रविवार, 23 मई 2010
आरटीआई गीत
आरटीआई गीत
कैंह कुनी बाबूएं फाईल है दबाई।
खुलणी कलाई पता लगणी सच्चाई।।
कुनी कुनी खादियो पापे दी कमाई।
खुलणी कलाई पता लगणी सच्चाई।।
कुण मस्टोल किन्हां फर्जी बणाया।
रेत किन्ही पाई किन्हां सीमेंट लगाया।।
सैंपल भराणे, किन्ही रेशो है लगाई।
खुलणी कलाई पता लगणी सच्चाई।।
बुधवार, 19 मई 2010
बच्चे बचाएंगे थियेटर का वजूद
रविवार, 16 मई 2010
कांगड़ा जिला के दस ब्लॉक में 205 शिकायतें हुई दर्ज
नरेगा की लूट, नगरोटा को छूट
नगरोटा विकास खंड में पहुची नरेगा को लेकर सबसे ज्यादा 66 शिकायतें
रैत ब्लाक में आईं 48 शिकायतें, बीडीओ लंबागांग के पास 24 ्रशिकायतें
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना(मनरेगा) के नाम पर जिला कांगड़ा में धडल्ले से सरकारी फंड का मिस यूज हो रहा है। केंद्र की इस योजना के तहत पंचायतों के विकास के लिए मिले धन की हेराफेरी के अलावा कम भुगतान, देरी से भुगतान जैसे मामले भी खुल कर सामने आ रहे हैं। कांगड़ा जिला में वर्ष 2008- 09 में मनरेगा को लेकर जिला के विभिन्न 10 ब्लॉकों में 205 शिकयतें दर्ज हुई हैं। आंकड़े गवाही भरते हँैं कि मनरेगा की लूट में नगरोटा बगवां को जैसे छूट मिली हो। इस ब्लॉक में सबसे ज्यादा 66 शिकायतें मनरेगा को लेकर दर्ज हुई । यहां सबसे ज्यादा 27 शिकायतें मनरेगा के तहत ग्रामीण विकास के लिए आए सरकारी धन की हेराफेरी से संबंधित है जबकि 39 शिकायतें मिसयूज ऑफ अथवा दूसरी प्रकृति की हैं। लंबागांव ब्लॉक में मनरेगा से सबंधित 29 शिकायतें बीडीओ ऑफिॅस तक पहुंची हैं। लंबागांव के बाद रैत ब्लॉक 48 श्किायतों के साथ दूसरे तीसरे नंबर पर है। यह खुलासा आरटीआई ब्यूरो के सदस्य जगदीप ठाकुर की ओर से डीसी कांगड़ा से प्राप्त जानकारी में हुआ है। आरटीआई ब्यूरों के संयोजक लवण ठाकुर का कहना है कि मनरेगा की शिकायतों से सबंधित आधी अधूरी सूचना उपलब्ध करवाई गई है, इस बोर में डीसी कांगड़ा के पास सूचना अधिकार कानून के तहत फस्र्ट अपील दायर की गई है।
15 दिन का नाम, 15 माह बाद भी नाकाम
मनरेगा कार्यक्रम में आने वाली शिकायतों को 15 दिन में समाधान करने का प्रावधान है, लेकिन हैरानी इस बात की है कि 15 माह बीत जाने के बावजूद मनरेगा की कई श्किायतों का निपटारन करने में जिला कांंगड़ा प्रशासन नाकाम साबित हुआ है। अभी तक भी इस बारे आई 17 शिकायतों का कोई निपटारा नहीं हो पाया है और विभिन्न चरणों में लंबित पड़ी हैं। आरटीआई ब्यूरो ने इस बारे में भी डीसी कांगड़ा से सूचना मांगी है कि आखिर निर्धारित समय अवधि में किन कारणों से ऐसी श्किायतों का निपटारा नहीं हो पाया है।
किस ब्लॉक में कितनी शिकायतें
ब्लॉक शिकायतों की संख्या
नगरोटा बगवां 66
रैत 48
लंबागांव २९
कांगड़ा 24
परागपुर १०
इंदौरा १०
देहरा ०७
धर्मशाला ०६
बैजनाथ ०२
नूरपुर 03
कुल शिकयतें 205
शनिवार, 15 मई 2010
सोमवार, 10 मई 2010
छोटे भाई की कमाई पर काबिज बड़ा भाई
छोटे भाई की कमाई पर काबिज बड़ा भाई
पुनर्गठन एक्ट के अनुूसार नहीं मिला हिमाचल प्रदेश को अपना हिस्सा
कोट्र्र के बाहर मिल कर मसला हल करने की कवायद भी गई बेकार
बतीस साल में लोकसभा चुनाव में कभी नहीं बन पाया चुनावी मुद्दा
बड़े भाई पंजाब ने छोटे भाई हिमाचल प्रदेश के हकों पर तगड़ा डाका डाला है। 1966 में हुए पुनर्गठन के तहत पड़ोसी पंजाब से मिलने वाला हिमाचल प्रदेश का हिस्सा 32 साल के संघर्ष के बावजूद नहीं मिल पाया है। 1966 के पनर्गठन एक्ट के जिस शेयर को देने की हामी पंजाब ने भरी थी, लेकिन हेकड़ी देखिये वार्ता की टेबल पर मसले का हल नहीं होने के बाद पंजाब को अब कोर्ट में अपने हकों की पैरवी करनी पड़ रही है। दोनों प्रंदेशों मेें कई बार एक ही पार्टी की सरकारे आई और आकर चली गईं, लेकिन कांग्रेस — भाजपा दोनों की पार्टियां इनसाफ करने में नाकाम रही। दोनों प्रदेशों के नेताओं के अलावा मुख्य सचिव तक ने इन फाईलों पर हरकत की लेकिन नतीजा ढाक के ही सौ पात रहा। मिल बैठ कर भी मसले हल करने की लंबी कवायद चली।
मुख्यमंत्री के रुप में अपनी पहली पारी खेलते हुए पिछली बार प्रेम कुमार धूमल ने पंजाब के तत्कालिन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के साथ लंबी वार्ताओं का सिलसिला शुरु किया लेकिन मामला फिर बीच में ही अटका रह गया। वर्तैमान में भी जहां प्रदेश में भाजपा की सरकार है आर पंजाब में भाजपा समर्थित आकाली सरकार राज कर रही है लेकिन यह मसला इस बार भी गौण ही रहा है। यह मुद्दा प्रदेश की विधानसभा में कइ्र बार गूंजा, कई बार इस मुद्दे पर विपक्ष ने सत्तापक्ष का साथ देते हुए प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजेे लेकिन दिल्ली में भी यह मामला नक्कारखाने की तूती ही साबित हुआ। देश के वर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आफिस तक भी इस मसले की फाईल गई लेकिन पीएमओ आफिस के हस्तक्षेप के बावजूद मसला जस का तस ही रहा। इस मामले पर जहां हिमाचल सरकारों की भूमिका दब्बू छुटके की रही तो पंजाब ने दबंग बडक़े का ही रोल अदा किया। शर्मनाक यह है कि प्रदेश की प्रतिष्ठा से जुड़े इस मुद़दे को लोकसभा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों कांग्रेस—भाजपा ने हमेशा नजरअदाज ही किया।हिमालय नीति अभियान समिति के समन्वयक एवं समाजसेवी कुलभूषण उपमन्यु और इंडियन पिपलज थियेटर के प्रदेश संयोजक लवण ठाकुर का कहना है कि अपने हकों की लड़ाई म केंद्र के पास अपना पक्ष रखने में कांग्रेस व भाजलपा दोनों सरकारें नाकाम ही साबित हुई हैं। पडोसी राज्य की हेकड़ी के चलते प्रदेश को हर साल करोड़ों की रगड़ लग रही है। दोनों प्रदेशों में एसक ही पार्टी की सरकार होने के बावजूद इस मुद्दे का गौण रहना यह साबित करता है कि क्षेत्रीय हकों की पैरवी में बड़े प्रदेशों की खूब धौंस है।
इस मसले पर पंजाब के अडिय़ल रवैये को देखते हुए 1998 में प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोअ्र का दरवाजा खटखटाया था। मामला पिछले दस साल से में है। इस मसले को कोर्ट में ले जाने का श्रेय लेते हुए पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कहते हैं कि कांग्रेस इस माले को लेकर कोर्ट में गई। सुप्रीम कोट्र में मामला आखिरी चरण में है और इस केस में हिमाचल प्रदेश की जीत तय है। प्रदेश कांग्रेस की ओर से प्रदेश को यह सबसे बड़ा तोहफा होगा। उधर वर्तमान मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का कहना है कि प्रदेश में अधिकतर कांग्रेस का ही राज रहा, लेकिन इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस ने कोट्र में जाने के अलावा मिल बेठ कर मसला हल करने तक की कोशिश नहीं की। कोर्ट के बाहर मसले सुलझाने की उनकी पहल पर कुछ इंटर स्टेट मुद्दे हल हुए है, अब भी प्रयास जारी हैं।
लड़ाई की जड़:
1966 पनर्गठन एक्ट के अनुसार भाखड़ा व्यास प्रबंधन बोर्ड बीबीएनबी से प्रेदेश को 7.19 प्रतिशत का स्टेट मिलना है। इसके अलावा भाखड़ा— नंगल, पौग डैम व व्यास पावर प्राजेक्टों से प्रदेश को 12 प्रतिशत बिजली मुफ्त मिलनी है। इसी एक्ट के तहत रियासतकाल में मंडी के जोगेंद्रनगर में बने शानन पावर प्राजेक्ट को भी हिमाचल प्रदेश को सौंपा जाना है। पुनर्गठन एक्ट के तहत ही हिमाचल प्रदेश को चंडीगढ़ पर भी 7.19 हिस्सा बनता है, जिसकी भरपाई पंजाब व हरियाणा ने करनी है। सियासी मचंों व प्रशासनिक प्रपंचों की लंबी कवायद के बावजूद लड़ाई जारी है।
रविवार, 9 मई 2010
अपनों के प्रहार संग गैरों की मार
