मंगलवार, 30 अप्रैल 2013

या मुझ से नफरत करोगे या मुझ से प्यार जताओगे


जीणे दे गुर दसदा पहाड़।
हंसदा,गांदा,नचदा पहाड़।।

दोस्त ने हमारे बारे में क्या क्या नहीं पढ़ दिया।
जो साजिश से बचे तो कोई षडय़ंत्र गढ़ दिया।।
कुछ इस तरह बचाया उसने अपने वजूद को।
शोहरत हुई हमारी तो कोई इल्जाम मढ़ दिया।

चातुर चालाक की बस्ती में भी वह नादान रहा।
उसकी इस अदा से भी कोई बड़ा परेशान रहा।।


सिर पर धूप है न छांव है।
सफर में कब से पांव हैं।
हां छोड़ा जब से गांव है। 
हां छोड़ा जब से गांव है।।

दुश्मन ने की अपनी पूरी तैयारी थी।
हम बच निकले, किस्मत हमारी थी।। 
वह चोरों के कुनबे में भी खास रहा।
वहीं सेंध लगाई जहां चारदीवारी थी।।

या मुझ से नफरत करोगे या मुझ से प्यार जताओगे 
मेरा दावा है, मुझ को नजरअंदाज नहीं कर पाओगे 
कभी इक सुबूत भी जुटाने की कोशिश करना दोस्त 
मालूम है हर बार मेरे खिलाफ तुम ही इल्जाम लगोगे

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