बुधवार, 2 मार्च 2011

छोटी काशी में उतर आए सैंकड़ों देवता

दुनिया की अनूटी देव मिलन परम्परा सदियों से निभा रहा मंडी

पारम्परिक वाद्ययंत्रों की धुनों पर होता है पुरातन देव परम्परा का निर्वाह

यकीन मानिए! यहां देवता कभी रूठते हैं तो कभी एक -दूसरे से गले मिलते हैं। सोने- चांदी की पालकियों पर सवार सैंकड़ों देवताओं की मिनल की दुनिया की अनूठी परम्परा आज भी मंडी जनपद में जिंदा है। पारम्परिक लोक वाद्ययंत्रों की मधुर धुनों पर देव परम्परा के निर्वाह के लाखों लोग गवाह बनते हैं। ग्राम्य देवताओं की आस्था के इस महाकुंभ के लिए ब्यास नदी के तट पर बसा छोटी काशी के नाम से मशहूर मंडी नगर इन दिनों तैयारियों में जुटा है। इसी के साथ तैयारियों में जुट गए हैं देवताओं की पालकी के साथ आने वाले देवलू(देवताओं के पुजारी) और बजंतरी (वाद्ययंत्र वादक)। 3 मार्च से 9 मार्च तक घंटियों की आवाज के साथ जगने वाला मंडी नगर देव लोक में तबदील हो जाएगा। मंडी जनपद के इस पारम्परिक उत्सव की शुरूआत जलेब (शोभायात्रा) से होगी, जिसमें मेले में भाग लेने आए सभी देवता शामिल होंगे। मेले में आने वाला हर ग्राम्य देवता पहले राज घराने के अराध्य देव माधोराव के मंदिर में हाजिर देंगे, फिर भूतनाथ मंदिर में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाएंगे। इसके बाद देवता पड्डल मैंदान में पहुंचेगे। माधोराव के दरबार में नतमस्तक होने के पश्चात् ऋषि कमरुनाग (वर्षा के देवता), हर साल की भांति इस बार भी एक चोटी पर स्थित टारना मां के मंदिर में अगले सात दिन के लिए वास करेंगे। देवताओं के इस उतसव के रंगों में लोक कलाकारों, हस्तशिल्पियों और दस्तकारों के लिए अपना हुनर दिखाने का बड़ा प्लेट फार्म होगा। मंदिर मेला कमेटी की ओर से शिवरात्रि की संध्याओं को मनारंजक बनाने के लिए पचास लाख से ज्यादा की राशि खर्च की जाएगी। लाक संस्कृति की धीर गंभीर विधाओं को लेकर चार दिन का नाट्य उत्सव भी होगा। इस उत्सव मे जहां पांच लाख से ज्यादा शिवभक्त भोले बाबा का आशीर्वाद लेने पहुंचेगे, वहीं सरकार की आम जनता के करीब आएगी। उत्सव की शुरूआत मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल करेगे तथा समापन अवसर पर राज्यपाल ऊर्मिला सिंह मुख्यातिथि के तौर पर देवताओं की शोभायात्रा में शामिल होंगे। इसी मेले के साथ प्रदेश के विभिन्न जनपदों में होने वाले मेलों की शुरूआत हो जाएगी।
मंडी शिवरात्रि का इतिहास
शिवरात्रि मेले के शुरू होने को लेकर अनेक मान्यताएँ हैं। एक मान्यता के अनुसार 1788 में मंडी रियासत की बागडोर राजा ईश्वरीय सेन के हाथ में थी। ईश्वरीय सेन कांगडा के महाराज संसार चंद की लंबी कैद से मुक्त होकर स्वदेश लौटे। इसी खुशी में ग्रामीण भी अपने देवताओं को राजा की हाजिरी भरने मंडी नगर की ओर चल पडे। राजा और प्रजा ने मिलकर यह जश्न मेले के रूप में मनाया। दूसरी मान्यता के अनुसार मंडी के पहले राजा बाणसेन शिव भक्त थे, जिन्होंने अपने समय में शिवोत्सव मनाया। बाद के राजाओं कल्याण सेन, हीरा सेन, धरित्री सेन, नरेंद्र सेन, हरजयसेन, दिलावर सेन आदि ने भी इस परंपरा को बनाए रखा। अजबर सेन, स्वतंत्र मंडी रियासत के वह पहले नरेश थे, जिन्होंने वर्तमान मंडी नगर की स्थापना भूतनाथ के विशालकाय मंदिर निर्माण के साथ की व शिवोत्सव रचा। छत्र सेन, साहिब सेन, नारायण सेन, केशव सेन, हरि सेन, प्रभृति सेन ने भी इस उत्सव की परम्परा को बनाए रखा।
