम आता है। हिमाचली टोपी के नाम से जानी जाने वाली ये टोपी हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हिमाचली टोपी मान-सम्मान के आदान-प्रदान का एक ज़रिया है। हालांकि आधुनिकता की चपेट में आए हिमाचल के युवा इस टोपी को उतारकर स्टाइलिश और डिज़ाइनर कैप्स का रुख करने लगे हैं लेकिन आज भी सूबे की 15 से 20 प्रतिशत जनता के शीश पर यही टोपी सजी रहती है। प्रदेश की पहाड़ी और मूल आबादी आज भी इन टोपियों को पहनती है। ये पारंपरिक टोपी हिमाचल प्रदेश में राजनैतिक पहचान भी रखती हैं। हिमाचल में सरकार बदलते ही शिमला के रिज मैदान में लोगों से सिरों पर दिखने वाली टोपियों के रंग बदल जाया करते हैं। कांग्रेस की सरकार के दौरान रिज में हरे रंग वाली टोपियां पहने लोग दिखते थे जबकि अब लाल रंग की टोपी पहने लोगों की तादात ज्यादा दिखती है। दरअसल हरे रंग वाली ये बुशहरी टोपी राजा वीरभद्र सिंह और उनके समर्थकों की पहचान है।
1984 में जब वीरभद्र सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तभी से ये टोपी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेसियों की पहचान बनी है। कुछ दिन पहले जब वीरभद्र सिंह मंत्री पद की शपथ ले रहे तब भी उन्होंने यही हरे रंग की टोपी पहनी हुई थी। इसके इतर बीजेपी के नेताओं ने बुशहरी टोपी की काट में कुल्लुवी टोपी को अपनाया है। लाल रंग वाली ये टोपी उस वक्त चलन में आई जब प्रोफेसर प्रेमकुमार धूमल 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए थे।
इससे पहले शांता कुमार की कुल्लुवी टोपी, जिसमें धारियां सी बनी होती हैं, बीजेपी की पहचान थी।
सन् 1977 से लेकर 1990 तक जब तक का शांता कुमार राजनीति के केन्द्र में रहे, ये टोपी खासी प्रसिद्ध रही। लेकिन अब खुद शांता कुमार के सिर पर ये टोपी कम ही नजऱ आती है। टोपियों की राजनीति को महत्ता को समझते हुए कांग्रेस को दामन छोड़ बीएसपी का पल्लू थामने वाले मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने बीजेपी और कांग्रेस की इन टोपियों को टक्कर देने के लिए तिरंगनी टोपी लॉन्च की थी। लेकिन न तो ये टोपी हिमाचली टोपी को टक्कर दे पाई और न ही बीएसपी कुछ रंग दिखा पाई। मनकोटिया के राजनीति से संन्यास लेने के साथ ही ये टोपी भी ग़ायब हो गई है।
हिमाचली टोपी प्रदेश की मान-मर्यादा से जुड़ी हुई है। बाहर से आने वाले हर मेहमान का सम्मान हिमाचली टोपी पहनाकर ही किया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मायावती, सोनिया गांधी, अफगान राष्ट्रपति हामिद करजेई समते कई देशी विदेशी हस्तियां हिमाचली टोपी पहन चुके हैं। लेकिन इसमें भी राजनीति होती है। जिस पार्टी की सरकार होती है, वह उसी रंग की टोपी अपने मेहमानों को पहनाती है। विदेशों से आने वाले पर्यटक तक इस टोपी के मुरीद हैं। हिमाचल से लौटते वक्त वो अपने साथ एक टोपी ले जाना नहीं भूलते। लेकिन हिमाचली टोपी चलन से हटकर अब एक प्रतीक बन कर रह गई है। सिर्फ इलेक्शन के समय इसकी डिमांड बढ़ती है वरना कोई नहीं पूछता। घरों में अलमारियों में नेप्थेलीन की गोली डालकर रख दी गई इस टोपी को विशेष मौकों पर ही बाहर निकाला जाता है। अलग-अलग पार्टियों और नेताओं की पहचान बनी हिमाचल टोपी आज खुद अपनी पहचान खोती जा रही है।

