शनिवार, 29 जून 2013

बेशक अब आसमान को छुने लगे हैं

बेशक अब आसमान को छुने लगे हैं 
पर हम अपनी जड़ों से कटने लगे हैं 
तभी सावन में घुमड़ने वाले बादल 
अब बरसने की जगह फटने लगे हैं


सावन में बादलों की मेहरबानी से डर लगता है 
अब तो पहाड़ पर बरसते पानी से डर लगता है


थी जिन्हा ने गल सुनाणी
सुते रेह सैह खिंदा ताणी

आपदा में फंसे अपने नागरिकों को बेशक नहीं बचा पा रहा है 
पर लीडर तो कह रहे हैं कि भारत महाशक्ति बनने जा रहा है


कुदरत के हाथ में इस से पहले ऐसा खंजर नहीं देखा 
जो गुजरी केदारनाथ में मैंने ऐसा मंजर नहीं देखा 
कितने बचपन जवानी और बुढापे बह गए बेगुनाह 
कोई तीर्थ जो पानी से बना हो ऐसा बंजर नहीं देखा

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