सूरजसेन ने दी नई पहचान
राजा सूरज सेन (1637) के समय इस उत्सव को नया आयाम मिला। ऐसा माना जाता है कि राजा सूरज सेन के अ_ारह पुत्र हुए। ये सभी राजा के जीवन काल में ही मृत्यु को प्राप्त हो गए। उत्तराधिकारी के रूप में राजा ने एक चाँदी की प्रतिमा बनवाई जिसे माधोराय नाम दिया। राजा ने अपना राज्य माधोराय को दे दिया। इसके बाद शिवरात्रि में माधोराय ही शोभायात्रा का नेतृत्व करने लगे। राज्य के समस्त देव शिवारात्रि में आकर पहले माधोराय और फिर राजा को हाजिरी देने लगे। इसके बाद के शासकों में राजा श्याम सेन शक्ति के आराधक थे, जिन्होंने शिव शक्ति परंपरा को सुदृढ किया। शिवोत्सव का एक बडा पडाव शक्ति रूप श्यामकाली भगवती मां टारना के साथ जुडा हुआ है। इस दौरान सिद्ध पंचवक्त्र, सिद्धकाली, सिद्धभद्रा के शैव एवं शक्ति से जुडे मंदिरों का निर्माण हुआ।
बसंत के स्वागत की तैयारी
फाल्गुन का महीना बर्फ के पिघलने के बाद बसंत के शुभारंभ का होता है। फाल्गुन माह का स्वागत पेड पौधों की फूल-पत्तियाँ करने लगती हैं और देवता के पुजारी अपने देवता के रथों को रंग-बिरंगा सजाने लगते हैं तो नगर के भूतनाथ मंदिर में शिव-पार्वती के शुभ विवाह की रात्रि को नगरवासी मेले के रूप में मनाना शुरू करते हैं। लोग ठंड के कारण दुबके रहने के बाद बसंत ऋतु का इंतजार करते हैं । जैसे ही बसंत में जैसे ही शिवरात्रि का त्यौहार आता है तो वे सजधज कर मंडी की तरफ कूच शुरू कर देते हैं। मंडी में पुराने इक्कासी मंदिर शिव व शक्तियों के हैं, जिनमें बाबा भूतनाथ व अर्धनारीश्वर भी शामिल हैं। जहाँ भगवान शिव के सभी मंदिर शिखर शैली में मौजूद हैं वहीं पर शक्तियों के मंदिर मंडप शैली में हैं। मंडी में भगवान शिव के 11रुद्र रूप हैं, जबकि नौ शक्तियाँ हैं जिनमें श्यामाकाली, भुवनेश्वरी, चिंतपूर्णी, दुर्गा, काली में भद्राकाली, सिद्धकाली, महाकाली शामिल हैं।
देवी देवताओं की यात्रा और सवारियाँ
मंडी जनपद के हजारों गांव में शिवरात्रि मेले के प्रति कितनी आस्था है, इसका अदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि
जनपद के अंचलों में महीनों पहले ग्रामीण देवताओं की पालकियां सजने लगती हैं। लोग महीनों पहले मंडी के शिवरात्रि मेले में जाने की तैयारी में जुट जाते हैं । सैकडों की संख्या में देवी-देवताओं के रथ व उनके साथ आए देव सेवकों का आपसी मिलन, ढोल नगाड़ों, करनालों, रणसिंघों की गूंजती आवाजों दिन तक थिरकने वाली मंडी का यह पर्व जहां अभूतपूर्व तो होता ही है ,रोमांचक भी कम नहीं होता। मंडी के मुख्य राज देव माधोराव की पालकी के साथ देवी-देवताओं की पालकियों का गले मिलना, देवताओं का नाचना, झूमना, रूठना, मनाना सब नई दुनिया जैसा लगता है। मेले के दौरान जहाँ एक ओर ऐतिहासिक पड्डल मैदान में देवी-देवता आपस में मिलने में व्यस्त होते हैं, वहीं पड्डल मैदान के दूसरे छोर पर व्यापारिक दृष्टि से लगाई गई दूकानों पर व्यापार होता है।

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