मंगलवार, 26 मई 2009

संस्मरण :न्यूयार्क नहीं नगरोटा

पुष्पांजलि
दो शब्द प्रेम के लिए
उसे लोगों को पढने का हुनर आता था ।
दरबारी सरकारी संस्कृति में आम आदमी
का पिसना उसे अंदर तक आहत कर
जाता था । एक ऑफिसर के रूप में
डॉक्टर प्रेम भरद्वाज अपनी बिरादरी के
सताये आम आदमी दा दर्द बाँटते मिलते थे
तो एक शायर अपने लफ्जों को आम आदमी
की जुबान में बिना लग लपेट के कहता
दिखता है । यह वही आदमी है जिसकी
अदा का कायल अगर भरमौर है तो डलहौजी
में भी उसकी कलम का कारोबार चलता है ।
छोटी काशी उस आदमी के काम को बरीकी
से देखती है । प्रेम का कारवां कहाँ कहाँ से
गुजरते हुए कहाँ कहाँ तक जा पहुंचता है ।
इस प्रेम में न्यूयार्क की नहीं नगरोटा की
हसरत है ।नौकरी पूरी हुई, बच्चों की शादियाँ
कर दी । अब उस जगह का हक़ अदा करने
का वक़त आ गाया। नगरोटा में प्रदेश का कल्चर
सेंटर विकसित हो इसी पर रात दिन मंथन व्
चिंतन चल रहा था । शुरू आत हो चुकी थी ।
इसी बीच प्रेम की प्यास जगा कर वो शख्स ख़ुद
किसी दूसरी दुनिया में प्रेम का अलख जगाने
निकल गया । काश कोई प्रेम की प्यास को
समझे और नगरोटा में प्रेम की अगन जगाये।
आगे फ़िर कभी ..........................

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