शुक्रवार, 6 मार्च 2009

शुक्रिया! लिकर किंग

सौ करोड़ भारतीयों की भावनाएं आख़िरकार अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में तार तार होने से बच गई। लिकर किंग के नाम से मशहूर बिज़नेसमैन विजय माल्या ने राष्ट्रपिता की पीतल की प्लेट-कटोरी, चप्पल, घड़ी और ऐनक दूसरे देश जाने से बचा ली। बापू की इस अमानत की नीलामी जब सरकार नहीं रोक पाई, तो माल्या ने इनकी सबसे बड़ी बोली लगाकर इन्हें खरीद लिया।
बापू पूरा जीवन सीना तान के चले। तब भी जब अंग्रेजों ने दक्षिण अफ्रीका में उन्हें रेल के डिब्बे से बाहर फेंक दिया। तब भी जब बिहार में नील के खेती करने वालों को उन्होंने उनका हक़ दिलाया। और, तब भी जब नाथूराम गोडसे की पिस्तौल उनके सीने के सामने तन चुकी थी।

बस बापू का सिर झुक जाता था तो गरीब देशवासियों की लाचरगी देखकर, उनकी गरीबी देखकर और उनकी आंखों में पलने वाले सपनों को चकनाचूर होते देखकर। मोहनदास करमचंद गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने बापू कहा। देशवासियों से खून मांगने वाले एक सेनानी का अहिंसा को सबसे बड़ा हथियार बताने वाले दूसरे सेनानी को दिया गया ऐसा सम्मान कि पूरे देश ने साबरमती के इस संत को अपना बापू मान लिया।
बापू का पूरा जीवन विरोधाभासों से घिरा रहा। वो पूरे देश के बापू थे, लेकिन उनका अपना बेटा उनके सिद्धांतों का बाग़ी हो गया। बापू की प्रतिमा से चंद कदमों की दूरी पर संसद में बहस के नाम पर करोड़ों फूंक देने वाले तमाम नेताओं ने बापू से शायद ही कुछ सीखा हो। लेकिन सौ करोड़ भारतीयों की उम्मीदों पर पानी फिरने से बचाने का काम एक ऐसे शख्स ने किया, जिससे शायद बापू जिंदा होते तो कन्नी काटकर निकल जाते। जी हां, एक शराब का सबसे बड़ा विरोधी और दूसरा देश का लिकर किंग।
चांद पर तिरंगा लहराने वाले सौ करोड़ भारतीयों के पास अपने बापू की घड़ी, उनकी ऐनक, उनकी पीतल की कटोरी प्लेट और उनकी चप्पलें जल्द वापस आएंगी। सरकार जहां चूक गई, वहां कारोबार जगत के एक नुमाइंदे ने देशवासियों की उम्मीदें सांसत में फंसने से बचाईं। माल्या पहले भी टीपू की तलवार हिंदुस्तान ला चुके हैं। शुक्रिया, लिकर किंग। आपकी तिजोरी से कम हुए 18 लाख डॉलर, सौ करोड़ हिंदुस्तानी फिर भी चुका सकते हैं, लेकिन, बापू की विरासत बचाने की जो कीमत है, उसे अशर्फियों से भी नहीं तौला जा सकता।

कुंवारों में नसबंदी कराने का चलन शुरू

अब भारत के कुंवारों में नसबंदी कराने का चलन शुरू हो चुका है। कुंवारों द्वारा नसबंदी कराने के मामले प्रकाश में आने के बाद अब सख्ती का फैसला हुआ है। नसबंदी अब तभी होगी जबकि पति-पत्नी साथ आएंगे या लड़के के साथ मां या पिता होंगे। पता चलने पर कुंवारों को भगा दिया जाता है, लेकिन कोई झूठ ही बोले तो कुछ नहीं हो सकता। चूंकि नसबंदी खुल जाती है, इसलिए लोग डरते नहीं। डाक्टरों के अनुसार पुरुष नसबंदी में 15 मिनट का समय लगता है, जबकि खुलवाने में 3 घंटे लगते हैं। नसबंदी खुलवाने के लिए परिवार की रजामंदी जरूरी है।

