रोरिक ट्रस्ट में एक करोड़ का गोलमाल
रोरिक ट्रस्ट के अध्यक्ष है मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल
कई सालों से नहीं हो पाई ट्रस्टियों की एक भी बैठक
अकादमी के लिए नहीं बन पाया अभी तक अपना भवन
बोर्ड ऑफ ट्रस्ट को नही मिली बैठक करने की फुर्सत
भारत- — रूस की सांस्कृतिक मैत्री का प्रतीक नग्गर स्थित रोरिक ट्रस्ट इन दिनों करोड़ों की गड़बडिय़ों को लेकर सुर्खियों में है। अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के प्रधानमंत्री रहते ट्रस्ट को जो करोड़ों की रकम दी थी, ट्रस्ट के पास उस रकम का कोई हिसाब— किताब ही नहीं है। संस्कृति के संरक्षण के नाम पर ट्रस्ट के पैसे की खुर्द बुर्द का पटाक्षेप होते ही सरकार ने इसकी जांच शुरू की है। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के जांच के आदेश के बाद और गड़बडिय़ां सामने आई हैं। ट्रस्ट के पास पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में दिए गए एक करोड़ रुपए कहां गए, इसके बारे में ट्रस्टियों के पास कोई हिसाब नहीं है। रूस के दार्शनिक निकोलस रोरिक की याद में 1923 में रोरिख कला संग्रहालय का निर्माण किया गया था। रोरिक ट्रस्ट के आजीवन सदस्य शक्ति सिंह ने आरटीआई के तहत ली गई जानकारी के आधार पर अनियमितताओं और गड़बडिय़ों को उजागर किया है। यहां स्थित कला अकादमी का संचालन भी एक अस्थायी भवन में हो रहा है। इसके लिए अब तक भवन नहीं बन पाया है। 2003 से लेकर बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठकें नहीं होने से आज इस ट्रस्ट में सारी गतिविधियां ठप्प हैं। रोरिक आर्ट गैलरी भी मात्र पेंटिंग की प्रदर्शनी तक ही सीमित रह गई है। कला अकादमी भवन के निर्माण को लेकर कहा जा रहा है कि जमीन उपलब्ध न होने के कारण इसका निर्माण नहीं हो पा रहा है। नौ साल से ट्रस्ट के संचालक कॉलेज के लिए जमीन उपलब्ध नहीं करवा पाए हैं। कुल्लू जिला के जिलाधीश एवं ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष बीएम नांटा का कहते हैं कि ट्रस्ट की गतिविधियों और इसके विस्तार के लिए सभी फैसले बोर्ड ऑफ ट्रस्ट की बैठक में लिए जाते हैं । उनका कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री ने आर्ट अकादमी के लिए जो एक करोड़ रुपए दिए थे, वह भवन के लिए जमीन उपलब्ध न होने के कारण खर्च नहीं किए जा सके हैं। अब 25 मार्च को बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक प्रस्तावित है। इसमें ही ट्रस्ट को लेकर कुछ महत्वपूर्ण फैसले लिए जाने की संभावनाएं है। शक्ति सिंह का आरोप है कि बोर्ड के ट्रस्टी की कुछ सालों से कोई बैठक नहीं हुई है। शक्ति सिंह के अनुसार वर्ष 2006 के बाद एक भी बैठक का आयोजन नहीं हुआ है । इस वर्ष में एक ही बैठक हुई है, जबकि वर्ष में बोर्ड ट्रस्ट की चार बैठकें होना अनिवार्य है। इसके अलावा रोरिक ट्रस्ट संचालकों के व्यवहार पर भी अंगुलियां उठाई गई हैं। रूस के महान दार्शनिक निकोलस रोरिक ने अपने जीवन के अंतिम 20 साल नग्गर में बिताए और उन्होंने इस दौरान तीस पुस्तकें लिखी और करीब सात हजार से अधिक पेंटिग बनाई जिसमें पूर्ण हिमालय और प्राकृतिक सौंदर्य को कैनवास पर चित्रित