बुधवार, 20 अप्रैल 2016

चारण कुर्सी पायेगा.

धर्मराज के खाते उपहास लिखा है
हमने ही राम को बनवास लिखा है.
रामराज में इल्जाम सिया के सर,
हमने कान्हा को कारावास लिखा है

जो वजह तक नहीं जाओगे. 
समाधान कहां से लाओगे.
खुद बिगडैल न सुधरे जो,
तो किसको क्या समझोगे

गूंगा मौज उडाएगा.
चारण कुर्सी पायेगा.
जो विरोध में आएगा.
गोली-लाठी खायेगा.

खुद के विचारों में आजादी रखो
हौसले हर हाल में फौलादी रखो
फिर क्या फर्क पड़ता है तन पर,
जीन पहनो या फिर खादी रखो

उनकी शहादत को सलाम आते हैं
वीर जो अपने देश के काम आते है.

मीद मनां जो, इन्द कुसी दी.
दिल नंदराला, चिन्द कुसी दी.
खरी निहालप, कच्चिया उम्रा,
झूरदी रेह्न्दी जिन्द कुसी दी
(शब्दार्थ: मीद - उम्मीद, इन्द - किसी के आने की आस, नंदराला- नींद में जागा हुआ, चिन्द - चिंता, निहालप- इंतज़ार)
..........विनोद भावुक................

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