बुधवार, 2 मार्च 2011

किलो सेब बेचने को नहीं होना पड़ेगा मजबूर

ढलानों पर बसे गांवों के उत्पाद आसानी से मार्केट तक पहुंचा सकता है ग्रेविटी रोप वे
बंगलूर के विशेषज्ञ राजरत्नम ने मुख्यमंत्री से की इस तकनीक को अपनाने की वकालत

सेब की बंपर फसल होने के बावजूद इस बार भी कुल्लू और मंडी के ढलानों पर बसे दर्जनों गांवों के सेब उत्पादकों के हाथों मायूसी ही आई। खराब मौसम और सेब को सही समय पर बाजार में पहुंचाने की सही यातायात व्यवस्था न होने की वजह से कई सेब उत्पादकों को मात्र दस रूपए किलो के हिसाब से अपना उत्पाद बेचने को मजबूर होना पड़ा। ढलानों पर बसे प्रदेश के सैंकडों गांवों के हजारों सेब और सब्जी उत्पादकों को कम लागत पर बिना ऐसी परिवहन व्यवस्था प्रदान की जा सकती है कि सस्ती दरों पर उनका ग्रामीण उत्पाद आसानी के शहरी बाजार तक पहुंच सकता है। बंगलोर के एक विशेषज रात रतनम ने प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल को पत्र लिख कर ग्रेविटी रोप वे तकनकी को अपनाने की वकालत की है। ग्रामीण उत्पाद को सस्ती ट्रांसपोटेशन के बलबूते बाजार तक पहुचाने की नेपाल और उतराकाशी के नौगांव विकासखंड में कामयाब रही इस तकनीक के विकसित होने से ट्रांसपोर्ट सबसिडी जैसी जिम्मेवारी से भी प्रदेश सरकार को राहत मिलेगी। हालांकि निजी स्तर पर प्रदेश के कई ढलानदार गावों में ऐसे ग्रेविटी रोप वे लगाए गए हैं, लेकिन प्रदेश सरकार की ओर से ऐसी पहल की दरकार है।
कम लागत, सस्ती तकनीक
ग्रेविटी रोप वे पर अपनी स्टडी में नेपाल इंजीनियर एसोशिएशन के केसी लक्ष्मण इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पहाड़ी क्षेत्रों में ग्रेविटिी रोप वे तकनीक सबसे सस्ती, सरल और सुविधाजनक तकनीक है । पर्यावरण से छेड़छाड़ किए बिना कम लागत पर गांव के उत्पाद को सही समय पर बाजार तक पहुंचा कर ग्रामीण अािर्थकी को मजबूत किया जा सकता है। बिना ऊर्जा के चलने वाले ग्रेविटी रोप वे के संचालन का प्रबंधन भी सामुदायिक स्तर पर किया जा सकता है।
हर साल सड़ते करोड़ों के फल-सब्जियां
हर साल करोड़ों की पल सब्जियां खेतों में ही इसलिए सड़ जाती हैं क्योंकि सही वक्त पर उनको बाजार में पहुंचाने की व्यवस्था नहीं हो पाती है। पहाड़ी ग्रामीण क्षेत्रों में अभी तक भी कई क्षेत्रों में सडक़ों की ऊचित व्यवस्था नहीं है। अगर है भी तो खराब मौसम के कारण सडक़ों की हालत इतनी दयनीय हो जाती है कि ऐसे उपाद को पीठ अथवा खच्छर पर ढोना पड़ता है, जिससे ट्रांस्पोटेशन कोस्ट बढ़ जाती है।

ग्रेविटी रोप वे तकनकी नेपाल में बेहद कामयाब रही है। उत्तराकाशी के नौगांंव विकास खंड में भी ग्रेविटी रोंप वे तकनीक कारगर साबित हुई है। ऐसी तकनीक हिमाचल प्रदेश के पहाडी गांवों में क्रांतिकारी साबित हो सकती है।
केसी लक्षमण, रिसर्चर नेपाल इंजीनियर्ज एसोशिएशन नेपाल।

इस साल भी प्रदेश के कई सेब उत्पादकों को यातायात का सही प्रबंध नहीं होने की वजह से अपने उत्पादक कम कीमत पर बेचने को मजबूर होना पड़ा । ऐसे में ग्रेविटी तकनीक समसामायिक व प्रासंगिक है।
रात रत्नत, बंगलूर के विशेषज्ञ जिन्होंने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल से इस तकनीक को अपनाने की वकालत की है।

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