गुरुवार, 11 जून 2009

गजल

गाँधी के हिस्से में गोली ही क्यों आती है

हर गाँधी के हिस्से में गोली ही क्यों आती है।
अमन के हर पुजारी की क्यों छलनी होती छाती है।।

नींद में चलने वालों का जब कुनबा बढता जाता है,
कोई हस्ती आती है जो नींद से हमें जगती है।।


नई नस्ल के वारिसों इतिहास उठा कर देखो तो ,
नमन शहीदों को कर के आँखें नाम हो जाती है।।

बेकार कभी जाती नहीं सूरमाओं की शहादतें ,
कौम को बलिदान का इक रास्ता दिखलाती है।।

चंद वीरों के दम पर वजूद है जिन्दा कौम का,
लोरिओं में नतिओं को नानियाँ सुनती हैं ।।






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