अपनों के प्रहार संग गैरों की मार
दिल्ली में मजबूत होते ही हिमाचल में वीरभद्र सिंह की हिमाचल में मजबूत
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व विपक्ष की नेता ने अपने ही नेता के खिलाफ खोला मोर्चा
प्रदेश की भाजपा सरकार की आखों की किरकिरी बने केंद्रीय इस्पात मंत्री
वीरभद्र सिंह फिर आए पुराने विरोधी मेजर मनकोटिया के निशाने पर
दिल्ली में मजबूत होते ही केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह के खिलाफ हिमाचल में उनके विरोधी उनके खिलाफ मजबूत घेराबंदी करने में जुट गए हैं। उनके खिलाफ जहां अपनों के प्रहार जारी है, वहीं गैरों के शब्दबाण भी उन्हें झेलने पड़ रहे हैं। केंद्रीय इस्पात मंत्री के ताजा हिमाचल दौरे के दौरान जहां उनकी अपनी पार्टी के नेताओं ने उनके खिलाफ हमले दागे हैं, वहीं प्रदेश में सत्तासीन भाजपा सरकार की आंखों की भी किरकिरी बन गए हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ठाकुर कौल सिंह और विधानसभा में विपक्ष की नेता विद्या स्टोक्स ने एक बार फिर से मुंह खोल दिया है। अपनी ही पार्टी के दो दिज्गजों के निशाने पर आए वीरभद्र सिंह के खिलाफ प्रदेश में सत्तासीन भाजपा सरकार के दिज्गज नेताओं ने भी जम कर हमले दागे हैं। इसी बीच पूर्व मंत्री एवं कांगड़ा के दिज्गज राजपूत नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने यह कह कर सनसनी फैला दी है कि वीरभद्र सिंह ने प्रदेश में नई पार्टी का गठन करने के लिए बाया बाया संपर्क साधा था। हालांकि केंद्रीय मंत्री एवं उनके समर्थकों की ओर से विरोधियों के हर हमले का माकूल जवाब दिया गया है। कांग्रेंस के अंदर वीरभद्र सिंी समर्थक और विरोधी इस बात को लेकर आमने सामने होते आए हैं कि केंद्र की राजनीति में सक्रीय होने के बावजूद वीरभद्र सिंह प्रदेश की राजनीति का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। वीरभद्र सिंह अपनी ही पार्टी के नेताओं के खिलाफ जुबान खोलते आए हैं। प्रदेश की भाजपा सरकार के खिलाफ भी जम कर हमले दागने में वीरभद्र सिंह हमेशा आगे रहे हैं। यही कारण है कि भाजपा की ओर से भी वीरभद्र सिंह के खिलाफ जबरदस्त घेराबंदी की जाती है। दो राय नहीं है कि केंद्र में मंत्री होने के बावजूद वीरभद्र सिंह आज भी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के सबसे दमदार नेता हैं। प्रदेश से भाजपा सरकार को उखाड़ फैंकने की बात वह बार बार कहते आए हैं। दिल्ली से हिमाचल प्रदेश की राजनीति में दखल रखने की वीरभद्र सिंह कोशिशें ही उनके कांग्रेस व भाजपा दोनों में विरोधियों को उनके खिलाफ एकजुट होने का कारण बनती है।
तकरार नहीं एकाधिकार
केंद्र की सियासत में प्रदेश के दो दिगज वीरभद्र सिंह व आनंद शर्मा मंत्री थे। आनंद शर्मा की हिमाचल प्रदेश से राज्यसभा सदस्यता खत्म होने पर केंद्र की राजनीति में वीरभद्र सिंह इकलौते प्रतिनिधि रह गए हैं। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से बनाई गई कुछ केंद्रीय मंत्रियों की कोर कमेटी में उनको शामिल किया गया है, जिससे केंद्र की राजनीति में वह मजबूत हुए हैं। वीरभद्र सिंह ने पिछले दिनों दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर गए हिमाचल प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकरियों को दिए गए डिनर से भी वह एकाएक चर्चा में आए हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि वीरभद्र सिंह दिल्ली के बजाए प्रदेश की राजनीति को प्राथमिकता देते आए हैं।
कोटस
प्रदेश को केंद्र से मिलने वाली परियोजनाओं में केंद्रीय मंत्री अडंगा लगा रहे हैं। उनके इस रवैये के चलते प्रदेश की कई महात्वाकांक्षी परियोजनाओं के काम लटक रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह को लेकर मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का बयान ।
कोटस
हम बतौर विपक्षी दल विधानसभा में बंदूकें नहीं तान सकते। वीरभद्र सिंह जैसे पार्टी के कद्दावर नेता को इस तरह की बयानबाजी नहीं करनी चाहिए ।
ठाकुर कोल सिंह, अध्यक्ष प्रदेश कांग्रेस, वीरभद्र सिंह के बयान के बाद पत्रकार वार्ता में बोले।
कोटस
वीरभद्र सिंह कांग्रेस के एक वर्रिष्ठ नेता है। उनको अपनी ही पार्टी के नेताओं के ख्रिलाफ ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। कांग्रेस प्रदेश में विपक्ष की भूमिका बेहतरीन ढंग से निभा रही है।
विद्या स्टोक्स, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, वीरभद्र सिंह के बयान के बाद बोली।
कोटस
अपनी ही पाटी्र के नेताओं से घिरे वीरभद्र सिंह ने क्षेत्रीय दल के गठन के लिए किसी के माध्यम से मुझे शामिल करने का प्रस्ताव भेजा था। वह विधानसभा चुनाव में कईयों को टिकट दिलाने के नाम पर अपने पीछे चला रहे हैं।
मेजर विजय सिंह मनकोटिया, पूर्व मंत्री पत्रकार वार्ता में बोले।
कोटस
मुख्यामंत्री प्रेम कुमार धूमल केंद्र की परियोजनाओं को अपना बता कर बाहबाही लूटते आ रहे हैं। मनकेाटिया जैसे लोग धूमल के हाथों की कठपुतली बन कर उनके हाथों में खेल रहे हैं।
वीरभद्र सिंह, केंद्रीय इस्पात मंत्री ।
अग्गे दोंड़ पिछें चौड़
अग्गे दोंड़ पिछें चौड़
कैहदी काहली, कैदी छोड़।
अग्गें दौड, पिछें चौंड।।
भुला रस्तें पखला माहणु ।
खड़ी चढ़ाई, करड़े मोड़।।
धणे लेई के आए गद्दी ।
माह, राजमाह कने खोड़।।
पक्के घड़े, कच्चे रिश्ते।
नी कदी भी लगदे जोड़।।
नी धरती ते कोई सुजदा।
गास्से छूणे दी है होड़ ।।
शुक्रवार, 7 मई 2010
कुल्हां
मंगदियां आईयां बलियां कुल्हां।।
देई सनंदरां मंगदियां जातर।
खसम खाणियां जलियां कुल्हां।।
खुने संदर, कोहली बुडढा।
ती खणोईयां गलियां कुल्हां।।
बतरां खातर बजियां ढोल़ां।
खूब नुहाइयां थलिय़ां कुल्हां।।
सुकियां खड्डां, मुकियां गल्ला
तां मिट्टिया रलिय़ां कुल्हां।।
चैतर महीना लेया सुनाणा।
ढोलरुआं बिच पलिय़ां कुल्हां।।
अस्पताल बीमार है
गैस का मर्ज है
बढ़ रही पीड़ है
ओपीडी में भीड़ है
ठीक मौका ताड़ कर
पर्ची का जुगाड़ कर
डॉक्टर के सामने पहुंचा मरीज है
बेवक्त उठता है, दर्द बदतमीज है
डॉक्टर की मजबूरी है
टेस्ट पहले जरूरी है
पर टका सा जवाब है
कि एक्सरे मशीन खराब है
स्टाफ की कमी है
नर्स मोबाइल पर रमी है
अब मरीज हैरान है
और तीमारदार परेशान है
टेक्रीशियन बेकार है
डॉक्टर लाचार है
मरीज की छोडि़ए
अस्पताल बीमार है।
पुल और बाँध
मैंने जब कभी
कहीं भी
तेरी तारीफों के
पुल बांधे हैं
मेरे कई
अपनों के
सब्र के बांध
टूटे हैं ।
हर घर के आगे आँगन होता था
हर घर के आगे आँगन होता था
हर गाँव में पनघट होता था ।
पनघट पे पीपल होता था ।।
सुना है कि हर घर के आगे ।
खुला सा आँगन होता था ।।
वो झूम के सावन आता था।
मदमस्त सा योवन होता था। ।
नाजुक थे फूलों से रिश्ते ।
हर रिश्ता पावन होता था ।।
बुधवार, 5 मई 2010
मुंशी बोलें, ठाणे अपणे।।
नी कदी अजमाणे अपणे।
गलां ते भी जाणे अपणे।।
अपूं जो ही खाणे अपणे।
जादा जे पतयाणे अपणे।।
है मेरी तेरी सांझी पूंजी।
गजलां तेरियां गाणे अपणे।।
खैरी अपणे, बैरी अपणे।
घरे घरे दे बाणे अपणे।।
हाकम बोलें, सर्कल अपणा।
मुंशी बोलें, ठाणे अपणे।।
गूंगे अपणे टोणे अपणे।
कुसने दुखड़े लाणे अपणे।।
कैंह बजोगण होई रावी
(चंबा प्रवास के दौरान 2007 में लिखित गजल)
मंगलवार, 4 मई 2010
शुरू हुआ टकराव, दिख गया बिखराव
चच्योट में सामने आ गई खोट
बुधवार, 28 अप्रैल 2010
मनरेगा बचाएगी बाबडिय़ों का वजूद