कुछ लोग नसबंदी के बदले मिलने वाले रुपये के लिए आपरेशन करा रहे हैं तो कुछ ऐसे कुंवारे भी आपरेशन कराने पहुंच रहे हैं जिन्हें अपनी महिला दोस्त के साथ शारीरिक संबंध बनाने हैं लेकिन दोस्त तैयार नहीं और पहले आपरेशन का सुबूत चाहती है। चौंक गए ना? दिल्ली के अस्पतालों में आए दिन दूसरे शहरों के लड़के भी आपरेशन कराने पहुंच रहे हैं। ऐसे ही हैं 21 साल के राहुल सामंत जो अच्छे परिवार से हैं, बड़ी कंपनी में काम करते हैं लेकिन अपनी दोस्त के कहने पर लोकनायक अस्पताल पहुंच गए नसबंदी कराने। डाक्टर ने पूछा तो लापरवाह जवाब था, बाद में खुल जाएगी।
संजय गांधी अस्पताल में पिछले ही महीने 20 वर्षीय प्रदीप कुमार ने आपरेशन करा लिया था। घर वालों को पता चला तो अस्पताल भागे और मां के कहने पर डाक्टरों को नसबंदी खोलनी पड़ी। जागरण में सुनील पाण्डेय लिखते हैं कि अस्पतालों में नसबंदी कराने आने वालों का चूंकि घरेलू रिकार्ड नहीं मांगा जाता, इसलिए कुंवारे इसका फायदा उठा लेते हैं।

फ़िर जेल कब जाओगे?

डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद जब पटना सदर जेल में थे, तब श्री गोडबोले के आदेश से कई डाक्टरों ने उनकी जांच की। इससे धीरे-धीरे उनकी सेहत में सुधार आने लगा। कुछ दिन बाद निकट के सम्बन्धियों से मुलाक़ात की सुविधा मिलाने लगी। एक माह में २ मुलाकातें और २ पात्र लिखने की छूट थी। राजेन्द्र बाबू ने पात्र लिखने के बदले मुलाक़ात का विकल्प लिउया। यानी अब माह में ४ मुलाकातें यानी हर हफ्ते मुलाक़ात। मुलाक़ात में पहले केवल ५ लोगों को जाने दिया जाता था। बाद में घरवालों के लिए इसमें थोड़ी छूट मिलाने लगी। बीमारी के कारण राजेन्द्र बाबू से मुलाकातें उनके लिए तय कमरे में होती थी, बाद में वही कमरा उन्हें दे भी दिया गया रहने के लिए। मुलाकातें भी इसी कमरे में होतीं। राजेन्द्र बाबू उस कमरे में १९४२ से १९४५ तक रहे। उनके साथ दूसरे बड़े लोग, जो वहाँ कैद करके लाये गए थे, वहीं उनके साथ रहे। उनकी देखभाल के लिए पहले बाबू मथुरा प्रसाद और बाद में श्री चक्रधर शरण वहीं रखे गए। हजारीबाग जेल से पारी-पारी कई अन्य मित्रों को भी सरकार वहाँ ले आई।मुलाक़ात के लिए सारा परिवार, जो उस दिन पटना में होता, जाता। ५ की गिनती में बच्चे नहीं आते थे। १९४२ में राजेन्द्र बाबू का पोता अरुणोदय प्रकाश लगभग एक साल का था। वह भी जाता था। धीरे-धीरे वह चलने और दौड़ने लगा। जेल के फाटक पर पहुंचाते ही उसे खोलने के लिए शोर मचाने लगता। अपनी तोतली जुबां में पुलिस को दांत भी लगाता। फाटक खुलते ही वह सीधा राजेन्द्र बाबू के कमरे की दौड़ लगाता। वह उसे ही अपने बाबा का घर समझ बैठा था। जेल में बच्चों को २-३ बार मिठाईयां मिलीं। फ़िर क्या था, बच्चे वहाँ पहुंचाते ही खाने-पीअने की फरमाइशें शुरू कर देते। राजेन्द्र बाबू भी मुलाक़ात के दिन पहले से ही इसका प्रबंध करके रखते।बच्चों को सप्ताह में एक बार बन-संवर कर जेल जाने की आदत पड़ चुकी थी। इसे वे सैर-सपाटे का एक हिस्सा मानने लगे थे। इसमें मिठाई का भी काफी लोभ थाजब १९४५ में राजेन्द्र बाबू छूटकर घर आए तो उनके पोते को बड़ी खुशी हुई। फ़िर जब उसके जेल जाने यानी सैर का दिन आया तो उसे न कोई बाबा के घर (जेल) ही ले गया और ना ही किसी ने उसे मिठाई ही दी। तब उसे बाबा का घर आना रुचा नहीं। तीसरे-चौथे दिन तो उसने पूछ ही लिया -" बाबा, फेर जेल कब जैईब'?

जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष था क्योंकि मैं लड़की थी

अनीता वर्मा ने नए संग्रह 'रोशनी के रास्ते पर' से एकाध कविताएं यहां हाल में आप पढ़ चुके हैं. मैं जितनी बार इस किताब को पढ़ता हूं जीवन और कविता पर मेरा विश्वास गहराता जाता है. अनीता जी ने इस किताब में वाक़ई जादू किया है. जादू करने के लिए कोई जतन नहीं लगाया है, चीज़ों को और भी सादगी नवाज़ी गई है. मैं इस संग्रह से आपको अभी कई उल्लेखनीय चीज़ें पढ़वाऊंगा. इस सीरीज़ में फ़िलहाल ये दो कविताएं और प्रस्तुत हैं:
दोष
जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष थाक्योंकि मैं लड़की थीजब थोड़ी बड़ी हुई तब भी दोषी रहीक्योंकि मेरी बुद्धि लड़कों से ज़्यादा थीथोड़ी और बड़ी हुई तो दोष भी बड़ा हुआक्योंकि मैं सुन्दर थी और लोग मुझे सराहते थेऔर बड़ी होने पर मेरे दोष अलग थेक्योंकि मैंने ग़लत का विरोध कियाबूढ़ी होने पर भी मैं दोषी रहीक्योंकि मेरी इच्छाएं ख़त्म नहीं हुई थींमरने पर भी मैं दोषी रही क्योंकि इन सबके कारण असंभव थी मेरी मुक्ति.
रोशनी
उसका नाम रोशनी थाआदिवासी एक लड़कीजिसे बनना था ननवह कभी पागलों सा करतीमोटे लाल पपोटे उसकेजंगली फूलों से दिखतेबोलती तो लकड़ी के दरवाज़े थरथरातेआरियों सी काटती उसकी चीख़
मुझे पता है मेरा अंतयहीं कहीं है वह आसपासफूल-फूल नहीं प्यार नहींमुरझाना है मुझे वसन्त मेंसूरज बनना हैलाल एक पहाड़कोई दो मुझे मेरी नींद
दिलासा एक आसान पत्थर था जिस पर पतक देती वह सरसिस्टर कैथरीन उसे बांहों में भर लेतींरोशनी मेरी बच्ची
कई वर्ष बाद मिली रोशनीमेडिकल कॉलेज मेंवह डॉक्टर बन रही थीअच्छा करेगी वहबच्चों को और स्त्रियों कोबच्चे, स्त्री, ग़रीब रोशनी.

सूरज बुझाकर जब शाम के आँचल से,उस सांवली रात का चेहरा निहारा था,वही सूना पथ था, खुला ह्रदय पट था...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
हवाओं ने हलके से केश बादलों का उडाया था,चाँद भी चन्दनी का हाथ थामे छत पर आया थाइनकी आँखों में छलकता प्यार हमारा था,...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
मिलन की प्यास ले दरिया खिसक कुछ पास आया था,वहीं माझी ने किसी कश्ती से एक गीत उठाया था,बोल सारे नए थे पर भाव वही पुराना था,...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
कई महफिलों में पढ़कर आया था ग़ज़ल तेरे नाम की ,दबी-ज़ुबाँ लोगों ने बज्म में तेरा नाम भी फुसफुसाया था,यूँ तो बात तेरी थी पर तखल्‍लुस हमारा था...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था

क्या यही पाकिस्तान है ?

