मंगलवार, 2 जुलाई 2013

हुस्न पर तो तेरे आया निखार था

अपने हिस्से में मुश्किल निवाले हो गए
पर रातों रात लोग कुछ पैसे वाले हो गए 
कई बस्तियां तो आज भी रोशनी से दूर हैं 
कुछ कोठियों में बेशक हैं उजाले हो गए


डॉक्टर कहता है कि तनाव मार डालेगा 
जनाब आंसूओं का सैलाब मार डालेगा 
उसने जो कर दी ख़त लिखने की खता 
हमको तो जवाब का दबाव मार डालेगा

गर तू न मेरी जिन्दगी में आई होती
बुलंदी सोहरत की न हमने पाई होती 
राह जो तूने न मुझ को दिखाई होती 
हर इक कदम पे ही ठोकर खाई होती

हमनें तो निभाया जो इस जमाने का दस्तूर था 
कभी अपने दिल से पूछना हमारा क्या कसूर था

विज्ञान कहता है कि बेहतर हो गया इंसान 
ईमान कहता है कि शातिर हो गया इंसान

कौन कब दिल के आईने में यूँ बस जाये कोई 
यह वो गुस्ताखी है जिस पर अपना जोर नहीं

दिल जे कुथी लगाणा तां मारणा पोंदा मन 
लोग सयाणे बोलदे होन कंदा जो भी कन

हुस्न पर तो तेरे आया निखार था 
बदन में क्यों मेरे छाया खुमार था

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