रविवार, 21 अप्रैल 2013

हम हर दिन ढूंढ लेते हैं वजह मुस्कराने की।।

कोशिश तमाम करता है वो हमको रूलाने की
हम हर दिन ढूंढ लेते हैं वजह मुस्कराने की।।

रत्न जब भी किसी सियासत ने सजाये ताज में। 
बीरबल का सिक्का चला अकबर के राज में ।।

अपने मुकद्दर को कभी इसलिए ही कोसा नहीं। 
क्या पता कब बदल जाए वक्त का भरोसा नहीं।।

वो जो सियासत की आड़ में हैं।
सब के सब अपने जुगाड़ में हैं।।
चंबल मुफ्त में बदनाम,डाकू तो। 
कुछ संसद में कुछ तिहाड़ में हैं।।

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