शनिवार, 3 अगस्त 2013

मशीनों की साजिश रही भूमि कटाव में................

दबाव था कोई या फिर था वो तनाव में। 
सवाल ही पूछा उसने हर इक जवाब में।।

नदी की राह मोड़ कर खुद बुलाई आफत। 
मशीनों की साजिश रही भूमि कटाव में।।

मोल मेरी मन्नतों का लगाने की हसरत 
जिन्दगी गुजार दी उसने जमा घटाव में।।

मौत की ही फ़रियाद करता रहा रात भर।
झुलसा है जब कोई नफरत के तेजाब मै।।

तमाशाई भीड़ ने ओढ़ ली चुप्पी की चादर।
बेगुनाह था मैं पर कोई न आया बचाव में।।

जूते की औट में कई बरसों तक छुपे रहे।
पड़ चुके थे छेद कई उस ऊनी जुराब में।।

मनरेगा की मुरम्मत ने उसके सुखा दिया।
खिलते थे जलल कभी जिस तालाब में।।

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