उपेक्षित और सूख चुकी प्रदेश की हजारों बावडिय़ों के वजूद को अब महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (मनरेगा )बचाएगा। बावडियों को बचाने और उनके संरक्षण मनरेगा के तहत जीर्णोद्वार किया जाएगा। हमीरपुर जिला में पाकृतिक जल स्त्रोतों को मनरेगा के तहत बचाने की इस महात्वाकांक्षी योजना के सफल होने के बाद अब ग्रामीण विकास विभाग बावडिय़ों के संरक्षण को मनरेगा में शामिल करने जा रहा है। मनरेगा के तहत ऐसी बावडियों का जीर्णोद्वार करने के बािद स्थानीय पंचायतों को इनके संरक्षण की जिम्मेवारी सौंपी जाएगी। प्रदेश सरकार की ओर से पेयजल की किल्लत से पार पाने के लिए यह अहम कदम उठाया जा रहा है। ग्रामीण विकास विभाग की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के हजारों जल स्त्रोत या तो उपेक्षा के शिकार हैं अथवा उनका पानी सूख चुका है। ऐसे जल स्त्रोतों के पानी के प्रयोग न होने के कारण सारा दवाब सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग की ओर से स्थापित की गई पेयजल योजनाओं पर पड़ रहा है और गर्मियों में प्रदेश के अधिकतर क्षेत्रों में पेयजल की किल्लत पैदा हो रही है। पेयजल की समस्या से पार पाने के लिए बेशक मनरेगा के तहत काम किया जा रहा है लेकिन जल स्त्रोतों के संरक्षण के लिए विशेष योजना पहली बार बनाई गई है। पेयजल किल्लत का समाना कर रही प्रदेश की आधे से ज्यादा पंचायतों में सरकार के इस कदम को बड़ी उम्मीद के साथ देखा जा रहा है।
सूखेएक रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश की हर पंचायत में औसत 6 जल स्त्रोत या तो उपेक्षा का श्किार होकर सूख चुके हैं अथवा उन जल स्त्रोतों के पानी का पीने के लिए प्रयोग नहीं हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो दशक में प्राकृतिक पेयजल स्त्रोतों की बड़ी बुरी बेकद्री हुई है। घरो में नलके लगने के बाद पेयजल की सामुदायिक योजनाएं जिनमें बावडियां, चश्मे और कुंए शामिल थे, बेकद्री का श्किार होकर रह गए हैं। उपेक्षा का शिकार हुए इन पेयजल स्त्रोतों में कई ऐतिहासिक महत्व की बावडियां और कुएं भी हैं।
एडीएम कुल्लू को हजार रूपए जुर्माना
सूचना मांगने के बदले ज्यादा पैसे वसूलने पर मंडी उपभोगता फोरम के आदेश
शिकायतकर्ता को मिलेगा पांच सौ रूपए हर्जाना, वकील को मिलेंगे पांच सौ रूपए
सूचना अधिकार कानून के तहत आवेदक को सूचना देने में निर्धारित दरों से ज्यादा पैसे वसूलने पर मंडी उपभोगता फोरम ने एडीएम एवं जन सूचना अधिकारी कुल्लू आर के पुर्थी को एक हजार रूपए जुर्माने की सजा सुनाई है। उपभोगता फोरम मंडी के अध्यक्ष सुशील कुकरेजा ने अपने फैसले में कहा है कि एडीएम कुल्लू एक माह के अंदर आवेदक को बतौर हर्जाना पांच सौ रूपए अदा करे, वहीं पांच सौ रूपए बतौर केस खर्च अदा करे। आवेदक लवण ठाकुर की ओर से इस मामले की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता रवि राणा ने की। जन सूचना अधिकारी को उपभोगता फोरम की ओर से सजा देने का अपनी तरह का यह पहला मामला है।
२६ पृष्ठों के मांग लिए २६० रूपए
आरटीआई ब्यूरो के संयोजक लवण ठाकुर ने एडीएम कुल्लू एव जनसूचना अधिकारी कुल्लू से नवबंर २००८ में सूचना अधिकार कानून के तहत सूचना मांगी थी। जन सूचना अधिकारी की ओर से आवेदक को पत्र लिख कर सूचित किया गया कि मांगी गई सूचना २६ पृष्ठों की है, जिसके लिए आवेदक को २६० रूपए जमा करवाने पड़ेगे। जनसूचना अधिकारी की ओर से इसके अतिरिक्त ३५ रूपए डाकखर्च के तौर पर मांगे। आवेदक ने २९५ रूपए जनसूचना अधिकारी के पास जमा करवा कर सूचना हासिल कर ली। ९९ हजार हर्जाने का किया दावा
निर्धारित दरों से ज्यादा पैसे वसूलने पर आरटीआई ब्यूरो के संयोजक लवण ठाकुर ने उपभोगता फोरम मंडी के पास अपील की। आवेदक ने ज्यादा पैसे वसूलने पर जन सूचना अधिकारी के खिलाफ ९९ हजार हर्जाने का दावा किया। दस बीच जन सूचना अधिकारी ने ज्यादा वसूल की गई राशि लौटाने के लिए जन सूचना अधिकारी ने आवेदक को २०८ रूपए का चैक भी जारी कर दिया, लेकिन आवेदक ने उसे कैश नहीं करवाया।
मीका बचे, साहब फंसे
कुल्लू दशहरा की स्टार नाइट में अपना प्रोग्राम देने आए पंजाबी पॉप गायक मीका द्वारा कार्यक्रम के दौरान गाने की जगह सीडी पर लिप्सिंग करने के आरोप लगे थे। यह मामला मीडिया में उछला तो आरटीआई ब्यूरो मंडी ने कुल्लू प्रशासन की ओर से सूचना मांगी कि लिप्सिंग करने पर मीका के खिलाफ या कार्रवाई की। प्रशासन ने इस बारे में जांच के लिए कमेटी गठित की। मीका तो कार्रवाई से बच गए लेकिन ज्यादा पैसे वसूलने के चक्कर में एडीएम फंस गए।
कोटस
जन सूचना अधिकारी आवेदक को पांच सौ रूपए बतौर हर्जाना अदा करे। इसके अलावा पांच सौ रूपए कोर्ट केस के तौर पर दे। यह राशि जन सूचना अधिकारी एक माह के अंदर अदा करे।
सुशील कुकरेजा, अध्यक्ष उपभोगता फोरम मंडी के आदेश।
सोमवार, 26 अप्रैल 2010
यहां खारिज हुआ प्रस्ताव, वहां मांगा ग़या जवाब
यहां खारिज हुआ प्रस्ताव, वहां मांगा ग़या जवाब
एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने तकनीकी कारणों से रिजेक्ट किया है नेरढांगू का प्रस्ताव
पिछली कांग्रेस सरकार के वक्त हुई थी सात सौ करोड़ की लागत से एयरपोर्ट बनाने की घोषणा
गेटवे ऑफ मनाली कहे जाने वाले मंडी की बल्ह घाटी के नेरढांगू में प्रस्तावित इंटरनेशनल एयरपोर्ट को बेशक एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने तकनीकी तौर पर खारिज कर दिया हो लेकिन केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने इस एयरपोर्ट की संभावनाओं को जिंदा रखने के लिए फिर से प्रयास शुरू कर दिए हैं। केद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने केंद्रीय पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन मंत्रालय को लिखे पत्र में नेरढांगू में फिर से इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए सर्वे करने का अनुरोध किया है। केद्रीय इस्पात मंत्री का दावा है कि खराब मौसम के बीच इस साईट का सर्वेक्षण करवाया गया, यही कारण है कि एयरपोर्ट एथॉरिाटी ऑफ इंडिया ने तकनीकी रूप से इस प्रोजेक्ट को नकार दिया है। नेरढांगू में इंटरनेशनल एयरपोर्ट की संभावनाएं खत्म होने के बाद जहां प्रदेश सरकार जहां कहीं दूसरी जगह इंटरनेशनल एयरपोर्ट की संभावनाएं तलाशने में जुट गई है, वहीं केंद्रीय इस्पात मंत्री इंटरनेशनल एयरपोर्ट को सुंदरनगर में ही बनाने को लेकर आशावान है। गौरतलब है कि ज्यादा खर्च करने वाले अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए प्रदेश की पिछली कांग्रेस सरकार के वक्त सुंदरनगर के नेरढांगू में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की घोषणा हुई थी। 