पैसे की कमी की आड़, स्कूली खेल प्रतिभाओं से खिलवाड़

हिमाचल प्रदेश में अडऱ 17 खेल आयोजन बंद
अंडर 14 के बाद बाद अब अंडर 19 खेलने की ही व्यवस्था
आरटीआई के तहत ली गई सूचना में हुआ सनसनीखेज खुलासा

सारे देश में जहां अंडर 14 के बाद अंडर 17 स्कूली खेलों का आयोजन होता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में हिमाचल क्रीड़ा संघ के तानीशाही फरमान के चलते अंडर 17 स्कूली खेलों के आयोजन को बंद कर दिया गया है। ग्रामीण खेल प्रतिभाओं से खिलवाड़ का आलम देखिए कि अब यहां के ग्रामीण खिलाडिय़ों को उस समय अपने जोहर दिखाने का अवसर नहीं मिल रहा है, जब वे सबसे ज्यादा ऊर्जावान हाते हैं। प्रदेश क्रीड़ा संघ की आमसभा में प्रदेश के स्कूलों में होने वाले अंडर 17 खेल आयोजनों को यह कह कर दरकिनार कर दिया कि ऐसे आयोजनों के लिए स्कूलों के पास धन का अभाव होता है। सर्वागीण विकास का दम भरने वाले शिक्षा विभाग को लगता है कि अंडर 17 के खेल आयोजन से पढाई बाधित होती है। अंडर 17 खेल आयोजन को बंद करवाने के लिए प्रदेश क्रीड़ा संघ ने तीसरा कारण यह बताया कि अगर स्कूलों में अंडर 17 खेल आयोजन करवाए जाते हैं तो स्कूलों में समानांतर टीमें बन जाएंगी। लेकिन जब सूचना अधिकार कानून के तहत इस बारे में कामगार मजदूर संघ के अध्यक्ष संत राम ने सूचना हासिल की तो शिक्षा विभाग और प्रदेश क्रीडा संघ की पोल खुल गई है। आयोजन से पल्लू खींच लेने का सबसे बड़ा कारण आयोजन के लिए धन की कमी बताया गया लेकिन हकीकत यह है कि खेल आयोजन के लिए जितने पैसे की जरूरत होती है, शिक्षा विभाग स्पोर्टस फंड के रूप में बच्चों से पांच गुणा अधिक राशि एकत्रित कर रहा है। अंडर 17 स्कूली खेल आयोजन को बंद करने के प्रदेश क्रीड़ा संघ के इस कारनामे की शिकायत प्रदेश के शिक्षा मंत्री आईडी धीमान से की गई है।
खेल विशेषज्ञ मानते हैं कि 14 साल से लेकर 17 साल की उम्र में युवा सर्वाधिक ऊर्जावान होता है। सब जूनियर स्तर पर इसी उम्र में अधिकतर स्कूली खिलाड़ी अपनी खेल प्रतिभा के बलबूते अपने खेल कैरियर की बुनियाद रखते हैं। यही कारण है कि देश के सभी राज्य अंडर 17 स्कूली खेल आयोजनों का हर साल कलेंडर जारी करते हैं और अंडर 17 खेलों का राष्ट्रीय आयोजन भी होता है, लेकिन प्रदेश की स्कूली खेल प्रतियोगिताओं का दम घोंटने के लिए प्रदेश सरकार की ओर से यहां अंडर 17 खेलों के आयोजन से हाथ खींच लिए हैं। खेल विशेषज्ञों के अनुसार किसी भी खिलाड़ी के लिए अंडर 17 उसके कैरियर के लिए बेस होता है,ऐसे में प्रदेश की हजारों स्कूली खेल प्रतिभाओं के सुनहरे भविष्य को देखते हुए प्रदेश में फिर से अंडर 17 सकूली खेलों का आयोजन शुरू होूना चाहिए।
बेशक प्रदेश क्रीड़ा संघ जिसका अध्यक्ष प्रदेश उच्च शिक्षा निदेशक होते हैं, यह रोना रोता है कि ऐसे आयोजन के लिए पैसों की कमी खलती है लेकिन आरटीआई के तहत मिली जानकारी उसके इस दावे का खारिज करती हे। जिस साल अंडर 17 खेलों को बंद करने के फरमान जारी हुए उस साल शिक्षा विभाग ने स्पोर्टस फंड के नाम पर स्कूली बच्चों से 94,86720 रूपए जुटाए जबकि अंडर 17 खेलों के आयोजन पर मात्र 20,15844 रूपए की राशि खर्च हुई। यहां कि गौरतलब है कि स्कूली खेलों के आयोजन के लिए केंद्र और प्रदेश सरकार की ओर से स्कूलों को कोई धनराशि उपलब्ध नहीं करवाई जाती। कामगार मजदूर संघ के अध्यक्ष संत राम कहते हैं कि सारे देश में अंडर 17 स्कूली खेलों का आयोजन होता है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में तानाशाही फरमानों के चलते यह आयोजन बंद कर दिया गया है। इस बारे में शिक्षा मंत्री आईडी धीमान से शिकायत की गई है।

