रविवार, 20 जनवरी 2013

खाक फिर अपनों

खाक फिर अपनों को भी दिलासा निकले।
दरिया ही जब खुद प्यासा प्यासा निकले।।
रावी निकले आश्किों के हर जिक्र में हम।
जो बात वेदों की हो तो हम विपाशा निकले।।
अपने घर में तो सदा हम गुमनाम से ही रहे।
किसी पत्रकार ने खंगाला,हम खुलासा निकले।।
मेरे हिस्से की रोशनी भी फिर कहां से निकले।
सुबह का सूरज जो संग लेकर कुहासा निकले।।

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