गुरुवार, 12 जनवरी 2012

बिजली से कमाई, जंगलों की तबाही

जल विद्युत परियोजनाओं के लिए तीन दशक में दस हजार हैक्टेयर वनभूमि पर हस्तक्षेप
बिजली से कमाई, जंगलों की तबाही
वन भूमि की साठ प्रतिशत मंजूरी बिजली परियरेजनाओं और ट्रांसमीटर लाईनों के लिए

बिजली से कमाई के लिए प्रदेश के वनों की तबाही ने निशान साफ देखे जा सकते हैं। पिछले तीन दशक में प्रदेश में जल विद्युत क्षमता के दोहन के लिए जम कर वन भूमि का प्रयोग करने की मंजूरी दी जा रही है। वन विभाग के सूत्रों के अनुसार 1981 से लेकर 2011 तक प्रदेश के 10245.5 हैक्टेयर वन भूमि को गैर वानिकी कामों के लिए बदलने की मंजरी वन संरक्षण अधिनियम के तहत दी जा चुकी है। बिजली परियोजनाओं और उनकी ट्रांसमीटर लाईनों के लिए सबसे ज्यादा वन भूमि का प्रयोग हुआ है। अभी तक बिजली परियोजनाओं के निर्माण के लिए 4028.817 हैक्टेयर वन भूमि की 180 अनुमतियां प्रदान की जा चुकी हैं। ट्रांसमीशन लाईन बिछाने के लिए 2258 हेक्टेयर वनभूमि के प्रयोग की 97 अनुमतियां प्रदान की गई हैं। वन भूमि की अभी तक दी गई कुल मंजूरी में 60 प्रतिशत वन भूमि बिजली परियोजनाओं और ट्रांसमीटर लाईनों के निर्माण के लिए दी गई है।
प्राईवेट से सस्ती फॉरेस्ट लैंड
वन विभाग के सूत्रों के अनुसार प्रदेश में वन विभाग की भूमि निजी भूमि के मुकाबले बेहद सस्ती है। सूत्रों के अनुसार वन भूमि की कीमत प्रति हैक्टेयर 9 लाख है जबकि निजी भूमि की कीमत वन भूमि की कीमत से दस गुणा से ज्यादा है। ऐसे में बिजली परियोजनाओं का निर्माण करने वाली कंपनियां निजी भूमि की जगह वन भूमि की मंजूरी को प्राथमिकता देते हैं।
बीते साल बना रिकार्ड
गैर वानिकी कार्यों के लिए वन संरक्षण अधिनियम के तहत वन भूमि की मंजूरी देने में बीते बर्ष में नया रिकार्ड स्थापित हो गया है। हालांकि प्रदेश में सत्तासीन रही कांग्रेस भाजपा दोनों सरकारों के वक्त में गैर वाणिकी कार्यो के लिए वन भूमि की मंजूरी दी गई लेकिन बीते साल 1334 मामलों में 1116 हैक्टेयर वन भूमि को गैर वाणिकी कार्यो के प्रयोग की मंजूरी प्रदान की गई है। यह पिछले तीस सालों में दी गई वन भूमि की सबसे बड़ी मंज्री है।
किस को कितनी वन भूमि
है। सडक़ निर्माण के लिए 662 अनुमतियां प्रदान की गई हैं जिसमें 1885 हैक्टेयर वनभूमि के प्रयोग की मंजूरी दी गई है। सीमेंट कारखानों सहित माइनिंग के लिए वन भूमि के प्रयोग की 49 अनुमतियां प्रदान की गई है जिनमें 824 हैक्टेयर वन भूमि के प्रयोग की अनुमति दी गई है। पेयजल के लिए वन भूमि के प्रयोग की 61 अनुमतियां दी गई है जिनमें 70 हैक्टेयर वनभूमि के प्रयोग की मंजूरी दीगई है। रेवले के लिए वनभूमि के पयोग के लिए दो अनुमतियों के तहत 12 हेक्टेयर वन भूमि, जबकि अन्य उपयोग के लिए 283 अनुमतियों में 1196 हैक्टेयर वन भूमि के गैर वाणिकी कार्यों में प्रयोग की अनुमति दी गई है।

वनों का और नुक्सान न हो, इसके लिए प्रदेश सरकार की ओर से यह निर्णया लिया गया है कि बिजली परियोजनाओं की ट्रांसमीशन लाईनों को वनों के बजाये घाटियों से निकाला जाएगा ।
आरके गुप्ता, प्रधान मुख्य आरण्यपाल वन विभाग हिमाचल प्रदेश।

कोई टिप्पणी नहीं :

एक टिप्पणी भेजें