पहाड़ पर देव आस्था के प्रति बहुत गहरी हैं जड़ें

हिमाचल के यूं ही नहीं कहते देवभूमि
प्रदेश के अधिकतर मेलों के साथ है देव आस्था का सीधा संबंध

यहां हर जनपद का अपना दवेता है। देवताओं के नाम पर हर जनपद में हर साल साल मेलों का आयोजन होता है और देवताओं के मेले में भाग लेना यहां लोग अपना भगय समझते हें। कभी कुल्लू का ढालपुर मैदान देवताओं के स्वागत में बांहे परासता है तो कभी मंडी का पड्डल मैदान देवताओं के सदियों पुराने अनूठे देव मिलन का गवाह बनता है। किन्नर कैलाश, मणीमहेश कैलाश और श्रीखंड महादेव की दुर्गम यात्राओं के कष्टों को यहां के लाखों लोग हर साल हंसते हंसते सह कर अपने इप्ट के दरबार मे ंहाजिरी लगाते हैं। प्रदेश के अधिकतर बड़े उत्सवों का सीधा संबंध यहां के ग्राम देवताओं से जुड़ा है और विभिन्न मेलों में होने वाला देवताओं का संगम हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों का एहसास भी करवाता है। हिमाचल प्रदेश को यूं ही ही देव भूमि के नाम से नहीं पुकारा जाता है। यहां देवता के प्रति आस्था की जड़ें बेहद गहरे तक गई हैं।
शोध का सच
प्रदेश में ऐसा कोई गांव नहीं है जहां किसी न किसी देवता की पूजा न होती हो। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा किए गए शोध में सामने आई है। प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विद्या शारदा की देखरेख में यशपाल शर्मा व ओम प्रकाश ने सोलन व ऊपरी शिमला के विभिन्न क्षेत्रों में पूजे जाने वाले देवताओं पर शोध किया है। शोध कहता है कि यहां सदियों से देवताओं की पूजा होती आ रही है। देवता महाभारत कालीन हैं और पूजा की भी विधि भी उसी समय की है। शोध कहता है कि कभी यहां देवतंत्र विकसित रहा है। यही कारण है कि यहां अधिकतर विवादों का निपटारा देवता की अदालत में ही होता है और देवता के आदेश सभी को मान्य होते हैं। प्रोफेसर शारदा का मानते हैं कि प्रदेश में आदि काल से ही देवतंत्र का प्रभाव रहा है।
आजादी का जश्न और देवता
अपने ग्राम्य देवताओं के प्रति यहां के लोगों में विशेष आकर्षण रहा है। केवल लोग ही देवता के आयोजन में शामिल नहीं होते, बल्कि लोगों के जश्र में देवता भी शामिल होते हैं। देश की आजादी के बाद जब दिल्ली में पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया तो गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में मंडी के देवता भी शामिल हुए। सिराज के देवता पुंडरिक ऋर्षि पंजाई अपने पारम्परिक वाद्ययंत्रों, देवलुओं और बजंतरियों के साथ झूमते गाते गणतंत्र के आयोजन में शामिल हुए। देवता का अपने मूल स्थान पर पहुंचने पर बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया।

नोट : देश के पहले गणतंत्र दिवस में भाग लेने वाले सिराज के देव पांडुरिक ऋषि की फोटो पांच मिनट में भेजी जा रही है।
—भावुक