700 करोड़ की लागत से निर्मित होने वाले इस ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट प्रोजेकट के लिए वर्तमान भाजपा सरकार की ओर से टेक्रो- इकॉनोमिक स्टडी करवाने के बाद रिपोर्ट केंद्र सरकार को भेजी थी। इसके बाद एयरपोर्ट ऑफ इंडिया की टीम ने साइट का दौरा किया था। करीब सात साल की कवायद के एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने यहां इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने से हाथ खींच लिए थे। शिमला-सोलन में संभावनाएं सुंदरनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनने की संभावनाएं क्षीण होने के बाद प्रदेश सरकार सोलन और शिमला में इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। प्रदेश सरकार प्रदेश में एयर क्नेक्टिविटी बढाने के लिए प्राइवेट सेक्टर की मदद की घोषणा कर चुकी है। पर्यटन एवं नागरिक उड्डयन विभाग के निदेशक अरुण शर्मा कहते हैं कि प्रदेश में एयर कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए प्राइवेट प्लेयर की मदद ली जाएगी। कांगड़ा, कुल्लू- शिमला में विस्तारप्रदेश में हवाई सेवाओं के विस्तार का खाका तैयार हो चुका है। प्रदेश में स्थित तीनों हवाई अड्डों गगल सिथत कांगड़ा हवाई अड्डा, कुल्लू स्थित भूंतर हवाई अड्डा और शिमला स्थित लुब्बड़ हट्टी हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के लिए खाका तैयार कर दिया गया है। भंतर स्थित हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के लिए ब्यास नदी की चैनलाइजेशन के लिए आईआईटी रुड़की से स्टड़ी करवाई गई है। इसके अलावा शिमला व कांगड़ा की हवाई पट्टियों को विस्तृत किया जा रहा है। बढ़ रही हवाई सफर की हसरत प्रदेश में हवाई सफर करने वाले सैलानियों की तादाद बढ़ रही है। वर्श 2008 में 30400 यात्री हवाई सफर कर प्रदेश में पहुंचे, जबकि 44701 यात्री प्रदेश से हवाई मार्ग से प्रदेश से बाहर गए। पिछले साल 47119 यात्री हवाई मार्ग से हिमाचल प्रदेश में पहुंचे जबकि 42926 यात्री यहां से हवाई सफर कर प्रदेश से बाहर गए। प्रदेश में आने वाले विदेशी सैलानियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए प्रदेश में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की संभावनाओं को बल मिला है।
शिमला में अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की संभावनाएं लताश की जा रही है। प्रदेश में एयर कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए प्राइवेट सेक्टर की सेवाएं लेने का प्रस्ताव है।
मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की घोषणा।
प्रदेश के पहले इंटरनेशनल एयरपोर्ट की संभावनाएं अभी कम नहीं हुई हैं। इस बारे में फिर से सर्वे करवानेे के लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय से पत्र व्यवहार जारी है।
मंडी में पत्रकारवार्ता के दोरान केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह बोले।
गुरुवार, 22 अप्रैल 2010
सौ सौ बार खणोंदियां सडक़ां।
गमे कुस छुपाणा लग्गे।।
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
मंगलवार, 20 अप्रैल 2010
मंडी से होगी दिल्ली में सुनवाई
- डीसी मंडी के ऑफिस से केंद्रीय सूचना आयोग दिल्ली के बीच होगी वीडियो कांफ्रेसिंग
- हिमाचल ग्रामीण बैंक से अधूरी सूचना मिलने पर केंद्रीय सूचना आयोग के पास की थी अपील
- अपील के दौरान वीडियो कांफ्रेंसिग में हाजिर न होने पर एकतरफा होगा आयोग का फैसला
सोमवार, 19 अप्रैल 2010
धरोहरों को बचाने का शंखनाद
धरोहर संरक्षण संगोष्ठी 2010 के आयोजन प्रदेश की धरोहरों के सरंक्षण एंव संवर्धन के लिए स्थानीय समाज को जागरूक करने की स्थानीय सामाज की एक पहल थी। संगोष्ठी में प्रदर्शियों, समीनार, परिचर्चा, नाटक और चित्रकला, भाषण और लोकगीत प्रतियोगिता के बहाने धरोहरों को बचाने का शंखनाद किया गया। संगोष्ठी में उपस्थित विभिन्न विभिन्न ऐतिहासिक मंदिरों के पुजारियों ने मंदिरों के संरक्षण - संवर्धन में आ रही समस्याओं को सामने रखा। संगोष्ठी के दौरान प्रतिभागियों को परमपरागत खाने परोसे गए। धरोहरों को बचाने के लिए विपाशा सदन में दो दिन हुए चिंतन मंथन में यह बात उभर कर सामने आई है कि अगर प्रदेश के अलग- अलग स्कूल धरोहरों को गोद लें तो प्रदेश की विभिन्न धरोहरों के आस्तित्व को बचाया जा सकता है। धरोहरों के संरक्षण के लिए स्कूलों को धरोहरों को गोद लेने की मांग की गई है। संगोष्ठी में यह बात भी सामने आई है कि कई निजी स्कूलों की ओर से यह मौखिक आदेश दिए गए है कि कि बच्चे स्थानीय बोली न बोलें,। संगोष्ठी में इस बात पर चिंता जाहिर की गई है अगर स्कूलों ने अपना रवैया नहीं बदला तो इस बोली का वजूद खत्म हो जाएगा। संगोष्ठी में भारतीय पुरातत्व विभाग नई दिल्ली, प्रदेश भाषा, कला एवं संस्कृति विभाग और प्रदेश पर्यटन विभाग की ओर से आयोजित प्रदर्शनियों के बहाने प्रदेश की पुरातत्विक धरोहरों, प्राकृतिक धरोहरों और सांस्कृतिक धरोहरों को प्रदर्शित किया। निजी संग्रहकर्ताओं में मांडव्य कला मंच ने पुरातन परिधानों और वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया तो सतीश सक्सेना ने माचिसों के संग्रह का आयोजन किया गया। पुरी ज्वैलर्स की ओर से पुरातन आभूषणों को प्रदर्शित किया गया। संगोष्ठी के दो दिन सतोहल नाटय संस्थान की ओर से महिला जैसी अनमोल धरोहर के संरक्षण को लेकर मातृदिवस नामक नाटक का मंचन किया गया । इस दौरान ननावां गांव से आई गुलाबी ठाकुर और उनकी टीम ने छिंज लोकगीत को मुंच पर जीवित कर दिया। सेमीनार का उदघाटन अवसर पर मुख्यतिथि मंडलीय आयुक्त अशवनी शर्मा ने कहा कि मंडी में धरोहरों के संरक्षण को लकर जागरूकता को देखते हुए मंडी में संग्रहालय बनाने की जरूरत महसूस की। उन्होंने कहा कि मंडी में संग्रहालय बनाने के लिए वह प्रदेश सरकार को प्रस्ताव भेजेंगे। कार्यक्रम में भाग लेने पहुचे उपायुक्त डा. अमनदीप गर्ग ने कहा कि संगांष्ठी में आए विभिन्न प्रतिभागियों के सुझावों और विचारों को लिपिबद्व करना चाहिए ताकि धरोहरों के संरक्षण को लेकर बनने वाली नीति निर्धारण के काम आ सके। भारतीय पुरातत्व विभाग के वरिष्ठ सर्वेक्षण अधिकारी अशोक कोंडल ने बताया कि ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार के नए कानून के अनुसार धरोहरों पर अतिक्रमण करने पर जेल की हवा भी खानी पड़ सकती है। उन्होंने बताया कि भारतीय पुरातत्व विभाग प्रदेश की 40 ऐतिहासिक धरोहरों के सरंक्षण के लिए काम कर रहा है। संगोष्ठी में आयेजित विभिन्न प्रतियोगिताओं में अव्वल रहे स्कूली बच्चों को भारतीय पुरातत्व विभाग और मांडव्य कला मंच की ओर से पुरस्कार प्रदान किए गए।
- बिना विभागीय परीक्षा पास किए ही सहायक अभियंता से बना दिया अधीक्षण अभियंता
- आटीआई के तहत ली जानकारी में हुआ खास अपसर पर खास मेहरबानी का खुलासा
- विवादों में घिरी जोगेंद्रनगर की उहल बिजली परियोजना के अधिकारी अब विवादों में घिरे
वित्तीय अनियमितताओं को लेकर विवादों में घिरी जोंगेंद्रनगर स्थित अहल बिजली परियोजना के अधिकारी भी अब विवादों में घिरने शुरू हो गए हैं। बिजली बोर्ड की अपने खास अफसरों पर खास मेहरबानी का पर्दाफाश हो गया है। सूचना अधिकार कानून के तहत जुटाई जानकारी में खुलासा हुआ है कि उहल पावर प्रोजेक्ट में कार्यरत अधीक्षण अभियंता बीके अग्रबाल पर बिजली बोर्ड ने खास दरियादिलील दिखाते हुूए तमाम विभागीय औपचारिकताओं को पूरा किए सहायक अभियंता से अधिक्षण अभियंता के पद पर बिना विभागीय परीक्षा पास किए ही पदोन्नति दे दी। जोंगेद्रनगर के आरटीआई एकिटविस्टि एडवोकेट रणजीत चौहान को सूचना अधिकार कानून के तहत प्रदेश विद्युत बोर्ड के सचिव ने जो जानकारी उपलब्ध करवाई है, वह काफी चौंकाने वाली है। जानकारी के अनुसार उक्त अधिकारी के सर्विस रिकॉर्ड के अनुसार सहायक अभियंता के पद से अधीक्षण अभियंता के पद पर पहुंचे उक्त अधिकारी ने पदोन्नति के लिए जरूरी विभागीय परीक्षा पास नहीं की है। सूचना अधिकार कानून के तहत ली गई जानकारी में अनुसार उक्त अधीक्षण अभियंता का उहल पावर प्रोजेकट प्रेम भी साफ दिखाई दे रहा है। महोदय 14 अक्तूबर 2002 से 12 जून 2006 तक उहल पावर प्रोजेक्ट में बतौर कार्यकारी अभियंता तैनात रहे और 30 मर्द 2009 से बतौर अधीक्षण अभियंता उन्हें फिर से उहल पावर प्रोजेक्ट में तैनाती दे दी गई है। पदोन्नति के लिए 6 मौके प्रदेश बिजली बोर्ड के सचिव की ओर से उपलब्ध करवाई गई सूचना के अनुसार सहायक अभियंता से पदोन्नति के लिए विभागीय परीक्षा पास करना जरूरी है। पदोन्नति के लिए बिजली बोर्ड की ओर से 6 मौके दिए जाते हैं। बिजली बोर्ड की ओर से दी गई सूचना के अनुसार बिजली बोर्ड में पदोन्नति के लिए आखिरी विभागीय परीक्षा 9 -10 नवबंर 2009 को हुई थी। बिजली बोर्ड की और आयोजित इस विभागीय परीक्षा में भी उक्त अधीक्षण अभियंता शामिल नहीं हुए हैं। कोटस बिजली बोर्ड में पदोन्नतियां नियमों को ताक पर रख कर की जा रही हैं। इससे पात्र अधिकारियों को पदोन्नति का अवसर नहीं मिल रहा है, जबकि सत्ता के गलियारों में हाजिरी बजाने को खास तरजीह मिल रही है। बोर्ड में नियमों के विपरीत हुई पदोन्नतियां खारिज होनी चाहिए। एडवोकेट रणजीत चौहान, जिन्होंने सूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी है।
