आज चेताते हैं वो आ जा हरकतों से बाज।
कल तक भाता था जिनको मेरा हर अंदाज।।
जख्मों पर नमक भी छिडकता है कभी कभी।
हुस्न हर वक्त कहाँ इश्क पर जान छिडकता है।।
वो जो बचपन में अपने दादा की परी थी ।
खुद दादी बनी तो वो लावारिस मरी थी।।
हमने यह दौलत बड़ी मेहनत से कमाई है।
अपना खजाना पाश,जिब्रान और परसाई है।।
उपदेश की बात खोटी है।
भूखे का धर्म रोटी है ।।
अपनी- अपनी दुकानें है,
कहीं टोपी, कहीं चोटी है ।।
कुदरत ने यह हक़ सिर्फ मां को दिया है
कौन है जिसने मां का दूध नहीं पिया है
क्यों छुपायें हम, खामियां अपनी ।
खुद गवाही दें, नाकामियां अपनी ।।
फितरत ही नहीं आई, जीतते कैसे।
क्या दिखाएं हम, नादानियां अपनी ।।
इधर शहादत जारी है, उधर सियासत भारी है.
इधर जां हथेली पर, उधर जुबां पे मारामारी है.
फिक्स कमीशन अब तक है हर इक टेंडर में
आओ मिल कर बदलें कुछ इस बार कलेंडर में
कल तक भाता था जिनको मेरा हर अंदाज।।
जख्मों पर नमक भी छिडकता है कभी कभी।
हुस्न हर वक्त कहाँ इश्क पर जान छिडकता है।।
वो जो बचपन में अपने दादा की परी थी ।
खुद दादी बनी तो वो लावारिस मरी थी।।
हमने यह दौलत बड़ी मेहनत से कमाई है।
अपना खजाना पाश,जिब्रान और परसाई है।।
उपदेश की बात खोटी है।
भूखे का धर्म रोटी है ।।
अपनी- अपनी दुकानें है,
कहीं टोपी, कहीं चोटी है ।।
कुदरत ने यह हक़ सिर्फ मां को दिया है
कौन है जिसने मां का दूध नहीं पिया है
क्यों छुपायें हम, खामियां अपनी ।
खुद गवाही दें, नाकामियां अपनी ।।
फितरत ही नहीं आई, जीतते कैसे।
क्या दिखाएं हम, नादानियां अपनी ।।
इधर शहादत जारी है, उधर सियासत भारी है.
इधर जां हथेली पर, उधर जुबां पे मारामारी है.
फिक्स कमीशन अब तक है हर इक टेंडर में
आओ मिल कर बदलें कुछ इस बार कलेंडर में
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