छोटी काशी में उतर आए सैंकड़ों देवता

दुनिया की अनूटी देव मिलन परम्परा सदियों से निभा रहा मंडी

पारम्परिक वाद्ययंत्रों की धुनों पर होता है पुरातन देव परम्परा का निर्वाह

यकीन मानिए! यहां देवता कभी रूठते हैं तो कभी एक -दूसरे से गले मिलते हैं। सोने- चांदी की पालकियों पर सवार सैंकड़ों देवताओं की मिनल की दुनिया की अनूठी परम्परा आज भी मंडी जनपद में जिंदा है। पारम्परिक लोक वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों पर देव परम्परा के निर्वाह के लाखों लोग गवाह बनते हैं। ग्राम्य देवताओं की आस्था के इस महाकुंभ के लिए ब्यास नदी के तट पर बसा छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी नगर इन दिनों तैयारियों में जुटा है। इसी के साथ तैयारियों में जुट गए हैं देवताओं की पालकी के साथ आने वाले देवलू(देवताओं के पुजारी) और बजंतरी (वाद्ययंत्र वादक)। 3 मार्च से 9 मार्च तक घंटियों की आवाज के साथ जगने वाला मंडी नगर देव लोक में तबदील हो जाएगा। मंडी जनपद के इस पारम्परिक उत्सव की शुरूआत जलेब (शोभायात्रा) से होगी, जिसमें मेले में भाग लेने आए सभी देवता शामिल होंगे। मेले में आने वाला हर ग्राम्य देवता पहले राज घराने के अराध्य देव माधोराव के मंदिर में हाजिर देंगे, फिर भूतनाथ मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे। इसके बाद देवता पड्डल मैंदान में पहुंचेगे। माधोराव के दरबार में नतमस्तक होने के पश्चात् ऋषि कमरुनाग (वर्षा के देवता), हर साल की भांति इस बार भी एक चोटी पर स्थित टारना मां के मंदिर में अगले सात दिन के लिए वास करेंगे। देवताओं के इस उतसव के रंगों में लोक कलाकारों, हस्तशिल्पियों और दस्तकारों के लिए अपना हुनर दिखाने का बड़ा प्लेट फार्म होगा। मंदिर मेला कमेटी की ओर से शिवरात्रि की संध्याओं को मनारंजक बनाने के लिए पचास लाख से ज्यादा की राशि खर्च की जाएगी। लाक संस्कृति की धीर गंभीर विधाओं को लेकर चार दिन का नाट्य उत्सव भी होगा। इस उत्सव मे जहां पांच लाख से ज्यादा शिवभक्त भोले बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचेगे, वहीं सरकार की आम जनता के करीब आएगी। उत्सव की शुरूआत मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल करेगे तथा समापन अवसर पर राज्यपाल ऊर्मिला सिंह मुख्यातिथि के तौर पर देवताओं की शोभायात्रा में शामिल होंगे। इसी मेले के साथ प्रदेश के विभिन्न जनपदों में होने वाले मेलों की शुरूआत हो जाएगी।
मंडी शिवरात्रि का इतिहास
शिवरात्रि मेले के शुरू होने को लेकर अनेक मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार 1788 में मंडी रियासत की बागडोर राजा ईश्वरीय सेन के हाथ में थी। ईश्वरीय सेन कांगडा के महाराज संसार चंद की लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे। इसी खुशी में ग्रामीण भी अपने देवताओं को राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर की ओर चल पडे। राजा और प्रजा ने मिलकर यह जश्न मेले के रूप में मनाया। दूसरी मान्यता के अनुसार मंडी के पहले राजा बाणसेन शिव भक्त थे, जिन्होंने अपने समय में शिवोत्सव मनाया। बाद के राजाओं कल्याण सेन, हीरा सेन, धरित्री सेन, नरेंद्र सेन, हरजयसेन, दिलावर सेन आदि ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। अजबर सेन, स्वतंत्र मंडी रियासत के वह पहले नरेश थे, जिन्होंने वर्तमान मंडी नगर की स्थापना भूतनाथ के विशालकाय मंदिर निर्माण के साथ की व शिवोत्सव रचा। छत्र सेन, साहिब सेन, नारायण सेन, केशव सेन, हरि सेन, प्रभृति सेन ने भी इस उत्सव की परम्परा को बनाए रखा।