जब हिमाचल की दो सीटों से चुने गए तीन सांसद
देश के अन्य हिस्सों में मतदान से दो माह पहले ही हिमाचल प्रदेश की दो सीटों के लिए चुनाव हो गए। लाहौल, किन्नौर और चंबा में बर्फबारी की आशंका के चलते यहां अक्टूबर 1951 में ही मतदान करा लिया गया जबकि पूरे देश में मतदान दिसंबर और फरवरी 1952 में हुआ था।
उस समय प्रदेश की कुल जनसंख्या साढ़े नौ लाख के करीब थी जिसमें साढ़े पांच लाख मतदाता थे। इस चुनाव में मंडी-महासू संसदीय सीट से द्विसदस्यीय उम्मीदवार प्रणाली के तहत कपूरथला की रानी अमृत कौर और गोपी चंद लोकसभा के लिए चुने गए जबकि चंबा-सिरमौर सीट पर एआर सेवल विजयी होकर संसद पहुंचे। बताया जाता है कि इस चुनाव को लेकर लोगों में काफी उत्साह था।
लोग यह जानना चाहते थे कि आखिर किस तरह से पहली बार चुनाव प्रक्रिया संपन्न होगी और कौन जीतेगा। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश में मौसम एक बड़ा कारण बनता है। उस समय भी मौसम के कारण ही चुनाव पहले ही कराने पड़े थे।
पहले आम चुनाव में किसी संसदीय सीट को एससी और एसटी के लिए रिजर्व करने का नियम नहीं था, लेकिन लोकतंत्र में इन वगोर्ं को उच्च प्रतिनिधित्व देने के लिए कुछ सीटों को द्विसदस्यीय एवं त्रिसदस्यीय सीटें घोषित किया गया था।
मंडी-महासू संसदीय सीट को द्विसदस्यीय सीट घोषित किया गया था। इसमें एक सामान्य श्रेणी और दूसरा आरक्षित श्रेणी का उम्मीदवार चुना जाता था। मंडी-महासू सीट से रानी अमृतकौर जहां सामान्य श्रेणी से एमपी बनी, वहीं गोपी राम आरक्षित श्रेणी से चुने गए।
पहला चुनाव, पहला मंत्री
पहले आम चुनाव में मंडी-महासू सीट से चुनी गई रानी अमृतकौर को देश के पहले कैबिनेट में मंत्री होने का गौरव हासिल हुआ। नेहरू कैबिनेट में उन्हें देश का पहला स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। अमृतकौर की गिनती जवाहर लाल नेहरू के बेहद करीबियों में की जाती थी।
रविवार, 18 अप्रैल 2010
सरकार को नहीं टेंशन, सेलरी के साथ पेंशन
बल्ह ब्लॉक की कसारला पंचायत में अपात्र व्यक्तियों को मिल रही सामाजिक सुरक्षा पेंशन
आरटीआई का खुलासा, हकीकत सामने आने के बावजूद बंद नहीं हो पाई पेंशन
मंडी कसारला पंचायत सामाजिक पेंशन को लेकर अनियमितताओं का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां की एक महिला सरकारी नौकरी भी करती है और उसे विधवा पेंशन भी प्रदान की जा रही है। आरटीआई के तहत खुलासा हुआ है कि लीला पत्नी गोपाल सरकारी नौकरी के बावजूद विधवा पेंशन भी प्राप्त कर रही है। यह हास्यास्पद है कि यह सच जानने के बावजूद सियासी रसूख के चलते सरकारी अधिकारी उक्त महिला की पेंशन रोकने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहे हैं। हालांकि यिमों के मुताबिक वे सामाजिक पेंशन के हकदार नहीं है, बावजूद इसके वे सामाजिक पेंशन हासिल कर रहे हैं। हैरानी तो इस को लेकर है कि सरकारी अधिकारी भी जानते हैं कि उनकों सामाजिक पेंशन का भगुतान गैर कानूनी है, लेकिन चाह कर भी वे अपात्र व्यक्तियों की पेंशन बंद नहीं करवा रहे हैं। यह सनसनीखेज खुलासा आरटीआई के तहत जुटाई गई जानकारी में हुआ है। जिला कल्याण अधिकारी मंडी की ओर से सदर तहसील के गरोड़ू गांव की प्रेमी देवी को सूचना अधिकार कानून के तहत दी गई जानकारी चौकाने वाली है, वहीं जिला कल्याण समिति की कार्यप्रणाली पर भी कई सवालिया निशान लगाती है। जिला कल्याण अधिकारी ने अपने जवाब में कहा है ग्राम पंचायत कसारला में दस अपात्र व्यक्तियों को बुढ़ापा अथवा विधवा पेंशन सामाजिक न्याय एवं आधिकारिता विभाग की ओर से प्रदान की जा रही है। जिला कल्याण अध्किारी ने अपने जवाब में कहा है कि कसारला पंचायत के अपात्र पेंशन धारकों की सूचि को जिला कल्याण समिति की बेठक में प्रस्तुत किया था लेकिन समिति ने उक्त अपात्र व्यक्तियों की पेंशन बंद करने की अनमति नहीं दी। जिला कल्याण अधिकारी ने आगे लिखा है कि इस सूचि को फिर से विभागीय आदेशों के अनुसार फिर से समिति के पास प्रस्तुत किया जाएगा। तो क्या सियासी आका तय करते है पेंशन जिला कल्याण अधिकारी की ओर से दिए गए जवाब तो साफ जाहिर होता है कि सामाजिक पेंशन के लिए निर्धारित नियम नहीं, सियासी रसूख तय करता है। अगर यह बात नहीं है तो फिर नियमों के तहत अपात्र पाए गए व्यक्तियों की पेंशन बंद करने के लिए जिला कल्याण समिति की सिफारिश का इंतजार क्यों किया जा रहा है। सनद रहे कि प्रदेश सरकार की ओर से गठित जिला कल्याण समिति का अध्यक्ष लोक निर्माण मंत्री ठाकुर गुलाब सिंह है। जिला कल्याण समिति की बैठक हर तीन माह बाद होती है।
522 अपात्र पेंशनरों की हुई पहचान
जिला कल्याण अधिकारी मंडी के कार्यालय ने जिला में ऐसे 522 मामलों की पहचान की है जहां अपात्र होने के बावजूद बुढ़ापा अथवा विधवा पेंशन दी जा रही है। विभागीय सूत्रों के अनुसार इससे भी ज्यादा मामले हो सकते हैं। सूत्रों के अनुसार इन सभी मामलों की जानकारी जिला कल्याण समिति को है लेकिन जानकारी होने के बावजूद अपात्र व्याक्तियों को पेंशन जारी है, जिसका खामियाजा पात्र व्यक्तियों को भगतना पड़ रहा है। जाहिर है कि सियासी नफे नुक्सान के हिसाब से सामाजिक पेंशन तय हो रही है। इस अपात्रों को मिल रही पेंशन
नाम पेंशन क्यों हैं अपात्र
बसाखू पुत्र पोसू बुढ़ापा पेंशन लड़के सरकारी नौकरी करते
पत्नी बसाखू बुढ़ापा पेंशन लड़के सरकारी नौकरी करते हैं।
चिंती पत्नी सोहण सिंह बुढ़ापा पेंशन लड़के सरकारी नौकरी करते हैं।
महशवरु पत्नी सवारु बुढ़ापा पेंशन लड़का सरकारी नौकरी करता है।
दियूली पत्नी चमार बुढ़ापा पेंशन लड़का सरकारी नौकरी करता है।
कादरी पत्नी नरायणू राम बुढ़ापा पेंशन लड़का सरकारी नौकरी करता है।
द्रोमती पत्नी जाहरु राम बुढ़ापा पेंशन लड़का सरकारी नौकरी करता है।
मस्ती देवी विधवा नील विधवा पेंशन लड़का सरकारी नौकरी करता है।
विद्या विधवा बेली राम विधवा पेंशन लड़का सरकारी नौकरी करता है।
लीला विधवा गोपाल विधवा पेंशन स्वयं सरकारी नौकरी करती है।
गैर कानूनी ढंग से बुढ़ापा और विधवा पेंशन का भुगतान किया जा रहा है। सच जानने के बावजूद जिला कल्याण समिति ऐसी पेंशन बंद नहीं कर रही है। इस सारे मामले की जांच होनी चाहिए और रिकवरी होनी चाहिए।
प्रेमी देवी , जिसने आरटीआई के तहत जानकारी प्राप्त की है।
अपात्र व्यक्तियों की पेंशन बंद करने के लिए जिला कल्याण समिति के पास सूचि रखी थी लेकिन जिला कल्याण समिति पेंशन बंद करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया । मामले को दोबारा जिला कल्याण समिति के सामने प्रस्तुत किया जाएगा।
