शुक्रवार, 6 मार्च 2009

जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष था क्योंकि मैं लड़की थी

अनीता वर्मा ने नए संग्रह 'रोशनी के रास्ते पर' से एकाध कविताएं यहां हाल में आप पढ़ चुके हैं. मैं जितनी बार इस किताब को पढ़ता हूं जीवन और कविता पर मेरा विश्वास गहराता जाता है. अनीता जी ने इस किताब में वाक़ई जादू किया है. जादू करने के लिए कोई जतन नहीं लगाया है, चीज़ों को और भी सादगी नवाज़ी गई है. मैं इस संग्रह से आपको अभी कई उल्लेखनीय चीज़ें पढ़वाऊंगा. इस सीरीज़ में फ़िलहाल ये दो कविताएं और प्रस्तुत हैं:
दोष
जब मैं पैदा हुई तो मुझमें दोष थाक्योंकि मैं लड़की थीजब थोड़ी बड़ी हुई तब भी दोषी रहीक्योंकि मेरी बुद्धि लड़कों से ज़्यादा थीथोड़ी और बड़ी हुई तो दोष भी बड़ा हुआक्योंकि मैं सुन्दर थी और लोग मुझे सराहते थेऔर बड़ी होने पर मेरे दोष अलग थेक्योंकि मैंने ग़लत का विरोध कियाबूढ़ी होने पर भी मैं दोषी रहीक्योंकि मेरी इच्छाएं ख़त्म नहीं हुई थींमरने पर भी मैं दोषी रही क्योंकि इन सबके कारण असंभव थी मेरी मुक्ति.
रोशनी
उसका नाम रोशनी थाआदिवासी एक लड़कीजिसे बनना था ननवह कभी पागलों सा करतीमोटे लाल पपोटे उसकेजंगली फूलों से दिखतेबोलती तो लकड़ी के दरवाज़े थरथरातेआरियों सी काटती उसकी चीख़
मुझे पता है मेरा अंतयहीं कहीं है वह आसपासफूल-फूल नहीं प्यार नहींमुरझाना है मुझे वसन्त मेंसूरज बनना हैलाल एक पहाड़कोई दो मुझे मेरी नींद
दिलासा एक आसान पत्थर था जिस पर पतक देती वह सरसिस्टर कैथरीन उसे बांहों में भर लेतींरोशनी मेरी बच्ची
कई वर्ष बाद मिली रोशनीमेडिकल कॉलेज मेंवह डॉक्टर बन रही थीअच्छा करेगी वहबच्चों को और स्त्रियों कोबच्चे, स्त्री, ग़रीब रोशनी.

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