सूरजसेन ने दी नई पहचान
राजा सूरज सेन (1637) के समय इस उत्सव को नया आयाम मिला। ऐसा माना जाता है कि राजा सूरज सेन के अ_ारह पुत्र हुए। ये सभी राजा के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने एक चाँदी की प्रतिमा बनवाई जिसे माधोराय नाम दिया। राजा ने अपना राज्य माधोराय को दे दिया। इसके बाद शिवरात्रि में माधोराय ही शोभायात्रा का नेतृत्व करने लगे। राज्य के समस्त देव शिवारात्रि में आकर पहले माधोराय और फिर राजा को हाजिरी देने लगे। इसके बाद के शासकों में राजा श्याम सेन शक्ति के आराधक थे, जिन्होंने शिव शक्ति परंपरा को सुदृढ किया। शिवोत्सव का एक बडा पडाव शक्ति रूप श्यामकाली भगवती मां टारना के साथ जुडा हुआ है। इस दौरान सिद्ध पंचवक्त्र, सिद्धकाली, सिद्धभद्रा के शैव एवं शक्ति से जुडे मंदिरों का निर्माण हुआ।
बसंत के स्वागत की तैयारी
फाल्गुन का महीना बर्फ के पिघलने के बाद बसंत के शुभारंभ का होता है। फाल्गुन माह का स्वागत पेड पौधों की फूल-पत्तियाँ करने लगती हैं और देवता के पुजारी अपने देवता के रथों को रंग-बिरंगा सजाने लगते हैं तो नगर के भूतनाथ मंदिर में शिव-पार्वती के शुभ विवाह की रात्रि को नगरवासी मेले के रूप में मनाना शुरू करते हैं। लोग ठंड के कारण दुबके रहने के बाद बसंत ऋतु का इंतजार करते हैं । जैसे ही बसंत में जैसे ही शिवरात्रि का त्यौहार आता है तो वे सजधज कर मंडी की तरफ कूच शुरू कर देते हैं। मंडी में पुराने इक्कासी मंदिर शिव व शक्तियों के हैं, जिनमें बाबा भूतनाथ व अर्धनारीश्वर भी शामिल हैं। जहाँ भगवान शिव के सभी मंदिर शिखर शैली में मौजूद हैं वहीं पर शक्तियों के मंदिर मंडप शैली में हैं। मंडी में भगवान शिव के 11रुद्र रूप हैं, जबकि नौ शक्तियाँ हैं जिनमें श्यामाकाली, भुवनेश्वरी, चिंतपूर्णी, दुर्गा, काली में भद्राकाली, सिद्धकाली, महाकाली शामिल हैं।
देवी देवताओं की यात्रा और सवारियाँ
मंडी जनपद के हजारों गांव में शिवरात्रि मेले के प्रति कितनी आस्था है, इसका अदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि
जनपद के अंचलों में महीनों पहले ग्रामीण देवताओं की पालकियां सजने लगती हैं। लोग महीनों पहले मंडी के शिवरात्रि मेले में जाने की तैयारी में जुट जाते हैं । सैकडों की संख्या में देवी-देवताओं के रथ व उनके साथ आए देव सेवकों का आपसी मिलन, ढोल नगाड़ों, करनालों, रणसिंघों की गूंजती आवाजों दिन तक थिरकने वाली मंडी का यह पर्व जहां अभूतपूर्व तो होता ही है ,रोमांचक भी कम नहीं होता। मंडी के मुख्य राज देव माधोराव की पालकी के साथ देवी-देवताओं की पालकियों का गले मिलना, देवताओं का नाचना, झूमना, रूठना, मनाना सब नई दुनिया जैसा लगता है। मेले के दौरान जहाँ एक ओर ऐतिहासिक पड्डल मैदान में देवी-देवता आपस में मिलने में व्यस्त होते हैं, वहीं पड्डल मैदान के दूसरे छोर पर व्यापारिक दृष्टि से लगाई गई दूकानों पर व्यापार होता है।