कुछ दिन पहले लाहौर हमले का नया विडियो विभिन्न समाचार चैनलों पर जियो टी वी के सौजन्य से दिखाया गया जो हमले के ११ मिनट के बाद का है । सी सी टी वी कैमरे में कैद इस विडियो में स्पष्ट देखा गया कि हमले को अंजाम देने के बाद बड़े इत्मीनान से ये आतंकवादी लाहौर की गलिओं में घूमते हुए गए बिना किसी खौफ के । विडियो देखने से लग ही नही रहा था कि कोई बहुत बड़ा हादसा हुआ है इस शहर में । कन्धों पर कारतूसों से भरे बैग और हाथ में एके ४७ लिए ये आतंकवादी आराम से घूम रहे हैं और पुलिस नदारद , सब कुछ इत्मीनान , क्या इसी का नाम है पाकिस्तान ? जी हाँ इसी का नाम है पाकिस्तान ........!आईये देखते हैं कैसे ?
एल फॉर लखवी जे फॉर जरारशब्दकोष में नही है प्यारखुनी जमीन, सहमा आसमानइसी का नाम है पाकिस्तान ....!झूठ बोलो -मुकर जाओदामन अपने कुतर जाओख़ुद नही सुधरे मगरआपस में बोले सुधर जाओबी फॉर बैतुलाह के फॉर करारतालीबानी अपने हैं यारसुरक्षित नही मेहमानइसी का नाम है पाकिस्तान.........!हिंसा हीं अपना है धर्मन लज्जा नही कोई शर्मतमंचों से मिल जाती रोटीतो क्यूंकर करें कोई कर्म?एच फॉर हिंसा टी फॉर तकरारकर रहे लोग असलहों से प्यारतमाशबीन हैं हुक्मरानइसी का नाम है पाकिस्तान .....!सपनों का कर दिया खूनलिफाफे से गायब मजमूनन बचपन रहा न जवानीकैसे मनाये हनीमून?के फॉर कियानी वी फॉर वारअसमंजस में है सरकारमगर फ़िर भी है वह इत्मीनानइसी का नाम है पाकिस्तान ...!

जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं

जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं कुछ दिन पहले मैंने अपने छुट-पुट चिट्ठे पर एक चिट्ठी लिनेक्स बनाम वीस्टा एवं मैकिन्टॉश नाम से पोस्ट की। इसमें बीबीसी के एक लेख की चर्चा है। इसमें इन तीनो ऑपरेटिंग सिस्टम की तुलना है। इस पर एक टिप्पणी,
'पता नहीं क्यों हर आदमी माइक्रोसौफ्ट को कोसने में लगा रहता है। सच कहूँ, मुझे तो Windows [से प्यार] ... है। ...मैक पर [हिन्दी में काम करने के लिये] ... एक गन्दे से की-बोर्ड ले-आउट के अलावा कुछ भी नहीं है। ...जो लोग लिनक्स का गुण-गान करते हैं… उनका तो अल्लाह ही मालिक है.... कंसोल में काम करना है तो ठीक है, KDE/ Gnome तो अभी भी कचरा हालत में हैं।'अच्छा सवाल है।
मेरा एक मित्र विंडोस़ प्रेमी है। मुझसे अक्सर कहता है कि मैं लिनेक्स छोड़ कर विंडोस़ अपना लूं। कल ही मेरे इसी मित्र ने एक ईमेल भेजी जो शायद अन्तरजाल में घूम रही है। यह हिन्दी में इस प्रकार है, 'बिल गेटस् प्रति सेकेण्ड २५० यू०एस० डालर अर्जित करते हैं जो कि लगभग 2 करोड़ यू०एस० डालर प्रतिदिन और ७३ अरब यू०एस०डालर प्रति वर्ष होता है।यदि उनसे १००० डालर गिर जाता हैं तो उसे उठाने के लिये वे कष्ट नहीं उठायेंगे क्योंकि सेकेण्ड में वे उसे उठायेंगे और इतने समय में १००० डालर अर्जित कर लेंगे।अमेरिका का राष्ट्रीय कर्ज ५.६२ खरब है, यदि बिल गेटस् को यह ऋण स्वयं चुकता करना हो तो वह इसे १० वर्ष से कम समय में कर देगे।वह पृथ्वी पर प्रति व्यक्ति १५ यू०एस० डालर दान करते हैं तब भी उनके पास जेब खर्च के लिए ५० लाख डालर शेष रह जायेगा।माइकल जार्डन अमेरिका में सबसे अधिक धन अर्जित करने वाले खिलाड़ी हैं। उनकी सम्पूर्ण वार्षिक आय ३०० लाख डालर है। यदि वे खान-पान पर खर्च न करें तो उन्हें बिल गेटस् के बराबर धनी होने में २७७ वर्ष तक इन्तजार करना पड़ेगा।यदि बिल गेटस् एक देश होते तो वे पृथ्वी पर सबसे धनी देश होते।यदि आप बिल गेटस् के सभी धन को एक डालर के नोट में बदलें तो आप धरती से चन्द्रमा तक की दूरी से १४ गुनी लम्बी आने जाने वाली सड़क तैयार कर सकते हैं। किन्तु आपको इस सड़क को बिना रूके १४०० वर्षों में बनाना होगा और ७१३ बोइंग ७४७ जहाज सभी धन के आवागमन के लिये प्रयोग करना होगा।यदि हम कल्पना करें कि बिल गेटस् अगले ३५ वर्षों तक जीवित रहते हैं और यदि वे ६.७८ लाख डालर प्रतिदिन खर्च करें केवल तभी स्वर्ग जाने के पहले वे अपनी सारी सम्पत्ति समाप्त कर पायेंगे।'मुझे यह तो मालुम था कि विंडोस़ दुनिया का सबसे लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है तथा बिल गेटस् दुनिया के सबसे सफल एवं अमीर व्यक्ति हैं पर यह नहीं मालुम था कि वे इतने अमीर व्यक्ति हैं। मुझे लगता है कि लोग तो जलते हैं बस इसलिये कोसते हैं।
इस ईमेल के समाप्ति पर कुछ और भी स्माईली के साथ लिखा था। 'अंत में भी बताना उचित होगा कि यदि माइक्रोसाफ्ट विन्डोस के प्रयोगकर्ता को कम्प्यूटर के हर बार अवरोध (हैन्ग) होने पर उसे एक डालर का हर्जान दिया जाय तो बिल गेटस् ३ साल में ही दिवालिया हो जायेंगे।'
लोग लिनेक्स क्यों पसन्द करते हैं इस बारे में सुश्री एन्ड्रिया कॉर्डिंगली के विचार मैंने यहां लिखे हैं। मैं तो लिनेक्स पर इसलिये काम करता हूं क्योंकि मुझे इसका दर्शन अच्छा लगता है, यह कुछ भाईचारे की बात लगती है, और इस पर बौद्धिक सम्पदा की झंझट नहीं है। पर,
जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं? शायद अल्लाह के पास पहुंचने के लिये, या फिर... होने के लिये करते हैं।

