जिंदगी की धूप बारिश में संग दोस्तों-दुश्मनों का छाता रहा।
कोई मेरा गुनाह तक छुपाता रहा कोई तोहमतें लगाता रहा।।
सोच में ही जब खोट थी फिर नीयत न भला कैसे डोलती।
मैंने फूल जिसको भेंट किए वह पत्थर ही बरसाता रहा।।
देवता को छूने का वरदान फिर भी न उसको मिल सका।
देवता की शान में पीढिय़ों से बजंतरी देवधुन बजाता रहा।।
अर्थशास्त्र के एक स्नातकोतर जो समाजशास्त्र चुन लिया।
कामयाबी के उस दौर में भी तब नाकामियों से नाता रहा।।
कोई मेरा गुनाह तक छुपाता रहा कोई तोहमतें लगाता रहा।।
सोच में ही जब खोट थी फिर नीयत न भला कैसे डोलती।
मैंने फूल जिसको भेंट किए वह पत्थर ही बरसाता रहा।।
देवता को छूने का वरदान फिर भी न उसको मिल सका।
देवता की शान में पीढिय़ों से बजंतरी देवधुन बजाता रहा।।
अर्थशास्त्र के एक स्नातकोतर जो समाजशास्त्र चुन लिया।
कामयाबी के उस दौर में भी तब नाकामियों से नाता रहा।।
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