अपनी पहचान तलाशती हिमाचली टोपी
दुनिया भर में किसी जगह के नाम पर प्रचलित टोपियों का ज़िक्र होता है तो उसमें कश्मीरी टोपी और अफगानी टोपी के बाद हिमाचल प्रदेश का नाम आता है। हिमाचली टोपी के नाम से जानी जाने वाली ये टोपी हिमाचल प्रदेश की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हिमाचली टोपी मान-सम्मान के आदान-प्रदान का एक ज़रिया है। हालांकि आधुनिकता की चपेट में आए हिमाचल के युवा इस टोपी को उतारकर स्टाइलिश और डिज़ाइनर कैप्स का रुख करने लगे हैं लेकिन आज भी सूबे की 15 से 20 प्रतिशत जनता के शीश पर यही टोपी सजी रहती है। प्रदेश की पहाड़ी और मूल आबादी आज भी इन टोपियों को पहनती है। ये पारंपरिक टोपी हिमाचल प्रदेश में राजनैतिक पहचान भी रखती हैं। हिमाचल में सरकार बदलते ही शिमला के रिज मैदान में लोगों से सिरों पर दिखने वाली टोपियों के रंग बदल जाया करते हैं। कांग्रेस की सरकार के दौरान रिज में हरे रंग वाली टोपियां पहने लोग दिखते थे जबकि अब लाल रंग की टोपी पहने लोगों की तादात ज्यादा दिखती है। दरअसल हरे रंग वाली ये बुशहरी टोपी राजा वीरभद्र सिंह और उनके समर्थकों की पहचान है।
1984 में जब वीरभद्र सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तभी से ये टोपी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेसियों की पहचान बनी है। कुछ दिन पहले जब वीरभद्र सिंह मंत्री पद की शपथ ले रहे तब भी उन्होंने यही हरे रंग की टोपी पहनी हुई थी। इसके इतर बीजेपी के नेताओं ने बुशहरी टोपी की काट में कुल्लुवी टोपी को अपनाया है। लाल रंग वाली ये टोपी उस वक्त चलन में आई जब प्रोफेसर प्रेमकुमार धूमल 1998 में पहली बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुए थे।
इससे पहले शांता कुमार की कुल्लुवी टोपी, जिसमें धारियां सी बनी होती हैं, बीजेपी की पहचान थी।
सन् 1977 से लेकर 1990 तक जब तक का शांता कुमार राजनीति के केन्द्र में रहे, ये टोपी खासी प्रसिद्ध रही। लेकिन अब खुद शांता कुमार के सिर पर ये टोपी कम ही नजऱ आती है। टोपियों की राजनीति को महत्ता को समझते हुए कांग्रेस को दामन छोड़ बीएसपी का पल्लू थामने वाले मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने बीजेपी और कांग्रेस की इन टोपियों को टक्कर देने के लिए तिरंगनी टोपी लॉन्च की थी। लेकिन न तो ये टोपी हिमाचली टोपी को टक्कर दे पाई और न ही बीएसपी कुछ रंग दिखा पाई। मनकोटिया के राजनीति से संन्यास लेने के साथ ही ये टोपी भी ग़ायब हो गई है।
हिमाचली टोपी प्रदेश की मान-मर्यादा से जुड़ी हुई है। बाहर से आने वाले हर मेहमान का सम्मान हिमाचली टोपी पहनाकर ही किया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मायावती, सोनिया गांधी, अफगान राष्ट्रपति हामिद करजेई समते कई देशी विदेशी हस्तियां हिमाचली टोपी पहन चुके हैं। लेकिन इसमें भी राजनीति होती है। जिस पार्टी की सरकार होती है, वह उसी रंग की टोपी अपने मेहमानों को पहनाती है। विदेशों से आने वाले पर्यटक तक इस टोपी के मुरीद हैं। हिमाचल से लौटते वक्त वो अपने साथ एक टोपी ले जाना नहीं भूलते। लेकिन हिमाचली टोपी चलन से हटकर अब एक प्रतीक बन कर रह गई है। सिर्फ इलेक्शन के समय इसकी डिमांड बढ़ती है वरना कोई नहीं पूछता। घरों में अलमारियों में नेप्थेलीन की गोली डालकर रख दी गई इस टोपी को विशेष मौकों पर ही बाहर निकाला जाता है। अलग-अलग पार्टियों और नेताओं की पहचान बनी हिमाचल टोपी आज खुद अपनी पहचान खोती जा रही है।
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