शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

‘शिमला’ पर दबाव के लिए चाहिए ‘दिल्ली’ का प्रभाव




लोकसभा चुनाव में प्रदेश कांग्रेस की करारी हार के बाद अपनों-परायों के तरकश के सभी तीर सीएम वीरभद्र सिंह की ओर हैं। एक ओर चुनावी हार के पोस्टमॉर्टम के बहाने कांग्रेस का एक खास धड़ा दिल्ली दरबार में सीएम की नाकामियों को गिनवा कर नेतृत्व परिवर्तन के ख्वाब देख रहा है, तो आम चुनाव में प्रचंड जीत से गदगद प्रदेश भाजपा भ्रष्टाचार को हथियार बनाकर ‘शिमला’ पर दबाव बनाने के लिए ‘दिल्ली’ का प्रभाव दिखाने की कोशिश में जुटी है। 
चुनाव में हार पार्टी संगठन, सरकार और विपक्ष में मौजूद वीरभद्र सिंह विरोधियों के लिए उनके खिलाफ मोर्चा खोलने का अवसर लेकर आई। पार्टी संगठन ने जहां हार का ठीकरा वीरभद्र सिंह के सिर फोड़ने की कोशिश की, तो सरकार में शामिल कुछ नेताओं ने नेतृत्व परिवर्तन का राग पार्टी आलाकमान के आगे अलापना शुरू कर दिया। प्रदेश भाजपा ने भी वीरभद्र सिंह की घेराबंदी तेज कर दी। भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में वीरभद्र सिंह, उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह व पुत्र विक्रमादित्य के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति व आयकर रिटर्न न भरने का मामला खूब उछाला गया। एक प्रस्ताव पारित कर केंद्र सरकार को भेजा गया, जिसमें मांग की गई कि वीरभद्र सिंह के खिलाफ चल रही सीबीआई जांच में तेजी लाई जाए।
रिकॉर्ड छठी बार प्रदेश सरकार का नेतृत्व कर रहे वीरभद्र अपने राजनीतिक विरोधियों की हर चाल का जवाब दे रहे हैं। प्रदेश की अब तक की राजनीति में कोई नेता वीरभद्र की काट नहीं ढूंढ पाया है। भाजपा ने जहां इस कद्दावर नेता को कमजोर करने की हर संभव कोशिश की है, वहीं समय-समय पर प्रदेश कांग्रेस के अंदर उनसे पार पाने की कवायद चलती रही है। वीरभद्र के बारे में यह प्रचलित है कि जब-जब उन्हें घेरने की कोशिश की गई, वे मजबूत होकर विरोधियों पर भारी पड़े। उनकी गिनती देश के उन गिने- चुने कांग्रेसी नेताओं में होती है, जो आलाकमान तक को आंखें दिखाने में नहीं कतराते हैं। सागर कत्था मामले से लेकर सीडी कांड तक में अदालत ने उन्हें क्लीन चिट दी, तो प्रदेश में उनके जनाधार में बढ़ोतरी ही हुई है। 
लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की ऐसी फजीहत हुई है कि पार्टी के लिए किसी भी राज्य  में जहां कांग्रेस सरकारें हैं, नेतृत्व परिवर्तन करना कम जोखिम भरा नहीं दिख रहा है। महाराष्ट्र, असम, जम्मू- कश्मीर और हरियाणा में बिखराव के दौर से गुजर रही कांग्रेस के लिए हिमाचल प्रदेश की सियासत इस समय इसलिए भी गौण है, क्योंकि प्रदेश में अभी कोई बड़ा चुनाव नहीं होने वाला है। ऐसे में वीरभद्र सिंह विरोधियों की  ‘दिल्ली’ में पैरवी से ‘शिमला’ में हलचल के कोई आसार नहीं हैं। यह उनके सियासी कौशल का ही प्रमाण है कि, जहां प्रदेश भाजपा केंद्र की एनडीए सरकार से उनके खिलाफ चल रही सीबीआई जांच को तेज करने के प्रस्ताव केंद्र को भेज रही है, तो वीरभद्र सिंह केंद्र सरकार के मंत्रियों से मिल कर पहाड़ी प्रदेश के हितों की पैरवी की पुरजोर कोशिश में जुटे हैं। केंद्र में सत्ता परिवर्तन के बाद वे राजनीति स्तर पर भी खुद को करेक्ट करने की पहल कर चुके हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली के खिलाफ किए मानहानि के मामले को वापस लेने को इस नजर से देखा जा सकता है। सीएम कहते हैं कि प्रदेश केंद्र से टकराव नहीं,सहयोग की उम्मीद में है। वह रेल बजट से लेकर आम बजट में प्रदेश के हितों की अनदेखी की बात कह रहे हैं।  ऐसे में अगर ‘शिमला’ पर दबाव बनाना है ‘दिल्ली’ का प्रभाव दिखाना ही पड़ेगा, फिर चाहे  प्रदेश कांग्रेस हो अथवा  प्रदेश भाजपा। 
प्रदेश केंद्र की मदद का मोहताज रहा है। अटल के नेतृत्व में पिछली एनडीए सरकार के वक्त भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। तब केंद्र सरकार के आर्थिक पैकेज ने प्रदेश कांग्रेस को अटल का गुणगान करने पर मजबूर कर दिया था। इस बार भी प्रदेश को केंद्र से बड़ी उम्मीद है। प्रदेश भाजपा भी तभी कद्दावर होगी, जब केंद्र से प्रदेश के आर्थिक हितों की पैरवी की जाएगी। मोदी सरकार के पहले मंत्रिमंडल विस्तार से प्रदेश को बड़ी उम्मीद है, तो आर्थिक तौर पर पटरी से उतरी प्रदेश सरकार को केंद्र से आर्थिक मदद की दरकार है।

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