किया। ट्रस्ट के आजीवन सदस्य शक्ति सिंह का आरोप है कि बोर्ड के ट्रस्टी की कुछ सालों से बैठक नहीं हुई है। चालू वित्त वर्ष में एक ही बैठक हुई है, जबकि वर्ष में चार बैठकें होना अनिवार्य है। उधर, डीसी कुल्लू एवं ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष बीएम नांटा का कहना है कि पिछले वर्ष ट्रस्ट को लेकर एक बैठक हुई थी। बैठक 25 मार्च को बोर्ड ऑफ ट्रस्टी की बैठक प्रस्तावित है। उनका कहना है कि अगर ट्रस्ट में अनियमितताएं बरती गई हैं तो उसकी जांच होगी और दोषी के खिलाफ कार्रवाई भी हो सकती है।
छुपाई जा रही ट्रस्ट की संपत्ति
नग्गर स्थित रोरिक ट्रस्ट बेशक प्रदेश सरकार के नियंत्रण में हो, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से रूस की मदद से चलाए जा रहे इस ट्रस्ट को प्रदेश सरकार की ओर से कितनी मदद मिल रही है, इसकी जानकारी देने वाला सूचना अधिकार कानून लागू होने के पांच बाद तक कोई नहीं था। प्रदेश के मुख्यमंत्री इस ट्रस्ट के अध्यक्ष हैं। बावजूद इसके सूचना अधिकार कानून को लागू हुए पांच साल होने के बाद भी ट्रस्ट ने जनसूचना अधिकारी और एपिलेट अथॉरिटी तैनात नहीं किया । सूचना अधिकार कानून के तहत सरकारी मदद से संचालित होने वाले ट्रस्ट को भी अपना जनसूचना अधिकारी तैनात करना अनिवार्य बनाया गया है ,लेकिन इंटरनेशनल रोरिक ट्रस्ट प्रबंधन ने सरेआम केंद्र सरकार के इस कानून की धज्जियां उड़ाई । इस बात की पोल उस वक्त खुली जब ट्रस्ट के बारे में सूचना अधिकार कानून के तहत हिमाचल प्रदेश आरटीआई ब्यूरो के प्रदेश संयोजक लवण ठाकुर ने जानकारी मांगी । इस पर हरकत में आते ही डीसी कुल्लू बीएम नांटा ने प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग की प्रधान सचिव मनीषा नंदा को पिछले साल 24 नवंबर को पत्र लिख कर आरटीआई एक्ट की धारा 5 के तहत ट्रस्ट के जनसूचना अधिकारी व एपिलेट अथॉरिटी नियुक्त करने की अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया है। डीसी कुल्लू की ओर से इंटरनेशनल रोरिक ट्रस्ट के प्रबंधक को जनसूचना अधिकारी व ट्रस्ट के प्रशासक एवं एडीएम कुल्लू को एपिलेट अथॉरिटी नियुक्त करने का प्रस्ताव प्रधान सचिव को भेजा ।
नगगर में दो दशक रहे रोरिक
प्रोफेसर निकोलस रोरिख (जन्म 9 अक्टूबर 1874 - मृत्यु 13 दिसंबर 1947) रूसी दार्शिनक, लेखक, एवं पेंटर थे। वे रोरिख समझौते के जनक हैं। यह समझौता सभ्यताओं की रक्षा को कानूनी जामा पहनाता है और मुख्य रूप से बताता है कि संस्कृति की सुरक्षा सैन्य आवश्यकता से अधिक महत्वपूर्ण है। रौरिख ने अपने जीवन के अंतिम लगभग 21 साल भारत में हिमाचल प्रदेश के नग्गर के कस्बे, नग्गर में बिताए। यहीं रोरिक मेमोरियल ट्रस्ट बनाया गया है और इनके घर को संग्रहालय में बदल दिया गया है। इसी तरह का एक अन्य संग्रहालय दार्जिलिंग और बैंगलोर में भी है। रोरिख का घर बहुत सुन्दर जगह पर है। यहां से ब्यास नदी का बहुत सुन्दर दूश्य दिखायी पड़ता है। वहां जाकर लगा क्यों न यहीं बैठ कर कुछ रचनात्मक कार्य किया जाये। रोरिख के दो पुत्र थे। उनके छोटे पुत्र की शादी एक प्रसिद्घ फिल्मकारा देवका रानी से हुई थी।
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