मंगलवार, 11 दिसंबर 2012

खाक लिखूंखाक लिखूंखाक लिखूंखाक लिखूं


c गज़़ल में इश्क की खुमारी।
जवानी को तो यहां खा गई बेरोजगारी।।
उस गांव में आज तक यौवन नहीं आया।
सदा बुढ़ापा रहा वहां बचपन पर भारी ।।
हर युग में दांव पर लगती रही पंचाली।
आंखों में सदा पट्टी ही बांधे रही गंधारी।।
किताबों में ही बंद रही कबीर की वाणी।
साहित्य में भी रही चम्मचों की सरदारी।।

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