ब्रीच ऑफ ट्रस्ट

रोरिक ट्रस्ट में एक करोड़ का गोलमाल

रोरिक ट्रस्ट के अध्यक्ष है मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल
कई सालों से नहीं हो पाई ट्रस्टियों की एक भी बैठक
अकादमी के लिए नहीं बन पाया अभी तक अपना भवन
बोर्ड ऑफ ट्रस्ट को नही मिली बैठक करने की फुर्सत

भारत- — रूस की सांस्कृतिक मैत्री का प्रतीक नग्गर स्थित रोरिक ट्रस्ट इन दिनों करोड़ों की गड़बडिय़ों को लेकर सुर्खियों में है। अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के प्रधानमंत्री रहते ट्रस्ट को जो करोड़ों की रकम दी थी, ट्रस्ट के पास उस रकम का कोई हिसाब— किताब ही नहीं है। संस्कृति के संरक्षण के नाम पर ट्रस्ट के पैसे की खुर्द बुर्द का पटाक्षेप होते ही सरकार ने इसकी जांच शुरू की है। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के जांच के आदेश के बाद और गड़बडिय़ां सामने आई हैं। ट्रस्ट के पास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दिए गए एक करोड़ रुपए कहां गए, इसके बारे में ट्रस्टियों के पास कोई हिसाब नहीं है। रूस के दार्शनिक निकोलस रोरिक की याद में 1923 में रोरिख कला संग्रहालय का निर्माण किया गया था। रोरिक ट्रस्ट के आजीवन सदस्य शक्ति सिंह ने आरटीआई के तहत ली गई जानकारी के आधार पर अनियमितताओं और गड़बडिय़ों को उजागर किया है। यहां स्थित कला अकादमी का संचालन भी एक अस्थायी भवन में हो रहा है। इसके लिए अब तक भवन नहीं बन पाया है। 2003 से लेकर बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठकें नहीं होने से आज इस ट्रस्ट में सारी गतिविधियां ठप्प हैं। रोरिक आर्ट गैलरी भी मात्र पेंटिंग की प्रदर्शनी तक ही सीमित रह गई है। कला अकादमी भवन के निर्माण को लेकर कहा जा रहा है कि जमीन उपलब्ध न होने के कारण इसका निर्माण नहीं हो पा रहा है। नौ साल से ट्रस्ट के संचालक कॉलेज के लिए जमीन उपलब्ध नहीं करवा पाए हैं। कुल्लू जिला के जिलाधीश एवं ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष बीएम नांटा का कहते हैं कि ट्रस्ट की गतिविधियों और इसके विस्तार के लिए सभी फैसले बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक में लिए जाते हैं । उनका कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री ने आर्ट अकादमी के लिए जो एक करोड़ रुपए दिए थे, वह भवन के लिए जमीन उपलब्ध न होने के कारण खर्च नहीं किए जा सके हैं। अब 25 मार्च को बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक प्रस्तावित है। इसमें ही ट्रस्ट को लेकर कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने की संभावनाएं है। शक्ति सिंह का आरोप है कि बोर्ड के ट्रस्टी की कुछ सालों से कोई बैठक नहीं हुई है। शक्ति सिंह के अनुसार वर्ष 2006 के बाद एक भी बैठक का आयोजन नहीं हुआ है । इस वर्ष में एक ही बैठक हुई है, जबकि वर्ष में बोर्ड ट्रस्ट की चार बैठकें होना अनिवार्य है। इसके अलावा रोरिक ट्रस्ट संचालकों के व्यवहार पर भी अंगुलियां उठाई गई हैं। रूस के महान दार्शनिक निकोलस रोरिक ने अपने जीवन के अंतिम 20 साल नग्गर में बिताए और उन्होंने इस दौरान तीस पुस्तकें लिखी और करीब सात हजार से अधिक पेंटिग बनाई जिसमें पूर्ण हिमालय और प्राकृतिक सौंदर्य को कैनवास पर चित्रित किया। ट्रस्ट के आजीवन सदस्य शक्ति सिंह का आरोप है कि