बुधवार, 2 मार्च 2011

पहाड़ पर देव आस्था के प्रति बहुत गहरी हैं जड़ें

हिमाचल के यूं ही नहीं कहते देवभूमि
प्रदेश के अधिकतर मेलों के साथ है देव आस्था का सीधा संबंध

यहां हर जनपद का अपना दवेता है। देवताओं के नाम पर हर जनपद में हर साल साल मेलों का आयोजन होता है और देवताओं के मेले में भाग लेना यहां लोग अपना भगय समझते हें। कभी कुल्लू का ढालपुर मैदान देवताओं के स्वागत में बांहे परासता है तो कभी मंडी का पड्डल मैदान देवताओं के सदियों पुराने अनूठे देव मिलन का गवाह बनता है। किन्नर कैलाश, मणीमहेश कैलाश और श्रीखंड महादेव की दुर्गम यात्राओं के कष्टों को यहां के लाखों लोग हर साल हंसते हंसते सह कर अपने इप्ट के दरबार मे ंहाजिरी लगाते हैं। प्रदेश के अधिकतर बड़े उत्सवों का सीधा संबंध यहां के ग्राम देवताओं से जुड़ा है और विभिन्न मेलों में होने वाला देवताओं का संगम हमारे सांस्कृतिक और धार्मिक मूल्यों का एहसास भी करवाता है। हिमाचल प्रदेश को यूं ही ही देव भूमि के नाम से नहीं पुकारा जाता है। यहां देवता के प्रति आस्था की जड़ें बेहद गहरे तक गई हैं।
शोध का सच
प्रदेश में ऐसा कोई गांव नहीं है जहां किसी न किसी देवता की पूजा न होती हो। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग द्वारा किए गए शोध में सामने आई है। प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विद्या शारदा की देखरेख में यशपाल शर्मा व ओम प्रकाश ने सोलन व ऊपरी शिमला के विभिन्न क्षेत्रों में पूजे जाने वाले देवताओं पर शोध किया है। शोध कहता है कि यहां सदियों से देवताओं की पूजा होती आ रही है। देवता महाभारत कालीन हैं और पूजा की भी विधि भी उसी समय की है। शोध कहता है कि कभी यहां देवतंत्र विकसित रहा है। यही कारण है कि यहां अधिकतर विवादों का निपटारा देवता की अदालत में ही होता है और देवता के आदेश सभी को मान्य होते हैं। प्रोफेसर शारदा का मानते हैं कि प्रदेश में आदि काल से ही देवतंत्र का प्रभाव रहा है।
आजादी का जश्न और देवता
अपने ग्राम्य देवताओं के प्रति यहां के लोगों में विशेष आकर्षण रहा है। केवल लोग ही देवता के आयोजन में शामिल नहीं होते, बल्कि लोगों के जश्र में देवता भी शामिल होते हैं। देश की आजादी के बाद जब दिल्ली में पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया तो गणतंत्र दिवस के कार्यक्रम में मंडी के देवता भी शामिल हुए। सिराज के देवता पुंडरिक ऋर्षि पंजाई अपने पारम्परिक वाद्ययंत्रों, देवलुओं और बजंतरियों के साथ झूमते गाते गणतंत्र के आयोजन में शामिल हुए। देवता का अपने मूल स्थान पर पहुंचने पर बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया।

नोट : देश के पहले गणतंत्र दिवस में भाग लेने वाले सिराज के देव पांडुरिक ऋषि की फोटो पांच मिनट में भेजी जा रही है।
—भावुक

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