शुक्रवार, 6 मार्च 2009


सूरज बुझाकर जब शाम के आँचल से,उस सांवली रात का चेहरा निहारा था,वही सूना पथ था, खुला ह्रदय पट था...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
हवाओं ने हलके से केश बादलों का उडाया था,चाँद भी चन्दनी का हाथ थामे छत पर आया थाइनकी आँखों में छलकता प्यार हमारा था,...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
मिलन की प्यास ले दरिया खिसक कुछ पास आया था,वहीं माझी ने किसी कश्ती से एक गीत उठाया था,बोल सारे नए थे पर भाव वही पुराना था,...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था
कई महफिलों में पढ़कर आया था ग़ज़ल तेरे नाम की ,दबी-ज़ुबाँ लोगों ने बज्म में तेरा नाम भी फुसफुसाया था,यूँ तो बात तेरी थी पर तखल्‍लुस हमारा था...और एक लंबा इंतज़ार तुम्हारा था

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