बोर्ड के ट्रस्टी की कुछ सालों से बैठक नहीं हुई है। चालू वित्त वर्ष में एक ही बैठक हुई है, जबकि वर्ष में चार बैठकें होना अनिवार्य है। उधर, डीसी कुल्लू एवं ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष बीएम नांटा का कहना है कि पिछले वर्ष ट्रस्ट को लेकर एक बैठक हुई थी। बैठक 25 मार्च को बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक प्रस्तावित है। उनका कहना है कि अगर ट्रस्ट में अनियमितताएं बरती गई हैं तो उसकी जांच होगी और दोषी के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है।
छुपाई जा रही ट्रस्ट की संपत्ति
नग्गर स्थित रोरिक ट्रस्ट बेशक प्रदेश सरकार के नियंत्रण में हो, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से रूस की मदद से चलाए जा रहे इस ट्रस्ट को प्रदेश सरकार की ओर से कितनी मदद मिल रही है, इसकी जानकारी देने वाला सूचना अधिकार कानून लागू होने के पांच बाद तक कोई नहीं था। प्रदेश के मुख्यमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। बावजूद इसके सूचना अधिकार कानून को लागू हुए पांच साल होने के बाद भी ट्रस्ट ने जनसूचना अधिकारी और एपिलेट अथॉरिटी तैनात नहीं किया । सूचना अधिकार कानून के तहत सरकारी मदद से संचालित होने वाले ट्रस्ट को भी अपना जनसूचना अधिकारी तैनात करना अनिवार्य बनाया गया है ,लेकिन इंटरनेशनल रोरिक ट्रस्ट प्रबंधन ने सरेआम केंद्र सरकार के इस कानून की धज्जियां उड़ाई । इस बात की पोल उस वक्त खुली जब ट्रस्ट के बारे में सूचना अधिकार कानून के तहत हिमाचल प्रदेश आरटीआई ब्यूरो के प्रदेश संयोजक लवण ठाकुर ने जानकारी मांगी । इस पर हरकत में आते ही डीसी कुल्लू बीएम नांटा ने प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग की प्रधान सचिव मनीषा नंदा को पिछले साल 24 नवंबर को पत्र लिख कर आरटीआई एक्ट की धारा 5 के तहत ट्रस्ट के जनसूचना अधिकारी व एपिलेट अथॉरिटी नियुक्त करने की अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया है। डीसी कुल्लू की ओर से इंटरनेशनल रोरिक ट्रस्ट के प्रबंधक को जनसूचना अधिकारी व ट्रस्ट के प्रशासक एवं एडीएम कुल्लू को एपिलेट अथॉरिटी नियुक्त करने का प्रस्ताव प्रधान सचिव को भेजा ।
नगगर में दो दशक रहे रोरिक
प्रोफेसर निकोलस रोरिख (जन्म 9 अक्टूबर 1874 - मृत्यु 13 दिसंबर 1947) रूसी दार्शिनक, लेखक, एवं पेंटर थे। वे रोरिख समझौते के जनक हैं। यह समझौता सभ्यताओं की रक्षा को कानूनी जामा पहनाता है और मुख्य रूप से बताता है कि संस्कृति की सुरक्षा सैन्य आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण है। रौरिख ने अपने जीवन के अंतिम लगभग 21 साल भारत में हिमाचल प्रदेश के नग्गर के कस्बे, नग्गर में बिताए। यहीं रोरिक मेमोरियल ट्रस्ट बनाया गया है और इनके घर को संग्रहालय में बदल दिया गया है। इसी तरह का एक अन्य संग्रहालय दार्जिलिंग और बैंगलोर में भी है। रोरिख का घर बहुत सुन्दर जगह पर है। यहां से ब्यास नदी का बहुत सुन्दर दूश्य दिखायी पड़ता है। वहां जाकर लगा क्यों न यहीं बैठ कर कुछ रचनात्मक कार्य किया जाये। रोरिख के दो पुत्र थे। उनके छोटे पुत्र की शादी एक प्रसिद्घ फिल्मकारा देवका रानी से हुई थी।

नाथ मंदिर मे भूतों को डेरा

अंतराष्ट्रीय शिवरात्रि उत्सव के बहाने बाबा भूत नाथ की व्यथा
भूतनाथ मंदिर मे भूतों को डेरा