पीआर धीमान, जिला कल्याण अधिकारी
रविवार, 11 अप्रैल 2010
मिला है अधिकार, फिर भी है लाचार
बाजार में आज भी लुटने को मजबूर है पहाड़ का ग्राहक
मिला है अधिकार, फिर भी है
ठगे जाने के बाद भी चुप रहते हें 70 प्रतिशत ग्राहक
प्रदेश के 12 जिलों के लिए हैं सिर्फ 4 उपभोक्ता फोरम
यहां ग्राहकों के हकों की हिफाजत के लिए कानून बने लंबा अर्सा बीत चुका हो, लेकिन अपने अधिकारों के बारे में जागरूक न होने के कारण प्रदेश के ग्राहक आज भी बाजार में लुटने को मजबूर हैं। हैरानी तो इस बात को लेकर है कि यहां शिक्षित वर्ग हकीकत जानते हुए भी चुपी साध जाता है। इस बारे में हुई स्टडी का सनसनीखेज खुलासा है कि प्रंदेश में 70 प्रतिशत ग्राहक अपने अधिकारों का हनन होने की सूरत में भी उपभोक्ता फोरम तक अपनी शिकायत नहीं ले जाते हैं। इसकी एक खास वजह यह भी है कि प्रदेश के 12 जिलों के लिए सिर्फ चार जिला मुख्यालयों धर्मशाला, मंडी, शिमला और ऊना में ही उपभोक्ता फोरम स्थापित किए गए हैं जहां ग्राहक अपनी शिकायतें दायर कर सकते हैं। लंबा सफर और जटिल कानूनी प्रक्रिया के चलते उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाने की लोग ठगे जाने के बावजूद हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। उपभोक्ता फारमों में लंबित मामलों और फैसला होने में सालों खिंचने वाली थकान भरी कानूनी प्रक्रिया भी ग्राहकों के न्याय हासिल करने के लिए उठे हुए कदमों को रोक लेती है। ग्राहकों को जागरूक करने में जहां प्रदेश सरकार की भूमिका नाकारात्मक रही है, वहीं किसी गैर सरकारी संस्था ने भी उपभोक्ता अधिकारों को लेकर प्रदेशवासियों को जागरूक करने में रुचि नहीं दिखाई है। प्रदेश के उपभोक्ता अधिकारों की स्थिति को लेकर स्टडी करने वाली मुक्ता माक्टा की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 58 प्रतिशत उपभोक्ताओं को अपने अधिकारों की जानकारी तक नहीं है। मुआवजे से ज्यादा हो जाता है खर्च रिपोर्ट के मुताबिक उपभोक्ता फोरम में उपभोक्ता अधिकारों के केस हल होने में औसतन 2 से 3 साल लग जाते हैं। लंबित मामलों की दर औसतन 6 प्रतिशत है। उपभोक्ता फारम तक अपनी शिकायत दर्ज करवाने और वकील आदि पर उपभोक्ता को इतना खर्च करना पड़ जाता है, केस जीतने के बाद जितना मुआवजा तक ग्राहक को नहीं मिल पाता है। ऐसे में ग्राहकों के लिए यह घाटे का ही सौदा है। जागरुकता को लेकर नहीं हो रहा कोई काम प्रदेश में उपभोक्ता अधिकारों को लेकर लोगों को जागरूक करने को लेकर सरकार और उपभोक्ता विभाग की भूमिका भी नकारात्मक ही रही है। यहां किसी गैर सरकारी संसथा ने भी इस क्षेत्र में पहल करने की धीर गंभीर कोशिश नहीं की हैं। उपभोक्ता अधिकार के हनन को लेकर हाल ही में मार्केटिंग कमेटी और मार्केटिंग कमेटी के एजेंटस के खिलाफ पुलिस में मामला दायर करने वाले आरटीआई ब्यूरो के संयोजक लवण ठाकुर कहते हैं कि ग्राहकों में जागरूकता का अभाव और जटिल कानूनी प्रक्रिया उपभोक्ताओं की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है।
रसीद का मोल नहीं पता
प्रदेश में उपभोक्ता अधिकारों की स्थिति पर शोध करने वाली मुक्ता मोक्टा के विशलेषण के अनुसार ज्यादातर ग्राहक तो खरीद के बदले रसीद तक लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं। उन्हें रसीद के महत्व तक का पता नहीं है। प्रदेश के 58 प्रतिशत ग्राहकों को फूड एंड एडल्ट्रेशन एक्ट, ड्रग्स एंड कॉस्मेअिक एक्ट, ब्लैक मार्केटिंग एंड मेंटेनेंस ऑफ सप्लाई ऑफ इसेंसियल कॉमोडिटी एक्ट के बारे में कोई जानकारी नहीं है। वे कम्ज्यूमर प्रोजेक्टशन लॉ को लेकर भी बेखबर हैं। दो दशक बाद भी शैशव में उपभोक्ता आंदोलन प्रदेश में 1989 में चार जिलों के मुख्यालयों पर उपभोक्ता फोरम स्थापित किए थे। 1988 में कंज्यूमर प्रोटेक्षन रूल्स की अधिसूचना जारी की गई थी। दो दशक का लंबा समय बीच जाने के बावजूद ग्राहकों के हितों की पैरवी करने वाला कानून अभी तक शैशव में ही है। बाजार की ताकत के आगे प्रदेश में अभी तक कोई बड़ा उपभोक्ता आंदोलन नहीं नहीं हुआ है, नतीजतन प्रदेश के ग्राहक लुटने को मजबूर हैं।
जागो ग्राहक जागो
खरीद के बाद बिल लेना न भूलें ।
पैकिंग वस्तुओं के निर्धारित मूल्यों से अधिक भुगतान न करें।
खरीद फरोख्त करते वक्त मोल भाव जरूर करनी चाहिए।
कम तोलने , ज्यादा वसूलने पर खाघ आपूर्ति विभाग में तुरंत श्किायत करें।
खरीद करते वक्त वस्तु की गुणवता को जरूर जांच लें।
दुकान में जाकर रेट लिस्ट जरूर देंखें, न होने पर दुकानदार से पूछें।
विभाग से श्किायत करें।
गर्मी की मार, होंगे पहाड़ पर सवार
नेचुरल स्टडी केंपिंग, ट्रेकिंग, मांउट बाकिंग और फैमिली एडवेंचर कैंप के बहाने
पड़ते गर्मी की मार, होंगे पहाड़ पर सवार
नेशनल यूथ हॉस्टल के 8 में से 6 एक्सपीडिशन हिमाचल प्रदेश में
युवाओं से लेकर वयस्कों तक के कार्यक्रम तय, अपैल से होगी शुरूआत
तीन माह के समय में हिमाचल प्रदेश की पगडंडियां मापेंगे देश भर के लोग
गर्मियां पड़ते ही देश भर लोग पहाड़ पर सवार होंगे। नौनिहालों से लेकर वयस्कों तक के लिए नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन ने अपने 2010 के द नेशनल एक्सपीडिशनस की घोषणा कर रही है। नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन के 8 एक्सपीडिशनस में से 6 एक्सपीडिशन हिमाचल प्रदेश में होंगे। नेचुरल स्टडी कैंप, ट्रेकिंग, मांउट बाइकिंग और फैमिली केंपिंग के बहाने देश के विभिन्न भागों के लोग पहाड़ों की पगडंडियां मापेंगे। अप्रैल माह से शुरू होने वाले यह अभियान जून तक जारी रहेंगे। नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन पिछले चार दशक से यूथ हॉस्अल एसोशिएशन के सदस्यों के लिए ट्रेकिंग और एडवेंचर के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है।
डलहौजी में नेचुर कैंप
नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन अपने जूनियर मेंबर्स के लिए 21 अप्रेल से 26 मई तक डलहौजी में नेचुर स्टछी केंप का आयोजन कर रहा है। इस कैंप के दौरान 10 साल से 15 साल के बीच के युवा वर्ड वाचिंग, रॉक क्लांविंग, ट्रेकिंग और फाटोग्राफी का आनंद उठाएंगे। 50- 50 के समूहों में इन युवाओं को बड़ानाला, लकड़मंडी, कालाटोप, डैनकुंड और पंजपुला की ट्रेकिंग करवाई जाएगी। प्रति मेंबर 1970 रुपए फीस देनी पड़ेगी।
सेऊबाग में फैमिली एडवेंचर कैंप
नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन इस साल 24 अप्रेल से 8 जून तक कुल्लू में फमिली एडवेंचर कैंप का आयोजन कर रही है। 2900 रुपए की फीस में दंपति और दो बच्चे इस कैंप में भाग ले सकते हैं। तीसरे बच्चे के होने पर 7 सौ रूपए अतिरिक्त फीस के रूप में देने पड़ेंगे। गर्मियों मौसम में स्परिवार पहाड़ के रोमांच का शानदार अवसर है। इस एडवैंचर कैंप में भाग लेने वालों को कुल्लू के सेऊबाग स्थित बेस केंप में पहुंचना होगा।
जलोड़ी पास पर मांउट बाइकिंग
पहाड़ पर बाइकिंग के शौकीनों के लिए नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन 8 दिन के नेशनल मांउट बाइकिंग का आयोजन कर रही है। 2100 रूपए की फीस जमा कर बाइकर इस एक्सपीडिशन में भाग ले सकते हैं। इस अभियान के दौरान बाइकर 8 दिन में बंजार , झिबी और जलोड़ी जोत को पार करेंगे। इस एक्सपीडिशन में भाग लेने वालों के लिए औट स्थित हॉस्टल को बेस केंप बनाया गया है।
स्टूडेंटस नेशनल एंड स्टडी कैंप
