रविवार, 21 जुलाई 2013

हमनें तो निभाया जो इस जमाने का दस्तूर था 
कभी अपने दिल से पूछना हमारा क्या कसूर था

मेरे बहाने किसी और को कब्र में दफना दिया 
मैं जिन्दा था लोगों ने मेरा मातम मना दिया

लोग कहते थे कि वो इक पत्थर दिल इंसान है 
हमने जो छुआ उसे तो वो मोम सा पिघल गया

उसकी गलतियां माफ़ कर देना मौला 
वो नादां था शातिर जिसे समझा गया

बेशक खुशियों का मैं कारोबार करता हूं 
पर आंसूओं का भी बड़ा सत्कार करता हूं
मैं जिंदगी से हद से ज्यादा प्यार करता हूं 
पर मौत का भी दिल से इन्तजार करता हूँ


मैं अगर चीड़ है और तू देवदार है 
फिर तो हमारा एक ही परिवार है
कुछ वोट धर्म के नाम पर हथियाये जायेंगे 
कुछ स्वर्ण दलित के नाम पर ठगाये जायेंगे
कुछ तो नशे में टल्ली करके बहकाए जायेंगे 
गाँव गाँव में कितने ही राष्ट्रवाद जगाए जायेंगे 
................... जीत के लिए जब समीकरण बनाये जायेंगे


मैं यह जानता भी हूँ और हूँ अनजान भी 
मेरे अंदर रहता है भगवन भी शैतान भी

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें