पौंग बांध के लिए उन्हें उजडऩा नहीं आया......
मिलने की जिद थी हमें बिछुडना नही आया।
दुश्मन हुए दोस्त तो हमें लडऩा नहीं आया।।
इल्म ओ हुनर शोहरत के जो सब जानता था।
उसी की नजर में हमको चढऩा नहीं आया।।
अपनी दोस्ती में कभी ऐसा लम्हा नहीं आया।
हमें रूठना नहीं तो तुम्हें बिगडऩा नहीं आया।
अपने खूंटे में ही सदा बंधी रही बेचारी भैड्डस।
गाय ने बगावत की उसे उखडऩा नहीं आया।।
हल्दी घाटी मे बसे जा हल्दूण के विस्थापित।
पौंग बांध के लिए उन्हें उजडऩा नहीं आया।।
मिलने की जिद थी हमें बिछुडना नही आया।
दुश्मन हुए दोस्त तो हमें लडऩा नहीं आया।।
इल्म ओ हुनर शोहरत के जो सब जानता था।
उसी की नजर में हमको चढऩा नहीं आया।।
अपनी दोस्ती में कभी ऐसा लम्हा नहीं आया।
हमें रूठना नहीं तो तुम्हें बिगडऩा नहीं आया।
अपने खूंटे में ही सदा बंधी रही बेचारी भैड्डस।
गाय ने बगावत की उसे उखडऩा नहीं आया।।
हल्दी घाटी मे बसे जा हल्दूण के विस्थापित।
पौंग बांध के लिए उन्हें उजडऩा नहीं आया।।
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