29 अप्रैल से लेकर 29 मई तक कुल्लू के डोभी में नेशनल हिमालयन नेचुरल स्टडी कम ट्रेकिंग कैंप का आयोजन नेशनल यूथ हॉस्टल की ओर से किया जा रहा है। 50 स्टूडेंटस के ग्रुप के लिए 8 दिन के एक्सपीडिशन के लिए प्रति स्टूडेंट 1970 रूपए बतौर फीस वसूल किए जाएंगे। एक माह तक चलने वाले इस एक्सपीडिशन में देश भर के स्टूडेंटस को जहां ट्रेकिंग का अवसर मिलेगा, वहीं पहाड़ों को समझने का भी अवसर मिलेगा।
हिमालयन नेशनल ट्रेकिंग एक्सपीडिशन
25 अप्रेल से 25 मई तक सुरकंड पास की ट्रेकिंग के लिए एक्सपीडिशन का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान साहस- रोमांच के शोकीन सेगली, मेई, लोंगाथाच और सुरकंड पास की ट्रेकिंग होगी। 11 दिन का यह ट्रैक अपेक्षाकृत कठिन है और इस अभियान का मकसद युवाओं को एडवेंचर की ओर प्रोत्साहित करना है। इस अभियान में भाग लेने वाले प्रतिभागी को बेबली स्थित बेस केंप में पहुचना होगा और प्रतिभागी को 2800 रुपए बतौर फीस जमा करवाने होंगे।
पावर्ती वैली की ट्रेकिंग
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित पार्वती वैली में इस साल नेशनल यूथ हॉस्टल एसोशिएशन की ओर से एक मई से 31 मई तक पार्वती वैली के सार पार की ट्रेकिंग के अभियान का आयोजन करेगी। इस अभियान के लिए कसौल में बेस कैंप होगा। इस दौरान 11 - 11 दिन के ट्रेकिंग अभियान के दौरान युवाओं को एडवेंचर के गुर सिखाए जाएंगे। अपनी खूबसूरती के लिए मशहूर पार्वती वैली के इस अभियान के लिए प्रतिभागी को 2800 रूपए फीस जमा करवानी होगी।
6 मेगावाट बिजली क्षमता बढ़ाने पर फूंक दिए 100 करोड़
6 मेगावाट बिजली क्षमता बढ़ाने पर फूंक दिए 100 करोड़
70 करोड़ में काम हुआ आवार्ड, 100 करोड़ से जयादा का हुआ
पावर हाऊस के रेजिडेंट इंजीनियर की ओर से मिली सूचना में हुआ खुलासा
बस्सी पावर हाऊस में 6 मेगावाट अतिरिक्त हबिजली क्षमता बढ़ाने के लिए बिजली बोर्ड की ओर से दिखाई गइ्र दरियादिली संदेह के घेरे में है। हैरानी इस बात को लेकर है कि प्रदेश में एक मेगावाट जलविद्युत पावर प्रोजेक्ट स्थापित करने की औसतन लागत पांच करोड़ है, वहीं बस्सी पावर हाऊस में यह लागत औसतन 15 करेाड़ प्रति मेगावाट से भी ज्यादा पड़ी है। आरोप हैं कि पावर हाऊस की रेनोवेशन में कंपनी को मिलीभगतइ से लाभ पहुचाया गया है। ऐसे में पावर हाऊस की रेनोवेशन को लेकर जांच की मांग उठने लगी है।जोंगेंद्रनगर स्थित बस्सी पावर हाऊस की उत्पादन क्षमता 60 मेगावाट से बढ़ा कर 66 मेगावाट करने पर प्रदेश बिजली बोर्ड ने पानी 100 करोड़ की राशि फूंक डाली। इतना ही नहीं, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के चलने बंद रहे बिजली उत्पादन के चलते अलग से करोड़ों की चपत लगी। पावर हाऊस में उत्पादन क्षमता बढ़ाने के चलते बिजली उत्पादन ठप्प रहने से 143।56 मेगावाट बिजली का नुक्सान हुआ। हालांकि कंपनी निर्धारित समय अवधि में काम पूरा करने में नाकाम रही फिर भी बिजली बोर्ड ने पावर हाऊस की विद्युत क्षमता बढ़ाने का काम करने वाली फ्रीदाबाद की फर्म पर खास दरियादिली दिखाई। जो काम 70 करोड़ में आबंटित हुआ था, बिजली बोर्ड ने उस काम के लिए 100 करोड़ का भुगतान किया । बिजली बोर्ड की ओर से यह तर्क दिया गया कि टेल रेस की मॉडीफिकेशन की एवज में कंपनी को 39 करोड़ का अतिरिक्त भुगतान किया गया। पावर हाऊस के रेजिडेंट इंजीनियर की ओर से सूचना अधिकार कानून 2005 के तहत दी गई जानकारी में बस्सी पावर हाऊस के रेनोवेशन में कंपनी पर मेहरबानी करने का सनसनीखेज खुलासा हुआ है। सूचना जोंगेंद्रनगर निवासी सुमित सूद ने मांगी थी।
कंपनी को 63 लाख का जुर्माना
फरीदाबाद की मैसर्ज एसवीए टेक्नो को काम 21 मार्च 2008 को अवार्ड हुआ था। कंपनी ने 12 अक्तूबर 2007 को काम शुरू हुआ। बोर्ड और कंपनी के बीच हुए करार के अनुसार मशीन नंबर 4 का काम 12 अक्तबूर 2007 और मशीन नंबर 3 का काम 2 सितंबर 2008 को पूरा होना था। कंपनी निर्धारित समय अवधि में काम को पूरा नहीं कर पाई। ऐसे में बोर्ड की ओर से कंपनी को 63। 87 लाख की पेनेल्टी लगाई गई। बोर्ड ने यह राशि कंपनी की करार राशि में से काट ली। कोटस बस्सी पावर हाऊस में 6 मेगावाट अतिरिक्त बजली पैदा करने के लिए फरीदाबाद की कंपनी के साथ 70 करोड़ का करार बोर्ड ने किया था, लेकिन कंपनी को फाइनल पेमेंट 100 करोड़ से भी ज्यादा हुई। कंपनी समय पर काम भी नहीं कर पाई और उसे पेनेल्टी भी लगाई गई। ऐसे में जबकि प्रदेश में नए पावर प्रोजेकट में एक मेगावाट बिजी पैदा करने पर औसतन 5 करोड़ की लागत आती है, कंपनी ने 15 करोड़ प्रति प्रति मेगावाट के हिसाब से राशि खर्च की। मामले की जांच होनी चाहिए। सुमित सूद, सूचना अधिकार कानून के तहत जिसने सूचना मांगी।
शनिवार, 10 अप्रैल 2010
सेना के खिलाफ कई मोर्चे
हिमाचल प्रदेश में भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के बीच बढ़ते विवादों का साया
रक्षा मंत्रालय तक पहुंच चुके हैं पहाड़ पर सेना की दादागिरी के कई मामले
सैनिकों का प्रदेश कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश के कई हिस्सो में भारतीय सेना और स्थानीय लोगों के बीच बढ़ते विवादों के चलते यहां सेना के खिलाफ ही कई मोर्चे खुल गए हैं। शिमला में जहां ऐतिहासकि अनाडेल ग्राउंड को लेकर सेना स्थानीय लोगों और प्रदेश सरकार के निशाने पर है, वहीं नाहन में स्थानीय लोगों और सेना के बीच जमीन के अधिकार को लेकर शुरू हुआ विवाद भी अभी तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। आर्मी की राइजिंग स्टार कॉर्प के अधिकारियों व स्थानीय दुकानदारों के बीच उपजा विवाद अभी ठंडा भी नहीं पड़ा था कि कांगउ़ा में ही डिफेंस की टांडा फायरिंग रेंज में युद्वाभ्यास के बाद जिंदा बम्बों की चपेट में आने से हुई तीन स्कूली बच्चों की मौत के बाद यहां के आधा दर्जन गांवों के लोग यहां से फायरिंग रेंज को हटाने को लकर लामबंद होने लगे हैं। हिमाचल प्रदेश और हरियाणा की जमीन पर प्रस्तावित आर्मी की नारायणगढ़ फायरिंग रेंज को लेकर भी जम कर विवाद हो चुका है। राइजिंग स्टार कॉर्प की ओर से योल के आर्मी क्षेत्र में बांउडरी वाल लगाने के बाद जहां यहां के कई गांव केंटोनमेंट क्षेत्र से बाहर होने को छटपटा रहे हैं। योल के निकटवर्ती गांव के लोग आर्मी पर आरोप लगाते हैं कि सेना के लिए पंचायत ने जो गांव का ग्राउंड सेना को दिया था, उस ग्राउंड के चारों ओर बाड़ लगाकर सेना ने उनके ग्रेजिंग राइट(पशु चराने के अधिकार ) जबरन छीन लिए हैं। अब सूचना अधिकार कानून के सहारे ग्रामीण अपनी लड़ाई लड़ रहे हैं। इस पहाड़ी प्रदेश में सेना और सिविलियन के बीच पैदा हुए कई विवादों की शिकायतें रुक्षा मंत्रालय और राष्ट्रपति कार्यालय तक पहुंच चुकी हैं।
जिंदा बम्बों का