गुरुवार, 5 मार्च 2009

जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी

जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी - वामन की वापसी जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी - वामन की वापसीमुक्त मानक और वामन की वापसी' श्रंखला की इस कड़ी में बताया गया है कि मुक्त मानक क्यों उचित साधन हैं? इसे आप रोमन या किसी और भारतीय लिपि में पढ़ सकते हैं। इसके लिये दाहिने तरफ ऊपर के विज़िट को देखें। इसे आप सुन भी सकते है। सुनने के लिये यहां चटका लगायें। यह ऑडियो फाइल ogg फॉरमैट में है। इस फॉरमैट की फाईलों को आप,Windows पर कम से कम Audacity, MPlayer, VLC media player, एवं Winamp में;Mac-OX पर कम से कम Audacity, Mplayer एवं VLC में; औरLinux पर सभी प्रोग्रामो में,सुन सकते हैं। ऑडियो फाइल पर चटका लगायें फिर या तो डाउनलोड कर ऊपर बताये प्रोग्राम में सुने या इन प्रोग्रामों मे से किसी एक को अपने कंप्यूटर में डिफॉल्ट में कर ले। डाउनलोड करने के लिये पेज पर पहुंच कर जहां Download फिर फाईल का नाम लिखा है, वहां चटका लगायें। पंचतत्र की एक कहानी कछुआ और खरगोश के बीच हुई रेस के बारे में है। आधुनिक युग में, इस कहानी में कुछ जोड़ा गया है। मैंने इस कुछ दिन पहले इसी चिट्ठे पर लिखा था। इसके द्वारा मैंने ओपेन सोर्स सॉफ्टवेयर के महत्व को बताने का प्रयत्न किया था। लेकिन मुक्त मानक का महत्व बताने के लिए मैं एक दूसरी कहानी 'वामन की वापसी' (The Return of Vaman) के बारे में चर्चा करना चाहूंगा। यह प्रसिद्व खगोलशास्त्री जयंत विष्णु नार्लीकर (Jayant Vishnu Narlikar) के द्वारा लिखी एक विज्ञान कहानी है।यह कहानी तीन व्यक्तियों के इर्द-गिर्द घूमती है।भौतिक शास्त्री,कम्यूटर वैज्ञानिक, औरपुरातत्ववेता भौतिक शास्त्री, गुरूत्वाकर्षण के बारे में प्रयोग करना चाहता था इसके लिए उसे गहरा गड़ढा खोदना था। यह गड्ढा खोदते समय उन्हें एक प्लेट मिलती है जिसमें कुछ लिखा हुआ है पर वे समझ नहीं पाते हैं कि उसमें क्या लिखा है क्योंकि लोग उसकी लिपि पढ़ने में असमर्थ हैं।नीचे और खोदने पर एक घन मिलता है। घन पर तरह-तरह के चित्र बने हुए हैं। ये चित्र कुछ अजीब से हैं। प्लेट और घन दोनों एक अनजाने पदार्थ के द्वारा बने हुए हैं। जिससे उन्हें यह लगता है कि वास्तव में यह किसी उन्नत सभ्यता के द्वारा वहाँ रखे गये हैं। लोगों के समझ में नहीं आता है कि घन को कैसे खोला जाए। लेकिन घन पर बने चित्रों में एक चित्र में दो हाथी घन को विपरीत दिशा से खींच रहे होते हैं पर उसके बाद भी वे हाथी उसे खोलने में असमर्थ दिखते हैं। यह चित्र देखकर उन्हें १७वीं शताब्दी के जर्मन वैज्ञानिक आटो वान ग्यूरिक के द्वारा किये गये एक प्रयोग का ख्याल आता है। उसने दो ताँबें के ५१ सेमी. व्यास के अर्द्व गोलों, को आपस में जोड़कर उसके अंदर की हवा को बाहर निकाल दी थी। इसके बाद दोनो तरफ आठ-आठ घोड़ों के खींचने पर भी वे अलग नहीं हुए थे। ग्यूरिक, इससे हवा के दबाव का महत्व बताना चाहते थे। इस प्रयोग को याद आते ही उन्हें लगा कि शायद इस घन के अंदर से भी हवा निकाल दी गई हो। वे घन पर एक पतला से छेद करते हैं जिससे हवा अंदर चली जाती है और वह घन तुरन्त खुल जाता है।