शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

धरती पर हलचल आई तो पहाड़ पर मचेगी तबाही

आपदा पूर्व प्रबंधन को लेकर रूडक़ी विश्विद्यालय की अध्ययन रिपोर्ट का खुलासा
धरती पर हलचल आई तो पहाड़ पर मचेगी तबाही
भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील जोन में स्थित सौ साल में बीस बार कांपा हिमाचल

अगर धरती पर भूकंप पर हलचल आई तो पहाड़ पर भयंकर तबाही मचेगी। यह खुलासा प्रोफेसर आनंद आर आर्य की रिपोर्ट का है जो रूडक़ी विश्वविद्यालय के भूकंप अभियंत्री विभाग के वैज्ञानिक रहे हैं। आपदा पूर्व प्रबंधन की पड़ताल पर उन्होंने साफ कहा है कि अति संवेदनशील जोन पांच और चार में स्थित हिमाचल प्रदेश में अगर 4 अप्रैल 1905 को आए भूकंप की तीव्रता वाला कोई भूकंप आता है तो यहां भ्यानक तबाही मंच सकती है। पूर्व आपदा प्रबंधन की स्थित में भूकंप के नुक्सान को काफी हद तक कम किया जा सकता है वहीं हजारों जिंदगियां भी बच सकती है।
रिपोर्टों पर आधारित तुलनात्मक अध्ययन
भारत में भूकंप जोखिम में कमी के प्रयास आलेख में वह कहते हैं कि अगर भूकंप जैसी आपदा से निपटने के पूर्व प्रबंध किए जाएं तो 60 प्रतिशत नुकसान से बचा जा सकता है। उन्होंने ज्योलॉजिकल सर्वे 1899, भारत सरकार के शही मंत्रालय के विशेषज्ञ की 1997 की रिपोर्ट, कृषि विशेषज्ञों की भूकंप को लेकर अनुभव रिपोर्ट 1999 और भूकंप अभियंत्रिकी पर 2005 में आयेाजित विश्व कांफ्रेस के आधार पर प्रोफेसर आनंद आर आर्य ने यह तुलनात्मक अध्ययन किया है।
आपदा प्रबंधन का अभाव, नुक्सान होगा बेहिसाब
आनंद एस आर्य ने 1991 की जनसंख्या और 1997 की कीमतों को आधार बनाकर कहा है कि अगर भकंप रोधी तकनीक नहीं अपनाई गई तो 1905 वाली तीव्रता के भूकंप के आने की स्थित में कांगड़ा के 1815858 घरों में से 399675 मकान पूरी तरह से ध्वस्त हो जाएंगे। इस भूकंप से 51.04 खरब का नुक्सान होगा, जबकि 65000 लोग मौत के ग्रास बन जाएंगे।
आपदा की तैयारी से राहत मिलेगी भारी
रिपोर्ट का दूसरा पहलू यह कहता है कि अगर प्रदेश में भवन निर्माण में भूकंप रोधी तकनीक अपनाई जाती है और पूर्व आपदा प्रबंध किए जाते हैं तो भूकंप के 60 फीसदी नुक्सान को कम किया जा सकता है। अगर सभी घरों को भूकंप रोधी बना दिया जाता है तो 25.09 खरब के नुक्सान से बचा जा सकता है। ऐसे में भूकंप से मरने वालों की संख्या भी सिर्फ 13 हजार तक सिमट सकती है। तीन चौथाई मकानों को बचाया जा सकता है।
हर पांच से एक बार कांपा पहाड़
हिमाचल प्रदेश पिछले एक सौ दस साल के अंतराल में बीस बार कांप चुका है। प्रदेश में सबसे अधिकत तीव्रता वाला भूकंप 4 अप्रैल 1905 को आया था। यह भूकंप देश में अभी तक आए तीन बड़े भूकंपों में एक है। 19 जनवरी 1976 को किन्नौर, 26 अप्रैल 1986 को कांगड़ा, अप्रैल 1994 को चंबा, 1995 में मंडी- जोगेंद्रनगर, 1996 में धर्मशाला और नवंबर 2004 मेें चंबा में हुए भूकंप प्रदेश को गहरे जख्म दे चुके है। प्रदेश में भूकंप के छोटे झटके आना आम बात है।

अगर हिमाचल में भवन निर्माण में भूकपं विरोधी तकनीक अपनाई जाती है और पूर्व आपदा प्रबंध किए जाते हैं तो भूकंप से हाने वाली तबाही को कम किया जा सकता है।

प्रो. आनंद. एस. आर्य,

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