जिला के की टांडा फायरिंग रेंज की अधिसूचना 1977 में जारी की गई थी। इस फायरिंग रेंज में भारतीय सेना और अद्र्वसैनिक बल युद्वाभ्यास करते हैं। जिस वक्त यह फायरिंग रेंज बनी थी, उस वक्त इस क्षेत्र में आबादी नाममात्र ही थी, लेकिन पिछले तीन दशक में फायरिंग रेंज के एक किलोमीटर के क्षेत्र में घनी आबादी हो गई है। मार्च के पहले सप्ताह में इस फायरिंग रेंज पर सीमा सुरक्षा बल के सैनिकों ने युृद्वाभ्यास किया, लेकिन रेंज में सैंकड़ों जिंदा बम्बों को छोड़ कर सीमा सुरक्षा बलों के जवान चलते बने। इस लापरवाही का नतीजा 15 साल से कम आयु के तीन स्कूली छोत्रों साहिल, राहुल व चंदन को जान देकर भुगतना पड़ा। बेशक हादसे के बाद पुलिस ने क्षेत्र में सर्च अभियान चलाया और जिंदा बम स्क्वायर्ड ने कई जिंदा बम्बों को ढूंढ निकाला,लेकिन स्थनीय लोगों की मानें तो रेज की जद में आने वाले जंगलों में अभी भी कई जिंदा बम मौजूद हैं। कांगड़ा के जिला पुलिस प्रमुख उॉक्टर अतुल कुमार कहते हैं कि पुलिस ने आपीसी की धारा 304 के तहत मामला दर्ज कर लिया है । सेन्य प्रशासन से भी जानकारी जुटाई जा रही है और इस हादसे के लिए जिम्मेवार अधिकारयों की जवाबदेयी तय करने के लिए जांच खोल दी गई है। इस फायरिंग रेंज में दो दर्जन से ऐसे हादसे हो चुके हैं, बावजूद इसके बार बार विरोध के बावजूद यहां घनी आबादी के अंदर स्थित फायरिंग रेंज को बदला नहीं गया है। हालांकि जारी बजट सत्र में मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस फायरिंग रेंज को दोबारा से अधिसूचित करने की बात कही है। फायरिंग रेंज के नजदीकी गांवों कोहाला, कच्छयारी, खोली व टांडा गांवों में इस फायरिंग रेंज को हटाने का विरोध शुरू हो चुका है।
अनाडेल का खेल
शिमला में स्थित खूबसूरत अनाडेल ग्राउंड को लेकर प्रदेश सरकार और भारतीय सेना के बीच लंबे अर्से से शीतयुद्व जारी है। अंग्रेजों के बनाए इस ग्राउड को प्रदेश सरकार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम के तौर पर विकसित करना चाहती है। प्रदेश सरकार की ओर से यह ग्राउंड सेना को 11 रुपए सलाना की लीज पर दिया गया था। 1990 में यह लीज खत्म हो चुकी है। लेकिन सेना के उच्च अधिकारियों के गोल्फ खेलने के शौक को पूरा करता आ रहा यह ग्राउंड सेना को इतना भा गया है कि रक्षा मंत्रालय के आदेश के बावजूद सेना यहां से हटने का राजी नहीं दिख रही है। इस स्टेडियम पर 1888 में फुटबाल के नामी टूर्नामेंट डूरंड कप का मैच आयोजित हुआ था। हालांकि प्रदेश सरकार ग्राउंड छोडऩे की एवज में सेना को कहीं ओर जमीन देने को राजी है, बावजूद इसके सेना का इस ग्राउड को लेकर मोह छूटने का नाम नहीं ले रहा है। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने इस ग्राउंड को सेना से छुड़ाने के लिए राष्ट्रपति कार्यालय तक को हस्तक्षेप करने के लिए पत्र लिखा था। सेना के अधिकारी दलील देते हैं कि विकल्प के तौर पर प्रदेश सरकार सेना को कहीं दूसरी जगह जमीन उपलब्ध करवाने में नाकाम रही है। सेना यहां हवाई प्रशिक्षण के बहाने ग्राउंड पर अपना कब्जा जमाए रखने की फिराक में है। प्रदेश क्रिकेट एसोशिएशन(एचपीसीए) के अध्यक्ष अनुराग ठाकुर कहते हैं कि उन्होंने प्रदेश सरकार से मांग की है कि अनाडेल ग्राउंड एचपीसीए को दिया जाए। एचपीसीए यहां इंटरनेशनल स्टेडियम बनाने का सपना संजोए हुए है, पर सेना के रवैये के आगे एचपीसीए के ख्वाब पूरे होते नहीं दिख रहे हें।
फिसल गया गोल्फ ग्राउंड
कांगड़ा के योल सिथत आर्मी एरिया में स्थानीय दुकानदारों और सेना के बीच शुरू हुआ विवाद भी रक्षा मंत्रालय तक पंहुच चुका है। यह विवाद उस वक्त गहराया जब आर्मी एरिया में योल स्थित राइजिंग स्टार कोर्प के उच्च अधिकारियों ने बाउंड्री वाल लगाने का काम शुरू किया। आर्मी क्षेत्र से हटाए जाने का विरोध कर रहे दुकानदार कई दिनों तक सेना के खिलाफ मोर्चा खोले रहे और जिला प्रशासन को दखल देना पड़ा। योल आर्मी एरिया में बाउंडरी वाल लग जाने के बाद कई गांव योल केंटोनमेंट एरिया से बाहर होने के लिए छटपटा रहे हैं। प्रदेश सरकार के पास यहां के लोग कई बार अपना विरोध दर्ज करवा चुके हैं। योल के निकटवर्ती गांव धंलू के उस ग्राउड को लेकर भी विवाद है जहां आर्मी का गोल्फ ग्राउड है। पंचायत के लोगों का कहना है कि पंचायत ने यह ग्राउंड इस शर्त पर सेना को दिया था कि ग्राउंड में पशु चराने के अधिकार खत्म नहीं होंगे, लेकिन सेना ने अब इस ग्राउंड के चारों ओर तारबंदी कर दी है। चामुंडा नदिकेशवर धाम में संजयघाट का लोकापर्ण करने आई तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का उडऩखटोला इस ग्राउंड में स्थित हेलीपैड पर उतरा था। गांववासियों के पास पुराना राजस्व रिकॉर्ड नहीं है, ऐसे में वे आर्मी के इस फरमान का गांव के लोग विरोध नहीं की पाए हैं। अब गांववासी सूचना अधिकार कानून के तहत अपने हकों की लड़ाई लडऩे के लिए कमर कस चुके हें। गांव के पूर्व सैनिक एवं सीनियर सिटीजन सूबेदार कृष्ण कुमार कहते हैं कि आरटीआई के तहत रिकॉर्ड जुटाने के बाद ग्राउंड को छुड़ाने की मुहिम शुरू की जाएगी।
जमीन को लेकर जंग
रिमौर जिला के नाहन में जमीन के हक को लेकर सेना और स्थानीय लोगों के बीच जारी विवाद को हल करने के लिए सेना और जिला प्रशासन ने संयुक्त कमेटी का गठन किया है। जमीन किसकी है, इसके लिए सर्वे किया जा रहा है। इस विवाद को लेकर यहां के 15 गांवों के दस हजार लोग लोग सेना के खिलाफ खड़े हैं। पिछले दो दशक से जारी इस विवाद पर 15 जनवरी को डीसी सिरमौर की अध्यक्षता पदम सिंह की अध्यक्षता में संयुक्त कमेटी की ताजा बैठक हुई है। सेना के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले गोरखसभा के अध्यक्ष राम सिंह थापा और सूबेदार प्रेमदत्त शर्मा का कहना है कि जिला प्रशासन और सैन्य प्रशासन इस विवाद को तत्काल हल करवाए क्योंकि सेना के इस रवैये के चलते इलाके की दस हजार आबादी को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। यहां आर्मी ने निर्माण पर रोक लगा दी है। भाजपा सांसद विरेंद्र कशयप इस मुद्दे को रक्षा मंत्रालय के साथ उठाने की बात कह रहे हैं। सिरमौर जिला में सेना और स्थानीय लोगों के बीच यह पहला विवाद नहीं है। इससे पहले भी सेना और सिविलियन आमने- सामने आ चुके हैं। इसी जिला में सेना की प्रस्तावित फायरिंग रेंज को लेकर भी विवाद हो चुका हे। प्रस्तावित रेंज में नाहन विधानसभा क्षेत्र की 12261 बीघा और पच्छाद विधानसभा क्षेत्र की 9954 बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जाना है जिसमें दस हजार से लोग बेघर होने वाले हैं। तीन साल पहले से हरिायाणा व हिमाचल प्रदेश में सेना की नारायणगढ़ फायरिंग रेंज स्थापित होना प्रस्तावित है। नाहन के भाजपा नेता इस फारिंग रेंज का विरोध करते आ रहे हैं।
बलिदान के बावजूद नजरअंदाज
68 लाख की आबादी वाले हिमाचल प्रदेश में दो लाख सैन्य पृष्ठभूमि वाले परिवार हैं। 1962 के चीन युद्व से लेकर कारगिल आक्रमण तक प्रदेश के सैनिकों ने बलिदान की अनूठी गाथा लिखी है। सेना का सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र पहली बार इसी प्रदेश के सैनिक को लिता है तो कारगिल में विक्रम बतरा व सोरभ कालियां की बलिदान की कहानियां इसी पहाड़ी पद्रेश के शूरवीरों के नाम से जुड़ी हैं। कारगिल युद्व के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पहली बार केंद्र के साथ हिमाचल रेजीमेंट का गठन करने की मांग उठाई थी। प्रदेश की विधानसभा की ओर से भी इस बारे में प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजे गए लेकिन यह ठंडे बस्ते में डाल दिए गए। हालांकि बाद में हिमाचल रेजीमेंट की जगह हिमालयन रेजीमेंट गठित करने के सियासी जुमले में उछाले गए लेकिन धरातल पर कुछ नहीं हुआ। पिछले एक दशक से लोकसभा व राज्यसभा में पहुंचते रहे कांग्रेस- भाजपा दोनों के सांसद भी इस मुदद्दे को दिल्ली में उठाते आए हैं लेकिन हिमाचल के हक नजरअंदाज ही हुए हैं। हालांकि चुनावी मौसम में जरूर यह मुद्दा फुटबाल बनता आया है। हिमाचली रेजीमेंट की पैरवी करने वाले एसएस गुलेरिया कहते हैं कि जब गढ़वाल के नाम पर गढ़वाल राइफल, जम्मू के नाम पर जैक राइफ्ल, पंजाब के नाम पर पंजाब रेजीमेंट तो फिर हिमाचल के नाम पर हिमाचल रेजीमेंट अथवा हिमालयन रेजीमेंट क्यों नहीं।