यह घन एक तरह का टाइम कैपसूल है जिसमें उस उन्नत सभ्यता के बारे में बातें थी। इस सभ्यता के लोग, कोई बीस हजार वर्ष पूर्व पृथ्वी पर रहते थे। कैपसूल के अन्दर यह बताया गया था कि किस तरह से एक खास तरह का आधुनिक कम्पयूटर बनाया जा सकता है। वे उस कम्पयूटर को बनाते हैं और उसका नाम गुरू रखते हैं। यह कम्पयूटर उन्हें एक मीटर ऊचां रोबोट बनाने का तरीका बताता है। यह रोबोट बौना है इसलिए इसका नाम वामन रखा जाता है। वामन कोई साधारण रोबोट नही हैं वह एक अत्यंत आधुनिक किस्म का रोबोट है। इस तरह के रोबोट की कल्पना आइज़ेक एसीमोव (Isaac Asimov) ने बाईसेन्टीनियल मैन (The Bicentennial man) नामक विज्ञान कहानी में की थी। इस कहानी में, उस रोबोट का नाम एंड्रयूज़ था। एसीमोव ने, बाद में इस कहानी को पॉस्ट्रॉनिक मैन (Positronic Man) नामक उपन्यास में बदल दिया। इसी के आधार पर बाईसेन्टीनियल मैन (Bicentennial Man) नामक फिल्म भी बनी है।इस फिल्म का ट्रेलर आप देखें। फिल्म की कहानी, मूल कहानी से बदल दी गयी है और फिल्म में यह एक प्यारी सी प्रेम कहानी है जहां एक रोबॉट प्रेम के कारण मानव (नश्वर) बनता है। यदि आपने इसे नहीं देखा है तो देखें।वामन बुद्विमान रोबोट है और उसमें स्वतन्त्र निर्णय लेने की क्षमता है। वह मुश्किलों को समझता है और उसका ठीक निर्णय भी लेता है। वामन अपने बनाने वालों से इस बात की प्रार्थना करता है कि उसे बताया जाए कि वह कैसे अपनी तरह के और रोबोट बना सकता है ताकि मानव जाति की सेवा की जा सके। यह पता नही चलता था कि उस उन्नत सभ्यता का क्या हुआ इसलिए भौतिक शास्त्री और कम्पयूटर वैज्ञानिक उसे यह विधि नहीं सिखाते हैं। वामन अपने आप को दूसरों से चोरी, इस वायदे पर करवाता है कि वे लोग उसे और वामन बनाने का तरीका सिखा देगें।एक ऎसी जगह जहाँ काम न करना पड़े, आराम ही आराम हो , स्वर्ग हो, जीवन का अंत है।आधुनिक सभ्यता के समाप्त होने का कारण प्लेट पर लिखा था पर चूंकि कोई उसकी लिपि नही पढ़ पा रहा था इसलिए यह पता नही चल पा रहा था। अंत में पुरातत्ववेत्ता लिपि को पढ़ने में सफल हो जाता है जिससे पता चलता है कि जब वामन को अपने जैसा वामन बनाने की विधि मालूम होती है और बहुत से वामन बन जाते हैं तो वे मानव जाति का सारा काम अपने हाथ में लेते हैं । एक दिन वे काम करना बंद कर देते है। तब तक वह उन्नत सभ्यता इतनी अभ्यस्त हो चुकी थी कि वह अपने आप के चला नहीं पायी। सच है,'Utopia, if there is one, is end of life.' एक ऎसी जगह जहाँ काम न करना पड़े, आराम ही आराम हो , स्वर्ग हो, जीवन का अंत है। सभ्यता का अंत पता चलने के बाद, यह बहुत जरूरी हो गया कि वामन को समाप्त किया जाए ताकि वह दूसरे वामन न बना सके। वह सभ्यता वामन को भी समाप्त कर देती है। यह सब कैसे होता है यही है इस कहानी में है।मुक्त मानक और वामन की वापसी भूमिका।। मुक्त मानक क्यों महत्वपूर्ण हैं?।। मुक्त मानक क्या होते हैं?।। मुक्त मानक क्यों उचित साधन हैं।। जयंत विष्णु नार्लीकर की विज्ञान कहानी -वामन की वापसी।। 'वामन की वापसी' विज्ञान कहानी का मुक्त मानक से सम्बंध