( कविता जैसा कुछ)
बताओ कब तक?
टुकड़ों पर पलने वाले,
घुटनों के बल आयेंगे.
जब जब आका गुर्रायेंगे
प्यादे चीखेंगे- चिल्लायेंगे
सियासत की आड़ में,
वोटों के जुगाड़ में
पलते जो लफंगे रहेंगे
इस देश में दंगे रहेंगे
घुटनों के बल आयेंगे.
जब जब आका गुर्रायेंगे
प्यादे चीखेंगे- चिल्लायेंगे
सियासत की आड़ में,
वोटों के जुगाड़ में
पलते जो लफंगे रहेंगे
इस देश में दंगे रहेंगे
...विनोद भावुक......
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