ऐतिहासिक मंदिर की सराय में लंबे अर्से से लगे हुए हैं पत्थरों के ढेर
मंदिर के पास स्थित मंदिर की सराये की बांयी ओर भी रखे गए पत्थर


जिस बाबा भूतनाथ के मंदिर की स्थापना के बाद मंडी शहर बसा और जिसके नाम पर मंडी नगर अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि उत्सव मनाने की तैयारियों में जुटा हुआ है, उस ऐतिहासिक भूतताथ मंदिर में ऐसा प्रतीत हो रहा है, माानो यहां सच में भूतों का ही बसेरा हो। वैसे तो मंदिरों की सराय तीर्थ यात्रियों के ठहरने के लिए होती हैंं, लेकिन भूतनाथ मंदिर की सराये सालों से पत्थर रखने के काम आ रही है। पत्थर तो सराये के बाहर और मंदिर के पिछवाड़े भी रखे देखे जा सकते हैं। ये पत्थर न केवल मंदिर की खूबसूरती को दागदार कर रहे है, बल्कि हमारी आस्था के बीच हकीकत की पोल भी खोलते हैं। मेले के आयोजन पर हर बार पचास लाख से ज्यादा खर्च होते हैं, लेकिन जिसके नाम पर खर्च होते हैं, वहां की सुध कौन ले और क्यों ले? पिछली शिवरात्रि पर भी देवताओं के साथ आने वाले शिव के भक्तों को ठहराने के लिए प्रशासन के प्रबंध छोटे पड़ गए लेकिन भूतनाथ की सराये से पत्थरों को हटाने की जहमत नहीं उठाई गई। इस बार भी इस बारे में अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि मेला कमेटी के अध्यक्ष एवं उपायुक्त मंडी के पास मंदिर और सराये को रहने योग्य बनाने के लिए फरियाद की गई है। डीसी डॉ. अमनदीप गर्ग कहते हैं, मामला ध्यान में है और खुद भूतनाथ मंदिर की खामियों का जायजा लेकर मंदिर उसमें तत्काल सुधार किया जाएगा।
बाबा की बस्ती में पसरा सन्नाटा
भूतनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना के बाद ही मंडी का शिवरात्रि महोत्सव शुरू होगा, और सैंकड़ों के हिसाब से देवता, हजारों के हिसाब से देवलू और बजंतरी तथा लाखों के हिसाब से शिवभक्त इस मंदिर में आकर भोले बाबा से आशीर्वाद लेंगे। पर भूुतनाथ मंदिर की सराय की हालत यह है कि शायद ही शिवभक्तों की मेहमान नवाजी कर सके। सार्वजनिक शोचालय की हालत खस्ता है। बिजली की व्यवस्था का भी कोई प्रबंध नहीं है। आलम यह है कि मंदिर के कई भागों में अंधेरा पसरा रहता है। ऐसे में जबकि अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि उत्सव के दौरान इस शहर का कोना- कोना रोशन होगा, शोभायात्राएं निकलेंगी। भूतनाथ के मंदिर में क्या अंधेरा ही पसरा रहेगा? या मंदिर मेला कमेटी की आंखें खुलेगी।
चोरों की चांदी
मंदिर में पूजा अर्चना करने वालों के सामान की चोरी यहां आम बात हो गई है। चोरी की कई शिकायतें पुलिस तक पहुंच चुकी है। जिला प्रशासन मंदिर में क्लोज सर्किट कैमरे लगाने की बात करता है, लेकिन हकीकत यह है कि मंदिर में लाईट और अरमजेंसी लाइ्रट्स तक की व्यवस्था नहीं है। जिस भूतनाथ का जश्र होने वाला है, वहां की ऐसी हालत है तो फिर यह जश्र किसके लिए? ऐसे सवाल भी मेला कमेटी से जवाब मांगते हैं।

भूतनाथ मंदिर की कमियों और खामियों के बारे में खुद मंदिर परिसर में जाकर जायजा लूंगा और तमाम खामियों को दूर किया जाएगा। मंदिर में रोशनी की पूरी व्यवस्था की जाएगी।
डॉ. अमनदीप गर्ग, अध्यक्ष अंतरराष्ट्रीय शिवरात्रि मेला कमेटी एवं डीसी मंडी।

भोले के लिए